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देवी-देवता नहीं यहां होती है एक जज की पूजा! गलत फैसले के बाद खुद को दी ऐसी कठोर सजा सुन सहम जाएंगे, जानें इस अनोखे मंदिर का इतिहास

Kerala Judge Temple: केरल में एक ऐसा अजीबो-गरीब मंदिर है, जहां किसी देवी देवता की नहीं बल्कि एक जज की पुजा होती है. माना जाता है कि वह हमेशा लोगों को न्याय देते थे, मगर एक गलत फैसले की वजह से उन्होंने खुद को ही फांसी की सजा सुना दी.

Written By: shristi S
Last Updated: 2025-12-13 16:32:50

Kerala Judge Yammavan Unique Temple: भारत विभिन्न धर्म और रीति रिवाजों का गढ़ माना जाता है, यहां हर दिन ऐसे अजीबो गरीब खबरे सामने आती रहती है, जिसे आपने कभी सोचा भी नहीं होगा, ऐसी ही एक अजब गजब खबर आज हम आपके लिए लेकर आए है, जहां देवी देवताओं के मंदिर के आलावा भी एख मंदिर है सदियों पुराने जज का. जी हां, सही सुना आपने केरल में एक ऐसा अजीबो-गरीब मंदिर है, जहां किसी देवी देवता की नहीं बल्कि एक जज की पुजा होती है. माना जाता है कि वह हमेशा लोगों को न्याय देते थे, मगर एक गलत फैसले की वजह से उन्होंने खुद को ही फांसी की सजा सुना दी. ऐसे में चलिए विस्तार से जानें इस पूरी घटना को कि कैसे एक न्याय प्रिय जज जिसने हमेशा अपने फैसले से लोगों को न्याय और खुशी दी उसने किसे गलत सजा दी जिसके बाद उन्होंने खुद ही अपने आप को फांसी की सजा सुना दी और यह मंदिर अचनाक चर्चा का केंद्र कैसे बन गया.

यह मंदिर चर्चा में कैसे आया?

जानकारी के लिए बता दें कि, यह मंदिर केरल के कोट्टायम जिले में स्थित चेरुवल्ली देवी मंदिर में जज यम्मावन यानी जज अंकल के नाम से पूजा अर्चाना होती है. त्रावणकोर देवसम बोर्ड के अंधीन इस मंदिर की मुख्य देवी भद्रकाली माता हैं. साउथ इंडिया की कई जानी-मानी हस्तियां, जिनमें फिल्म स्टार और यहां तक ​​कि न्यायपालिका के सदस्य भी शामिल हैं, जज यम्मावन से आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर में आते हैं. इस मंदिर ने हाल ही में तब सुर्खियां बटोरीं जब 8 दिसंबर, 2025 को एक्टर दिलीप को 2017 के अपहरण और हमले के मामले में बरी कर दिया गया. केस दर्ज होने के बाद, एक्टर दिलीप अपने भाई के साथ 2019 में प्रार्थना करने और चढ़ावा चढ़ाने के लिए मंदिर गए थे.

क्या हैं इस मंदिर का इतिहास?

लगभग 200 साल पहले, त्रावणकोर रियासत पर कार्तिक तिरुनल राम वर्मा का राज था, जिन्हें धर्मराज (धार्मिक राजा) के नाम से जाना जाता था. उनका शासन, 7 जुलाई, 1758 से 17 फरवरी, 1798 तक, त्रावणकोर के इतिहास में सबसे लंबा था. वे प्राचीन कानूनी प्रणालियों और कानून के शासन का पालन करने के लिए जाने जाते थे. राजा के दरबार में गोविंदा पिल्लई नाम के एक जज थे, जो तिरुवल्ला के पास थलावडी के रामावर्मम परिवार से थे. वे संस्कृत के विद्वान थे और राजा की तरह, वे भी कभी कानून और न्याय के रास्ते से नहीं भटके.

पूरा मामला क्या था?

एक बार, गोविंदा पिल्लई के भतीजे, पद्मनाभ पिल्लई पर एक गंभीर अपराध का आरोप लगा, और मामला उनकी अदालत में आया. सबूत और दलीलें सुनने के बाद, जज ने अपने भतीजे को दोषी पाया और उसे फांसी की सज़ा सुनाई. हालांकि, फांसी के कुछ समय बाद, गोविंदा पिल्लई को यह जानकर गहरा सदमा लगा कि उनका फैसला गलत था और उनका भतीजा असल में निर्दोष था. जज पिल्लई गलत फैसले के कारण अपने ही भतीजे को मौत की सज़ा देने का अपराध बोध बर्दाश्त नहीं कर पाए. उन्होंने राजा से खुद को सज़ा देने की मांग की. राजा ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन बाद में मान गए और गोविंदा पिल्लई को अपनी सज़ा सुनाने का काम भी सौंप दिया. गोविंदा पिल्लई ने खुद को जो सज़ा दी, वह बहुत कठोर और भयानक थी. उन्होंने आदेश दिया कि उनके दोनों पैर काट दिए जाएं और उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाए, और उनके शरीर को तीन दिनों तक लटका रहने दिया जाए. इस आदेश को जल्द ही पूरा किया गया.

कैसे बना मंदिर?

कुछ समय बाद, इलाके में अशुभ घटनाएं होने लगीं. एक ज्योतिषी से सलाह ली गई, जिसने बताया कि जज और उनके भतीजे की आत्माओं को मुक्ति नहीं मिली है. इसके बाद, जज की आत्मा को उनके पैतृक घर पय्यमबल्ली, चेरुवल्ली में स्थापित किया गया, जबकि उनके भतीजे की आत्मा को लगभग 50 किलोमीटर दूर तिरुवल्ला के एक मंदिर में जगह मिली. बाद में, चेरुवल्ली देवी मंदिर में जयम्मावन (जज) की एक मूर्ति स्थापित की गई. 1978 में, जज के वंशजों ने मंदिर परिसर के अंदर, मुख्य देवता के गर्भगृह के बाहर उनके लिए एक अलग मंदिर बनवाया.

दर्शन का समय क्या है और यह मंदिर कहां स्थित है?

मंदिर हर दिन सिर्फ़ लगभग 45 मिनट के लिए खुलता है. पूजा रात 8 बजे के आसपास शुरू होती है, जब देवी भद्रकाली के मुख्य गर्भगृह के दरवाज़े बंद हो जाते हैं. यहाँ मुख्य प्रसाद ‘अडा’ है, जो कच्चे चावल के आटे, चीनी या गुड़ और कसे हुए नारियल से बनाया जाता है. नारियल पानी, पान के पत्ते और सुपारी भी चढ़ाई जाती है. चेरुवल्ली देवी मंदिर पुनालूर-मूवत्तुपुझा हाईवे पर, पोनकुन्नम और मणिमाला के बीच स्थित हैस. बसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कोट्टायम है, जो लगभग 37 किलोमीटर दूर है.

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