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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
देश दुनिया में हर वर्ष 18 मई को विश्व एड्स वैक्सीन दिवस (एचआईवी) मनाया जाता है। इस दिन को एड्स वैक्सीन अवेयरनेस डे के नाम से भी जाना जाता है। इसका मकसद लोगों में वैक्सीन के प्रति जागरूक बढ़ाना और एड्स के प्रति शिक्षित करना होता है। इसके साथ ही यह दिन उन डॉक्टर्स, वैज्ञानिकों को भी समर्पित है जो इसकी रोकथाम के लिए निरंतर प्रयासरत हैं फिर चाहे वो शोध हो या टीके का निर्माण। इस बार विश्व एड्स वैक्सीन दिवस कल 18 मई दिन बुधवार को मनाया जाएगा।
बता दें 80 के दशक का समय वह था कि जब किसी को पता चल जाता था कि उसे एड्स है तो आने वाले दो साल में उसकी मौत हो जाती थी। क्योंकि ये वायरस सबसे पहले इंसान के लिंफेटिक सिस्टम पर हमला करता है। एचआईवी वायरस रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है। आज तक भी एचआईवी की कोई दवा नहीं बनी है लेकिन टीके के माध्यम से इससे खुद का बचाव अवश्य किया जा सकता है। आइए जानते हैं इस दिवस को मनाने की वजह क्या है।
एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम है। कहते हैं कि एड्स से पीड़ित व्यक्ति में वायरस व्हाइट ब्लड सेल्स जिन्हें संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं के तौर पर जाना जाता है। उन्हें डैमेज करके शरीर की इम्युनिटी को पूरी तरह से खत्म कर देता है। जिससे मरीज की स्थिति धीरे-धीरे गंभीर हो जाती है। बताया जाता है कि 1981 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार एड्स की सूचना मिली थी और तब से यह एक महामारी बन गया। सही समय पर इलाज नहीं मिलने की दशा में व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। इसलिए इस दिन वैक्सीन के महत्व और जरूरत के प्रति लोगों को बताया जाता है।
इतने सालों बाद भी लोगों में एड्स को लेकर जागरूकता कम ही है। लोग इसके लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं। एड्स के लक्षणों में बुखार, ग्रंथियों में सूजन, गले में खराश, रात में अधिक पसीना आना, मांसपेशी में दर्द, सिर दर्द, अत्यधिक थकान, शरीर पर चकत्ते शामिल हैं। समय पर इन लक्षणों के बारे में चिकित्सक से संपर्क करना आवश्यक है।
कहा जाता है कि 18 मई 1997 को मॉर्गन स्टेट यूनिवर्सिटी में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की ओर से एक भाषण दिया गया था। उन्होंने कहा था कि ” सही मायने में केवल एक प्रभावी, एचआईवी निवारक टीका ही इसे सीमित कर सकता है और एड्स के खतरे को समाप्त कर सकता है।” भाषण के जरिए बिल क्लिंटन ने आने वाले एक दशक में एड्स को टीके के माध्यम से खत्म करने की बात कही थी। उसी के आधार पर विश्व एड्स टीकाकरण दिवस को मनाने का निर्णय लिया गया था। इस भाषण के बाद से संपूर्ण विश्व में लोगों को इस बात का विश्वास दिलाया गया कि एड्स को खत्म किया जा सकता है। लोगों में एड्स को लेकर जो भय था उसे दूर करने का प्रयास किया गया।
विश्व एड्स वैक्सीन दिवस पर वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों के बीच एड्स के टीके को लेकर चचार्एं होती हैं। मेडिकल कॉलेज के छात्रों को एड्स टीके के इतिहास एवं इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में बताया जाता है। आने वाले समय में वैक्सीन को लेकर और क्या संभावनाएं बन सकती हैं। इन पर भी चर्चा की जाती है। लोगों को एड्स की वैक्सीन का महत्व समझाया जाता है।
मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली: बता दें कि जरूरी नहीं कि सभी लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली एचआईवी वायरस पर रिस्पॉन्ड करे। यह वायरस व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर अटैक करता है, खासतौर से सीडी-4 सेल्स पर। जबकि इम्यून सिस्टम एचआईवी एंटीबॉडी का उत्पादन करता है। यह केवल रोग की प्रगति को धीमा कर सकता है, लेकिन वायरस को रोक या मारने की क्षमता इसमें नहीं होती।
टेस्ट के लिए नहीं मिल रहा एनिमल मॉडल: इंसान पर परीक्षण करने से पहले टीके की सुरक्षा और प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए किसी जानवर का उपयोग किया जाता है। हालांकि, शोधकतार्ओं को ऐसा करने के लिए कोई अच्छा एनिमल मॉडल नहीं मिल पा रहा है। इन सभी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद वैज्ञानिक एक सुरक्षित और प्रभावी टीका खोजने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है उनका यह प्रयास महामारी को नियंत्रित करने और समाप्त करने में मदद करेगा।
वायरस का म्यूटेट होना: दूसरा कारण यह है कि एचआईवी वायरस का बहुत तेजी से म्यूटेट यानी उत्परिवर्तित होना। यही वजह है कि चाहकर भी इसके खिलाफ काम करने वाला टीका बनाना वैज्ञानिकों के लिए कठिन हो गया है। हालांकि वैक्सीन वायरस को किसी एक रूप में लक्षित करता है, लेकिन अगर वायरस उत्परिवर्तित होता है, तो इस पर काम करना कठिन ही नहीं नामुमकिन है।
रोगजनकों का उपयोग न हो पाना: लोग नहीं जानते, लेकिन ज्यादातर मामलों में टीका बनाने के लिए वैज्ञानिक मारे गए या कमजोर रोगजनकों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दिक्कत ये है कि एचआईवी के मामले में ये तकनीक काम नहीं कर सकती। इसका कारण है कि मारे गए एचआईवी वायरस शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिए खास तरह से काम नहीं करते हैं। वायरस के किसी जीवित रूप का उपयोग करना जोखिम से भरा हो सकता है।
वायरस का डीएनए में छिप जाना: उन लोगों को वैक्सीन की बहुत ज्यादा जरूरत है, जो एचआईवी संक्रमण जैसे संक्रमण का सामना कर रहे हैं। एड्स के आगे बढ़ने से पहले उन्हें एचआईवी रहने के कारण वायरस डीएनए में छिप जाता है। इसका मतलब ये है कि वायरस की छिपी हुई कॉपीज को नष्ट नहीं किया जा सकता है। इसलिए एक वैक्सीन जो ज्यादा समय लेती है, वह एचआईवी जैसे संक्रमण को दूर करने के लिए प्रभावी नहीं हो सकती।
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