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India News (इंडिया न्यूज़),Ajmer News: अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, और हाल ही में एक याचिका के कारण यह चर्चा में है, जिसमें दावा किया गया है कि दरगाह परिसर में एक हिंदू मंदिर भी है। इस याचिका पर कोर्ट द्वारा दरगाह कमेटी को पार्टी बनाए जाने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है, और इसे लेकर कई प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
इस मामले में दरगाह कमेटी को गुरुवार तक नोटिस नहीं मिला था, और नोटिस मिलने के बाद ही वह आगे कदम उठाने का फैसला करेगी। दरगाह कमेटी का कार्यकाल 4 जून 2023 को समाप्त हो गया था, लेकिन अब तक सरकार ने नए कमेटी का गठन नहीं किया है। दरगाह कमेटी के सूत्रों के अनुसार, दरगाह एक्ट के तहत, कमेटी ही दरगाह की व्यवस्थाओं के बारे में निर्णय लेती है, और इन फैसलों को लागू करने की जिम्मेदारी नाजिम और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की होती है। अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होने वाली है, और इस मामले पर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलात मंत्री की ओर से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
इसी बीच इस मामले से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में श्री संकट मोचन महादेव मंदिर के मामले में कोर्ट द्वारा पार्टी बनाई गई दरगाह कमेटी को गुरुवार तक नोटिस नहीं मिला है। इस नोटिस के मिलने के बाद ही कमेटी आगे कदम उठाएगी। कमेटी के नाजिम पद पर कार्यभार मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी दिल्ली से ही संभाल रहे हैं। यहां उनके अधीनस्थ कार्य देख रहे हैं।
कमेटी के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक नोटिस के अध्ययन के बाद ही तय हो पाएगा की कोट कमेटी से क्या चाहती है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को है। ऐसे में अभी 20 दिन से अधिक का समय है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का प्रबंधन संभालने वाली दरगाह कमेटी का कार्यकाल 4 जून 2023 को पूरा हो गया था। उसके बाद से अब तक केंद्र सरकार ने समिति का गठन नहीं किया है। पिछली बार समिति का गठन तत्कालीन केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के कार्यकाल में हुआ था। उनके बाद पूर्व मंत्री स्मृति ईरानी ने कमेटी का गठन नहीं किया। अब मौजूदा अल्पसंख्यक मामलात मंत्री किरण रिजिजू की और सब की निगाहें लगी है।
दरगाह कमेटी से जुड़े सभी फैसले दरगाह नाजिम और मुख्य कार्यकारी अधिकारी लेता है। इसी को कमेटी के फैसलों को लागू करने की जिम्मेदारी होती है। केंद्रीय राज्य सरकार का ये अधिकारी होता है, जबकि कमेटी में पार्टी से जुड़े नेता होते हैं। ये सभी प्रावधान दरगाह एक्ट में है।
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