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Unique Funeral Custom: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अमेठी (Amethi) जिले में एक ऐसा गांव है, जहां मृत्यु के बाद हिंदू शव को जलाते नहीं, बल्कि दफनाते हैं. यह परंपरा पिछले दो सदियों से चली आ रही है और आज भी यहां के लोग इस परंपरा का पालन पूरी श्रद्धा और मान्यता के साथ करते हैं. इस गांव का नाम है टेढ़ई (Tedhai), जो अमेठी तहसील के गौरीगंज ब्लॉक में स्थित है. यहां की अनोखी परंपरा ने धर्म, संस्कृति और समाजशास्त्र के जानकारों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है.
पारंपरिक दाह संस्कार से अलग परंपरा
जहां एक ओर हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद शरीर का अग्नि से दाह किया जाए ताकि आत्मा शरीर के बंधन से मुक्त होकर पंचतत्वों में विलीन हो सके, वहीं टेढ़ई गांव में यह प्रक्रिया बिल्कुल अलग है. यहां हिंदू परिवार अपने प्रियजनों के शव को जलाने के बजाय मिट्टी में दफनाते हैं. चाहे मृतक किसी भी जाति या वर्ग का क्यों न हो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या ठाकुर सभी का अंतिम संस्कार एक ही तरह से किया जाता है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि टेढ़ई गांव के लोग सतनामी बाबा जी के अनुयायी हैं. बाबा जी की शिक्षाओं के अनुसार, शरीर को अग्नि में जलाना उचित नहीं, बल्कि उसे धरती माता को सौंप देना चाहिए ताकि आत्मा को शांति और मुक्ति दोनों प्राप्त हों. यही कारण है कि इस गांव में यह प्रथा एक धार्मिक अनुशासन की तरह निभाई जाती है.
200 साल पुरानी अनोखी परंपरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह प्रथा लगभग 200 वर्षों से अधिक पुरानी है. गांव के सबसे बुजुर्ग निवासी बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने भी यही परंपरा निभाई थीऔर तब से यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है. यहां अंतिम संस्कार के समय मिट्टी से बना एक छोटा टीला बनाया जाता है, जिसके ऊपर तुलसी का पौधा लगाया जाता है जो जीवन, आस्था और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है.