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Mulayam Singh Yadav: सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने अंतिम सफर पर

BY: Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : October 10, 2022, 11:04 am IST
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Mulayam Singh Yadav: सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने अंतिम सफर पर

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): राजनीती में नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने सोमवार की सुबह अपने जीवन की अंतिम सांस ली। मुलायम सिंह का निधन गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में हुआ ,वो लम्बे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। आपको बता दें मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक थे ,नेताजी के निधन के बाद उत्तर प्रदेश में तीन दिन के राजकीय शोक का ऐलान योगी सरकार ने किया है।

नेताजी जी के निधन का समाचार तब मिला जब उनके सुपुत्र और वर्तमान में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर मुलायम सिंह यादव के निधन की खबर दी। अखिलेश ने अपने ट्वीट में कहा ‘आदरणीय नेताजी ,सबके नेताजी नहीं रहे। ‘ जिसके बाद राजनीतिक गलियारे में नेताजी के निधन पर शोक की लहर दौड़ गई। पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से नेताजी को पीएम समेत अन्य नेताओं ने नेताजी को याद किया।

जानिए नेताजी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से :

राजनीति में एंट्री करने से पहले मुलायम कुश्ती लड़ते थे। एक दफा उनके गुरु और पूर्व राज्यसभा सांसद उदय प्रताप ने बताया था कि मुलायम एग्जाम छोड़कर कुश्ती लड़ने चले जाते थे। 1960 में जब मुलायम कॉलेज में पढ़ते थे, तब कवि सम्मेलन के मंच पर दरोगा को एक युवा ने चित कर दिया। इस युवा का नाम था मुलायम सिंह यादव। वहीं, मुलायम जो आगे चलकर इंडियन पॉलिटिक्स में 55 सालों तक अपने दांव-पेंच से विरोधियों को चित करने के लिए मशहूर रहे। समाजवाद के सहारे राजनीति करने वाले मुलायम के साथ आगे चलकर कई विवाद भी जुड़े, लेकिन मुलायम पत्थर की तरह हर तूफान से टकराते रहे।

नेताजी का राजनीतिक परिचय :

मुलायम सिंह यादव राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद राजनीति में आए थे। नेताजी 8 सालों तक देश जे सबसे बड़े सूबे के सीएम रहे। 25 सालों तक विधायक ,21 सालों तक तक सांसद और 2 सालों तक रक्षामंत्री के पद पर रहे।

नेताजी पर लगा था रामभक्तों पर गोली चलवाने का आरोप

1989 में लोकदल से मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 90 का दौर शुरू होते-होते देशभर में मंडल-कमंडल की लड़ाई शुरू हो गई। ऐसे में 1990 में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए कारसेवा की।

30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई। कारसेवक पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे। मुलायम सिंह यादव ने सख्त फैसला लेते हुए प्रशासन को गोली चलाने का आदेश दिया।

पुलिस की गोलियों से 6 कारसेवकों की मौत हो गई। इसके दो दिन बाद फिर 2 नवंबर 1990 को हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए, मुलायम के आदेश पर पुलिस को एक बार फिर गोली चलानी पड़ी, जिसमें करीब एक दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई। कारसेवकों पर गोली चलवाने के फैसले ने मुलायम को हिंदू विरोधी बना दिया। विरोधियों ने उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’बना दिया। हालांकि, बाद में बाद में मुलायम ने कहा था कि ये फैसला कठिन था। लेकिन, मुलायम को इसका राजनीतिक लाभ भी हुआ था।

कारसेवकों के विवादिच ढांचे के करीब पहुंचने के बाद मुलायम ने सुरक्षाबलों को गोली चलाने का निर्देश दे दिया। सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई में 16 कारसेवकों की मौत हो गई, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए। बाद में मुलायम ने बताया कि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 28 लोग मारे गए थे।

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