कॉनफिडेंस से लेकर करुणा तक, जानें वह 5 चीजें जो ऐश्वर्या राय बच्चन को बनाता है हर मॉम के लिए रोल मॉडल
ऐश्वर्या राय बच्चन जीती हैं सिंपल लाइफस्टाइल
सेलिब्रिटी होने के बावजूद, ऐश्वर्या राय अपनी बेटी आराध्या की परवरिश किसी भी दूसरे बच्चे की तरह करती हैं. ऐश्वर्या आराध्या को बॉलीवुड की चकाचौंध से दूर रखती हैं और उसके डेली रूटीन पर ज़्यादा ध्यान देती हैं. आराध्या को स्कूल छोड़ना, उसे सोने से पहले कहानियां सुनाना और उसके साथ खेलना ये सब ऐश्वर्या की टॉप प्रायोरिटी हैं. एक इंटरव्यू में ऐश्वर्या ने कहा कि वह चाहती हैं कि आराध्या अपनी खुद की पहचान बनाए, न कि अपने माता-पिता की पहचान पर निर्भर रहे. यही सोच उन्हें 'सुपरमॉम' बनाती है.
बेटी आराध्या की पूरी देखभाल ऐश्वर्या की प्रायोरिटी
आराध्या के जन्म के बाद, ऐश्वर्या की प्रायोरिटी पूरी तरह बदल गईं। उन्होंने खुलकर कहा कि उन्होंने खुशी-खुशी अपना काम एक तरफ रख दिया ताकि वह सबसे पहले एक मां के तौर पर अपनी बेटी के लिए हमेशा मौजूद रह सकें. ऐश्वर्या अक्सर आराध्या को अपने साथ शूट या इवेंट्स में ले जाती हैं, लेकिन तभी जब माहौल बच्चे के लिए सुरक्षित हो. उन्होंने कभी भी अपने करियर को पूरी तरह नहीं छोड़ा, लेकिन उन्होंने मातृत्व को भी टॉप प्रायोरिटी दी. डिलीवरी के बाद वजन बढ़ने को लेकर मीडिया की आलोचना के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हमेशा अपनी बेटी को अपने कंधों पर उठाया – जो एक मां के अपने बच्चे के लिए सुरक्षा और प्यार का प्रतीक है.
ऐश्वर्या राय की आत्मविश्वास और पॉजिटिव सोच
ऐश्वर्या की पेरेंटिंग सिर्फ आत्मविश्वास, दया और जिज्ञासा पर ही फोकस नहीं करती. ऐश्वर्या अक्सर चैरिटी का काम करके और दुनिया के बारे में सीखकर आराध्या में पॉजिटिव सोच डेवलप करती हैं. एक हालिया आर्टिकल में कहा गया था कि एक मां का आत्मविश्वास उसके बच्चे के लिए आईना बन जाता है, और ऐश्वर्या खुद इसका एक उदाहरण लगती हैं.
ऐश्वर्या राय का नियमों से ज़्यादा खुशी पर फोकस
आज की पीढ़ी के लिए ऐश्वर्या की टॉप पेरेंटिंग टिप यह है कि बच्चों पर बहुत ज़्यादा नियम न थोपें. उनका मानना है कि खुशी सबसे पहले होनी चाहिए. नियम जरूरी हो सकते हैं, लेकिन वे बच्चे को सीमित नहीं करने चाहिए. वह शादी और बच्चे होने के बाद "खुद को न खोने" के बारे में भी अक्सर बात करती हैं.
ऐश्वर्या राय ने बेटी आराध्या को सिखाया परंपराओं से जुड़े रहना
ऐश्वर्या आराध्या को भारतीय परंपराओं से जोड़ती हैं, लेकिन उसे जमीन से भी जोड़े रखती हैं. वह कहती हैं कि हर मां अपना तरीका जानती है, और सलाह देने के बजाय खुद उदाहरण पेश करना बेहतर होता है.