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इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की समाधियों के अलावा भारतीय जनता पार्टी के नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर भी पहुंचे। सोमवार सुबह उनका अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि देने को कांग्रेस सही मायने में भारत जोड़ो के रूप में देख रही है। राहुल ने निसंदेह वाजपेयी की समाधि पर जाकर बीजेपी पर गुगली फेंक दी है।
उन्होंने देश की जनता को यह संदेश दे दिया है कि वो सचमुच नफरत की राजनीति को खत्म करना चाहते हैं। पर क्या अटल की समाधि स्थल पर जाना ही काफी है? क्या यह मान लिया जाए कि कांग्रेस अब बीजेपी की तरह आक्रामक राजनीति करना चाहती है? जिस तरह बीजेपी ने सरदार बल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस आदि को अपना बना लिया क्या उस तरह अटल को कांग्रेसी बनाने की तैयारी राहुल कर सकते हैं?
ज्ञात हो, मनमोहन सिंह अपने प्रधानमंत्रित्व काल में हर साल 25 दिसंबर को अटल जी से मिलने उनके घर पहुंचते थे और उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद देते थे। पर कांग्रेस में कोई दूसरा पीएम या नेता कुछ भी कर ले उसे कांग्रेस का कल्चर नहीं माना जाता रहा है। कांग्रेस का कल्चर उन्हीं चीजों को माना जाता है जो नेहरु परिवार को लोग करते रहे हैं। क्योंकि मनमोहन सिंह न केवल अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर उदार भाव रखते थे बल्कि पीवी नरसिंहा राव को लेकर भी उनके लिए बहुत उदार भाव रहा करता था। हालांकि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू तक पक्ष-विपक्ष के बीच इस तरह का बंटवारा नहीं था इसलिए एक दूसरे के लिए उदार भाव रखना कोई बड़ी बात नहीं होती थी।
नेहरु ने अटल बिहारी वाजपेयी में देश के भविष्य का पीएम देखा था। तो वाजपेयी को खुद इंदिरा गांधी में दुर्गा दिखीं थीं। पर उसके बाद देश की राजनीति हो या कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति चीजें बहुत बदल गईं। नरसिंहा राव को कांग्रेस अपना नेता मानने में भी संकोच करती है। उनको श्रद्धांजलि देना तो दूर की बात है उनकी उपलब्धियों को भी गिनाना पसंद नहीं करती है। वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने वाले राहुल गांधी ने कितनी बार नरसिम्हा राव को श्रद्धांजलि दी होगी। यही बात सोनिया गांधी या प्रियंका के लिए भी। शायद फिरोज गांधी को लेकर परिवार में कोई उत्साह नहीं नजर आता।
भारतीय राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है। अपने विरोधी विचारधारा के नेताओं को श्रद्धांजलि देने उनके समाधि स्थलों पर जाने की परंपरा रही है। भारतीय राजनीति अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश आदि से अलग रही है। यहां कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि सत्ताधारी और विपक्ष के नेताओं के बीच आमना सामना भी मुश्किल हो जाता रहा है। हां पर देश की राजनीति अभी जिस दौर में जा रही है उस समय राहुल का वाजपेयी की समाधि पर जाना लोगों को कूल लग रहा है।
बीजेपी के कोर वोटर्स का एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो कांग्रेस से छिटक कर आया है। इस तबके को बीजेपी की कट्टरपंथी बातें नहीं सुहाती हैं। इस तबके को वाजपेयी की तरह का उदार चेहरा पसंद आता है। अगर पांच प्रतिशत भी ऐसे वोटर्स को राहुल गांधी के इस कदम से कांग्रेस के लिए सहानुभूति पैदा होती है तो यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
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