India News (इंडिया न्यूज),Maharashtra News: शहीदों की मज़ारों पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा। देश के लिए मर-मिटने वाले हर वीर जाँबाज़ के आख़िरी सलाम में ये बोल गूंज उठते हैं। महाराष्ट्र के बुलढाणा में जब अग्निवीर जान गवाते लक्ष्मण का पार्थिव शरीर पहुँचा तो एक बार फिर ये बोल लोगों की जुबां पर आ गए।
देश के लिए मरने-मिटने वाले जान गवाए लक्ष्मण को लोगों ने आख़िरी सलाम किया। देश के लिए मर मिटने का जज़्बा और जुनून ही है जो याद रह जाता है। ये लाइनें आपको याद हैं लेकिन बहुत कम लोगों को इन पंक्तियों के रचयिता का नाम याद है।
इन पंक्तियों के लेखक है जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी, जिन्होंने शहीदों को सलाम करते वक़्त उनकी धन-राशि नहीं पूछी, देशभक्ति के भावों का तूफ़ान महसूस किया, जज़्बा देखा लेकिन आज सियासत का तक़ाज़ा कुछ ऐसा है कि ऐसे भावुक लम्हों में भी नेताओं की ज़ुबान पर विवादों के बोल आ जाते हैं।
अग्निवीर गवाते लक्ष्मण ने सियाचिन में ड्यूटी के दौरान अपनी जान देश के नाम क़ुर्बान कर दी। काराकोरम रेंज में लगभग 20,000 फ़ीट की ऊंचाईयों पर ये देश के पहले अग्निवीर की शहादत है। देश अग्निवीर गवाते लक्ष्मण के इस अमर-बलिदान को नमन कर रहा है। लेकिन ऐसे वक़्त में सोशल मीडिया पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सवाल उठा दिया।
जिस वक़्त जान गवाते लक्ष्मण को सेना के जांबाज़ साथी सैल्यूट कर रहे थे, उस वक़्त राहुल गांधी इस सवाल का जवाब मांग रहे थे कि अग्निवीरों को ग्रेच्युटी क्यों नहीं, सैन्य सुविधाएं क्यों नहीं, शहीद परिवार को पेंशन क्यों नहीं है। जिस वक़्त बुलढाणा के पिंपलगांव सराय गाँव में लोग अपने प्यारे लक्ष्मण को पूरे सम्मान के साथ विदाई दे रहे थे, उस वक़्त कांग्रेस नेता अग्निवीर को भारत के वीरों के अपमान की योजना बता रहे थे।
इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च बलिदान की भरपाई कभी भी किसी आर्थिक पैकेज से नहीं की जा सकती। सेना ने अपने जांबाज़ को सलाम किया। सोशल मीडिया पर वो रकम भी बार-बार शेयर की गई, जो अग्निवीर गवाते लक्ष्मण के परिवार को मिलेगी।
इसमें बीमा की राशि- 48 लाख रूपये, अनुग्रह राशि- 44 लाख रुपये, चार साल के कार्यकाल की बाक़ी बची सैलरी 13 लाख रुपये, आर्म्ड फ़ोर्स केजुअल्टी फंड से 8 लाख रुपये और सेवा निधि में अग्निवीर की जमा राशि के अलावा सरकार की ओर से जमा अंशदान भी परिवार को मिलेगा।
लेकिन ये सारा गणित उस परिवार के लिए बेमानी है, जिसने अपने अज़ीज़ को खोया है। इस राशि को वक़्त के साथ बढ़ाया जाना चाहिए और हो सकता है देर-सवेर सरकार इस बारे में कोई बड़ा फ़ैसला भी ले। लेकिन भारत के आम लोगों के लिए भावनात्मक मौक़ों पर ये सियासी लड़ाई कहीं ज़्यादा दुखदायी साबित होती है।
सवाल कितने भी अहम क्यों न हों, वक़्त की नज़ाकत को समझना उससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। ऐसा नहीं है कि ये सवाल इससे पहले नहीं उठे। जब अग्निवीर योजना आई तो विपक्ष ने बयानों के तीर चलाए मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंचा। संसद से सड़क तक संग्राम का दौर चला आख़िर में देश की सर्वोच्च अदालत ने भी अग्निवीर योजना पर मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि इस योजना में मनमानी जैसी कोई बात नहीं है।
सार्वजनिक हित और राष्ट्रहित में लिए गए फ़ैसले पर विवाद कोर्ट की टिप्पणी के साथ ही थम जाना चाहिए था। लेकिन अफ़सोस ऐसा हो नहीं सका। विधानसभा चुनावों के बीच हो सकता है ऐसे बयानों से कुछ सियासी हित सधते हों लेकिन तक़ाज़ा तो यही है कि पार्टी हित को देश हित में क़ुर्बान करने का साहस ज़रूर दिखाना चाहिए।
सियासी जुमलों की बजाय माखन लाल चतुर्वेदी की कविता ज़ुबान पर आनी चाहिए।
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश गवाने
जिस पथ जावें वीर अनेक !
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