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इंडिया न्यूज, चंडीगढ़:
आज पंजाब को नया मुख्यमंत्री मिला है। पंजाब की सियासत (Punjab Politics) में उलटफेर लगातार जारी है। लगभग पांच माह पहले शुरू हुई अंदरूनी कलह का पटाक्षेप शनिवार को कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के साथ हो गया। और रविवार को पार्टी ने एक नई राजनितिक रणनीति के तहत एक दलित सिख को नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। इससे पहले अकाली दल ने इसी तरह का सियासी दांव चलकर सभी को चौंका दिया था।
पंजाब में दलितों का 32 फीसदी से ज्यादा वोटबैंक है। पंजाब के राजनेताओं को यह बात अच्छी तरह से पता है कि दलितों के समर्थन के बिना 2022 का चुनाव जीतना संभव नहीं है। अब कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़कर दलित को मुख्यमंत्री बनाया है। आपको याद होगा कैसे दशकों तक भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाले अकाली दल ने अचानक बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया था।
पंजाब की राजनीति (Punjab Politics) के धुरंधर प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल ने मायावती से हाथ मिलाकर राज्य के पिछड़े और दलित वोटों पर अपना कब्जा जमाने की तैयारी शुरू की थी। उसी तरह कांग्रेस ने भी उसी राह पर चलते हुए दलित वोट बैंक को अपनी तरफ करने का कदम उठाया है।
राज्य में एक तिहाई से ज्यादा दलितों और पिछड़ों का वोटबैंक चुनावी नतीजों के बदलने में अहम भूमिका अदा करता है। राज्य में अनुसूचित जातियों की काफी संख्या है। पंजाब की सत्ता पाने के लिए 40 फीसदी से ऊपर वोट प्रतिशत होनी चाहिए।
भाजपा ने केंद्र में राज्यमंत्री के तौर पर काम कर चुके विजय सांपला को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का चेयरमैन बनाया था। सांपला को राष्ट्रीय चेयरमैन की कुर्सी देकर भाजपा की ओर से पंजाब की 34 विधानसभा सीटों पर प्रभाव डालने की पूरी रणनीति तैयार की गई है। पंजाब में 2022 में भाजपा अकेले चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। राज्य में पार्टी पहले ही दलित वोट बैंक को लेकर काफी गंभीर रही है।
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