यह मंदिर चर्चा में कैसे आया?
क्या हैं इस मंदिर का इतिहास?
पूरा मामला क्या था?
एक बार, गोविंदा पिल्लई के भतीजे, पद्मनाभ पिल्लई पर एक गंभीर अपराध का आरोप लगा, और मामला उनकी अदालत में आया. सबूत और दलीलें सुनने के बाद, जज ने अपने भतीजे को दोषी पाया और उसे फांसी की सज़ा सुनाई. हालांकि, फांसी के कुछ समय बाद, गोविंदा पिल्लई को यह जानकर गहरा सदमा लगा कि उनका फैसला गलत था और उनका भतीजा असल में निर्दोष था. जज पिल्लई गलत फैसले के कारण अपने ही भतीजे को मौत की सज़ा देने का अपराध बोध बर्दाश्त नहीं कर पाए. उन्होंने राजा से खुद को सज़ा देने की मांग की. राजा ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन बाद में मान गए और गोविंदा पिल्लई को अपनी सज़ा सुनाने का काम भी सौंप दिया. गोविंदा पिल्लई ने खुद को जो सज़ा दी, वह बहुत कठोर और भयानक थी. उन्होंने आदेश दिया कि उनके दोनों पैर काट दिए जाएं और उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाए, और उनके शरीर को तीन दिनों तक लटका रहने दिया जाए. इस आदेश को जल्द ही पूरा किया गया.
कैसे बना मंदिर?
कुछ समय बाद, इलाके में अशुभ घटनाएं होने लगीं. एक ज्योतिषी से सलाह ली गई, जिसने बताया कि जज और उनके भतीजे की आत्माओं को मुक्ति नहीं मिली है. इसके बाद, जज की आत्मा को उनके पैतृक घर पय्यमबल्ली, चेरुवल्ली में स्थापित किया गया, जबकि उनके भतीजे की आत्मा को लगभग 50 किलोमीटर दूर तिरुवल्ला के एक मंदिर में जगह मिली. बाद में, चेरुवल्ली देवी मंदिर में जयम्मावन (जज) की एक मूर्ति स्थापित की गई. 1978 में, जज के वंशजों ने मंदिर परिसर के अंदर, मुख्य देवता के गर्भगृह के बाहर उनके लिए एक अलग मंदिर बनवाया.