India News (इंडिया न्यूज़): उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में I.N.D.I.A. गठबंधन टूट चुका है। यूपी में 80 तो एमपी में 29 लोकसभा सीटें हैं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने एक दूसरे को पीठ दिखा दी है। तंज़ कसते हुए शाब्दिक बाण ‘चिरकुट’ जैसे शब्दों से सुशोभित हो चले हैं। अखिलेश हुए ग़ुस्से से लाल, कांग्रेस पर उठाया सवाल। ख़ैर ये सब हम टीवी वालों की तुकबंदी है। ‘साहिर लुधियानवी’ लिखते हैं- “वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा”। सियासत में मोड़ ख़ूबसूरत नहीं, मौक़ापरस्त होते हैं।
याद कीजिए अखिलेश और राहुल 2017 में ‘यूपी के लड़के’ बने थे, फ़ेल हो गए वो बात अलग है। कांग्रेस और सपा का ‘रिसियाना’ I.N.D.I.A. गठबंधन को नुक़सान पहुंचाएगा। कहां नीतीश-लालू जैसे समाजवाद के पुरोधा 2024 का सपना देख रहे हैं। कहां सपा और कांग्रेस ने पलीता लगा दिया। ग़ालिब कहते हैं- ‘निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले’।
अल्फ़ाज़ जब ‘चिरकुट’, ‘अखिलेश वखिलेश’ जैसे सतही हो जाएं तो जज़्बात का बेआबरू होना तय है। मेरा मानना है कि अखिलेश और कमलनाथ या अजय राय जैसे नेताओं को बशीर बद्र को पढ़ने की ज़रूरत है कि- “दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों।”
I.N.D.I.A. गठबंधन में दरार है, ये तो पता था, लेकिन पूरी तरह बनने से पहले इसका दम निकलने लगेगा, इसका अंदाज़ा नहीं था। लोकसभा चुनाव जीतना है तो आपको कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के पॉलिटिकल डायनामिक्स को समझना होगा। अखिलेश ओबीसी में यादवों के बुलंद नेता बनना चाहते हैं, मुस्लिम वोटबैंक के साथ यूपी में फिर राज करना उनका ख़्वाब है। कांग्रेस की सोच आज भी गठबंधन का मुखिया बने रहने की है।
कांग्रेस को लगता है कि यूपी में समाजवादी पार्टी के लिए ज़मीन छोड़ने का मतलब है देश के सबसे बड़े सूबे में सरेंडर कर देना। बात यहां तक आ पहुंची है कि अब ना तो कोई रुकना चाहता है और ना ही झुकना। कांग्रेस 2024 में ख़ुद और राहुल के रिवाइवल का लॉन्च पैड तलाश रही है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा करके अदम गोंडवी की कलम के अंदाज़ में कहने की कोशिश की है कि, “शायद मुझे निकाल कर पछता रहे हैं आप, महफ़िल में इस ख़्याल से फिर आ गया हूं मैं”।
I.N.D.I.A. गठबंधन की गाड़ी बेपटरी होने लगी है। इधर सपा और कांग्रेस की राहें जुदा हैं, उधर नीतीश कुमार की बीजेपी से मुहब्बत ज़ुबान पर जवां हो रही है। दुष्यंत भी क्या ख़ूब लिख गए- “मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम। तू न समझेगा सियासत तू अभी नादान है।” नीतीश का ये कहना कि ‘जब तक जीवित रहेंगे, बीजेपी वालों से दोस्ती ख़त्म होगी क्या’ लालू के कान खड़े कर गया होगा। मज़े की बात ये कि गठबंधन का नाम I.N.D.I.A. और इससे ‘N’ और ‘A’ ग़ायब होते नज़र आ रहे हैं।
‘N’ यानी NITISH और ‘A’ यानी AKHILESH। बीजेपी मज़े ले रही है, नेता कह रहे हैं- दिल्ली में दोस्ती, राज्यों में कुश्ती- ये कैसा बेमेल गठबंधन है। 28 पार्टी के 64 नेता पिछले महीने मुंबई में मिल चुके हैं, राहुल तो लालू के घर पर नॉनवेज तक पका चुके हैं। बस कुछ नहीं पक पा रहा तो 2024 के लिए I.N.D.I.A. गठबंधन। तीन मीटिंग हो चुकी है, काठ की हांडी बार-बार चढ़ कर उतर जा रही है।
सत्ता का पत्ता कभी सीधे हाथों से नहीं फेटा जाता। राजनीति के समाजशास्त्र को समझना ज़रूरी है। समाजशास्त्र समझेंगे तो गठबंधन कर पाएंगे। अकड़े रहे तो टूटेंगे, झुके तो शायद बच पाएंगे। कांग्रेस, एनसीपी, डीएमके, उद्धव की शिवसेना, सपा जैसे दल हाशिए पर हैं। जेडीयू, आरजेडी, टीएमसी जैसे दलों में असुरक्षा है। भारतीय जनता पार्टी के अनुशासन और गठबंधन को बांध कर चलने की क्षमता से सीखने की ज़रूरत है।
गठबंधन राजनीति के महायोद्धा अटल बिहारी वाजपेयी से सबक़ लेने की ज़रूरत है। याद कीजिए सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद एनडीए के संयोजक की ज़िम्मेदारी हमेशा दूसरे दलों को ही सौंपी गई। I.N.D.I.A. गठबंधन की नींव रखने वालों के लिए सबसे ज़रूरी है। दलों को बांधे रखना, वरना ‘राहत इंदौरी’ के अंदाज़ में दुनिया कहने लगेगी- “नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है।”
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