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अजीत मैंदोला, नई दिल्ली:
Vasundhara Raje on Religious Yatra:मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीते सप्ताह मन्त्रिमण्डल का विस्तार कर साबित कर दिया कि राजस्थान कांग्रेस में ही वे ही एक मात्र पॉवर सेंटर हैं, बाकी किसी का कोई मतलब नहीं है। अब बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने विरोधियों को चेताने के लिये धार्मिक यात्रा का आयोजन कर अपनी पॉवर दिखा दी है। उनकी यात्रा में जिस तरह से भीड़ जुटी है उससे वह जनता में अपनी पकड़ का अहसास कराने में कामयाब हैं। इससे कहीं ना कहीं उनके विरोधियों में चिंता दिखने लगी है।
हालांकि राजे अपनी यात्रा को गैर राजनीतिक यात्रा बता उल्टा अपने विरोधियों पर तंज कस रही हैं कि वह इसको लेकर राजनीति न करें। वसुंधरा यात्रा और जनसभाओं में भीड़ देख उनसे सीधे जुड़ाव वाली बातें कर तालियां बटोरने की कोशिश करती हैं। बीजेपी की प्रदेश इकाई ने उनकी यात्रा से दूरी बनाई हुई है। प्रदेश अध्य्क्ष सतीश पूनिया कहते हैं राजे की निजी यात्रा है। एक तरह से बीजेपी सीधे तौर पर दो गुटों में बंटी नजर आती है।
प्रदेश में पार्टी का दो गुटों में बंटा होना आलाकमान के लिये बड़ी चिंता का सबब बन गया है। हालांकि अभी विधानसभा चुनाव के लिये दो साल बचे हुए हैं, लेकिन राजे की सक्रियता ने सन्देश दे दिया है कि बीजेपी की असल नेता वे ही हैं। अगले महीने की 5 तारीख को पार्टी के वरिष्ठ नेता और देश के गृहमंत्री अमित शाह जयपुर दौरे पर आ रहे हैं। शाह का दौरा संकेत देगा कि राजस्थान बीजेपी में क्या होने वाला है।
राजस्थान देश का एक मात्र ऐसा राज्य है जहां पर बीजेपी आलाकमान चाह कर भी अपने हिसाब से कुछ नहीं कर पाता है। कांग्रेस की गहलोत सरकार को गिराने के लिये बीजेपी आलाकमान ने तमाम कोशिशें की, लेकिन उल्टा उनकी प्रदेश इकाई की गुटबाजी उजागर हुई। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, बीजेपी आलाकमान को खुद की सरकार के समय भी कई बार मुंह की खानी पड़ी। वसुंधरा राजे ने ठसक के साथ प्रदेश की राजनीति की। हालांकि उन्हें घेरने की कोशिशे तभी से होती रही हैं जब से उन्होंने प्रदेश की राजनीति में कदम रखा।
राजे ने भी हार नहीं मानी और प्रदेश से लेकर दिल्ली तक उन्होंने अपने तरीके की राजनीति कर विरोधियों को झुकाया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजस्थान से कांग्रेस में अशोक गहलोत और बीजेपी मे वसुंधरा राजे ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ राज्य के ढाणी ढाणी के कार्यकर्ताओं में सीधी पकड़ है। यही वजह है कि कुछ नेताओं के विरोध से मुख्यमंत्री गहलोत की प्रदेश की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ता।
गहलोत की दूसरी खास बात यह है कि वह आलाकमान को भरोसे में लिये बिना कोई फैसला नहीं करते हैं। उनके विरोधी उनकी इसी राजनीति को आज तक नहीं समझ पाए। इसलिये जब भी उनके खिलाफ उनके विरोधियों ने मोर्चा खोला असफलता ही पाई। गहलोत और ताकतवर नेता के रूप में उभरे। राजे की राजनीति इस मामले में अलग है। वह दिल्ली से भी मोर्चा ले अपने मिशन में सफल रहती हैं। इस बार भी राजे दोनो जगह से लोहा ले रही हैं।
राजे ने अपनी धार्मिक यात्रा (Vasundhara Raje on Religious Yatra) पूरी तरह से सोच समझ कर की है। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय से ही उन्हें उनकी पार्टी में ही घेरने की कोशिश की जा रही है। हार के बाद आलाकमान ने उनको साइड कर प्रदेश में नए नेतृत्व को उभारने की कोशिश की लेकिन उससे पार्टी को नुकसान ही हुआ। प्रदेश इकाई कांग्रेस सरकार को घेरने के बजाए वसुंधरा राजे को ही टारगेट करने लगी। राजे ने जवाब देने के बजाए फिलहाल चुप्पी साधे रखी।
उनकी नाराजगी इस बात को लेकर भी रही है कि पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के बाद भी केंद्रीय नेतृव ने उन पर हमला करने वाले पार्टी नेताओं को कभी नहीं चेताया। हालांकि उन्होंने बीच बीच में विरोधियों को चेताने के लिये एक दो दौरे किये। बाढ़ के समय प्रभावित इलाकों का दौरा करने वाली अकेली नेता थी। उनकी उपेक्षा का असर उप चुनाव, निकाय, निगम चुनाव पर सीधे पड़ा। पिछले महीने हुये दो उप चुनाव सीटों पर तो बीजेपी तीसरे चौथे पर पहुंच गई। आलाकमान इस हार से खासा चिंतित हो गया। इसी बीच राजे ने धार्मिक यात्रा शुरू कर निराश कार्यकर्ताओं को मोबलाइज करना शुरू कर दिया।
विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं। लेकिन राज्य की जनता और कार्यकर्ताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिहाज से वसुंधरा राजे ने 23 नवम्बर से “देव दर्शन यात्रा” चित्तौड़गढ़ के सांवलिया मंदिर (Vasundhara Raje on Religious Yatra) से शुरू की। इसके बाद बांसवाड़ा के त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, नाथद्वारा स्थित श्रीनाथ मंदिर, उदयपुर के एकलिंग जी और चारभुजा मंदिर, अजमेर के धार्मिक स्थलों में भी दर्शन किये। इसके साथ राज्य के कई और इलाकों गई। इस यात्रा के साथ राजे कोरोनाकाल में मृतक नेताओं की घर जाकर संवेदना प्रकट कर रही हैं। यूनुस खान अशोक परनामी, कैलाश मेघवाल कालीचरण सराफ जैसे नेताओं ने यात्रा का मोर्चा संभाल रखा है। यात्रा में जुट रही भीड़ को देखते हुए इसे मारवाड़ तक बढ़ाया गया।
राजे कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिये कहती हैं कि असफलता में ही सफलता है। हार-जीत एक सिक्के के दो पहलू हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं को निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि असफलता में ही सफलता छिपी है। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई ने कहा है अंधेरा छंटेगा-सूरज निकलेगा-कमल खिलेगा। राजे वाजपेयी के साथ प्रधानमंत्री मोदी के कथनों का भी जिक्र करती हैं।
राजे एक तरह से सीधा सन्देश दे रही हैं वह प्रदेश में असल बीजेपी हैं। वहीं असल नेता भी हैं। बाकी नेताओं के मुकाबले राजे के पक्ष में यह बात भी जाती है कि वह बीजेपी की संस्थापक नेता विजयाराजे सिंधिया की पुत्री हैं। विजयाराजे की पार्टी को शिखर तक ले जाने में अहम भूमिका रही है। ऐसे में मौजूदा आलाकमान के लिये वसुंधरा की अनदेखी करना बहुत आसान नहीं है।
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