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India News(इंडिया न्यूज), Adivasi vs Kurmi: झारखंड में कुर्मियों का आंदोलन जारी है। कुरमी चाहते है आदिवासियों का दर्जा मिले। इनकी मांग सालों पुरानी है। झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में कुर्मियों की जो आबादी है वह करीबन 3 करोड़ है। यानि इन सीमावर्ती इलाके में कुर्मियों की बड़ी आबादी है। आज के समय में कोई भी राजनीतिक दल कुरमी समाज का खुलकर विरोध या वक्तव्य देने से परहेज कर रहा हैं।
इस समाज की नाराजगी से पार्टियों की परेशानी लाजिमी है। समय के साथ साथ कुरमी आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है। लंबे समय से एसटी में शामिल करने की मांग कर रहें कुर्मियों ने अब अपनी ताकत का एहसास कराना शुरू कर दिया है । इस मांग को लेकर हाल ही में बड़े आंदोलन हुए। सबसे असरदार रहा रेल रोको आंदोलन। तीसरी बार भी रेल रोको में बड़ी संख्या में भीड़ उमडी।
कुर्मियों का कहना है कि अंग्रेजों ने हमारे पूर्वजों को इसलिए आदिवासी माना था। क्युकी हमारी संस्कृति, रीति रिवाज, परंपरा, त्यौहार यह सभी आदिवासी से मिलते जुलते हैं। तो हम आदिवासी क्यों नहीं है। उनका तर्क है कि आजादी के बाद कुरमी जाति के साथ छलावा हुआ। 1913 में अंग्रेज सरकार ने कुर्मियों को अनुसूचित जनजाति माना था।
1913 और 1921 के सरकारी जनगणना दस्तावेज में कुरमी आदिवासी के श्रेणी में थे। लेकिन 1931 की जनगणना में उन्हें इस श्रेणी से हटा दिया गया। कुरमी समाज के लोग कह रहे हैं कि आदिवासी का दर्जा उन्हें मिला हुआ था। जो भूल बस उससे छीन लिया गया। सरकार अब इस भूल को सुधारे। और सरकार को सुधारना ही चाहिए।झारखंड में 2004 में जब मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा हुआ करते थे तो उन्होंने कुरमी को एसटी में शामिल करने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी।
ये उस समय अर्जुन मुंडा ने खुद कहा था। दरअसल उस वक्त बीजेपी की अर्जुन मुंडा समता पार्टी की बैसाखी पर टिकी थी । मुंडा के मंत्रिमंडल में जलेश्वर महतो और लालचंद महतो ताकतवर थे। ये वो नेता थे जिनकी नाराजगी से बाबूलाल मरांडी की सत्ता गई थी। समता पार्टी यानि आज का जेडीयू। हालांकि अब अर्जुन मुंडा पलट गए है। इनका साफ कहना है की पहले राज्य सरकार को केंद्र को प्रस्ताव भेजने चाहिए। यानी हेमंत सरकार के ऊपर इसे डाल दिया गया है।
इनका आरोप है की क्या हेमंत की सरकार नही चाहती है कि ऐसा कोई प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाए। अभी कोई ऐसा प्रस्ताव केंद्र के पास विचारधीन नहीं है। ऐसे में केंद्र कुछ नही कर सकता। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के इस बयान से कुरमी समाज गुस्से में है। कुरमी समाज के मुताबिक अर्जुन मुंडा ने अबतक बरगलाते रहे है। अब इन्हे कुरमी बहुल गांव में घुसने से रोका जाएगा। बहरहाल कुर्मियों की मांग को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। और इसके विरोध में आदिवासी नेता भी एकजुट होने लगे है।
इन आदिवासी नेताओ का कहना है कि अंग्रेजों ने जो गलती की वह अब दोहराया नही जा सकता। उस वक्त,आदिवासियों के साथ रहने की वजह से कुर्मियों को आदिवासी की सूची में शामिल किया गया था। लेकिन देश आजाद होने के बाद अंग्रेजों की भूल को सुधार कर पिछड़ा वर्ग की सूची में रखा गया है। दरअसल ये सरकारी नौकरी को लेकर है।
युवा चाहते है एसटी का लाभ मिले और नौकरी आराम से झोली में हो। इस वजह से कुर्मी समाज दोबारा इसे एसटी में शामिल करवाने की जीद पर अड़े हैं। आदिवासियों को लगता है कि कुर्मियों को एसटी का दर्जा मिल जाने से आदिवासियों का हक मारा जाएगा। और उनके कोटे की नौकरी और तमाम सुविधाएं कुर्मी हासिल कर लेंगे। कुर्मी इस इलाके में आदिवासियों से ज्यादा संपन्न है। उनके पास ज्यादा जमीन है यह आदिवासियों का तर्क है।
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