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1540 की ये लड़ाई, जिसमें शेरशाह की 80 हज़ार की सेना पर मारवाड़ की 6 हज़ार की सेना का दिखा दबदबा

Sher Shah Suri, Mughal Emperor: 16वीं सदी में भारत में बड़े बदलाव हुए। पानीपत की लड़ाई में लोदी हार गए और मुगलों की सत्ता कायम हुई। लेकिन 1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराकर अफगानों की सत्ता दोबारा स्थापित कर दी। शेरशाह को अपनी सत्ता बचाने के लिए कई युद्ध लड़ने पड़े, जिनमें मारवाड़ का युद्ध बहुत खास था। सुमेलगिरी में शेरशाह 80 हजार सैनिकों के साथ आया, लेकिन सिर्फ 6 हजार सैनिकों वाले मारवाड़ के हिंदू राजा उसे रोकने में सफल रहे।

Last Updated: September 23, 2025 | 5:53 PM IST
1540 की ये लड़ाई, जिसमें शेरशाह की 80 हज़ार की सेना पर मारवाड़ की 6 हज़ार की सेना का दिखा दबदबा - Gallery Image
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हुमायूं की हार

बिलग्राम की लड़ाई (1540) में हुमायूं को शेरशाह से हार मिली। इस हार के बाद हुमायूं को भारत छोड़ना पड़ा और शेरशाह दिल्ली का शासक बन गया। कहा जाता है कि शेरशाह ने 1526 की पानीपत की हार का बदला ले लिया।

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सुमेलगिरी का आमना-सामना

राजस्थान के सुमेलगिरी में शेरशाह 80 हजार सैनिकों के साथ पहुंचा। उसका इरादा मारवाड़ को दिल्ली की सल्तनत में मिलाने का था। इसके सामने सिर्फ 6 हजार सैनिक थे, लेकिन वे डटकर लड़ने को तैयार थे।
राजस्थान के सुमेलगिरी में शेरशाह 80 हजार सैनिकों के साथ पहुंचा। उसका इरादा मारवाड़ को दिल्ली की सल्तनत में मिलाने का था। इसके सामने सिर्फ 6 हजार सैनिक थे, लेकिन वे डटकर लड़ने को तैयार थे।

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36 कौमों की एकजुटता

मारवाड़ की तरफ से 36 अलग-अलग कामों के हिंदू राजा एकजुट होकर लड़े।उनकी संख्या कम थी, लेकिन हिम्मत और साहस बहुत बड़ा था। उन्होंने शेरशाह की बड़ी सेना को कड़ी चुनौती दी।

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शेरशाह की वापसी

कई महीनों की घेरेबंदी के बाद भी शेरशाह को सफलता नहीं मिली। उसके सिपहसालारों ने उसे दिल्ली लौटने की सलाह दी। मजबूरी में शेरशाह को पीछे हटना पड़ा और उसने कहा कि "एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं दिल्ली की सल्तनत खो सकता था।"