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India News(इंडिया न्यूज़),Ajmer Sharif Dargah: अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर हालिया विवाद ने धार्मिक, राजनीतिक, और सामाजिक हलकों में एक बड़ा मुद्दा खड़ा कर दिया है। याचिका में दावा किया गया है कि यह दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनाई गई थी, जिससे यह मामला अदालत में चला गया।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि अजमेर दरगाह एक महादेव मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। इस दावे का आधार 1910 में लिखी गई हर बिलास सारदा की पुस्तक “अजमेर- ऐतिहासिक और वर्णनात्मक” है। स्थानीय अदालत ने याचिका स्वीकार की है और ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण), अजमेर दरगाह समिति और केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय को नोटिस जारी कर दिया है। सुनवाई की अगली तारीख 9 दिसंबर तय की गई है। अदालत के आदेश के बाद संभावित खुदाई से इस विवाद का तथ्यात्मक समाधान निकाला जा सकता है।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि अदालत का निर्णय खुदाई और प्रमाणों पर आधारित होगा। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि मुगल काल में मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाने की घटनाएं हुई थीं। वहीं विधायक रफीक खान ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश बताया। उन्होंने भाजपा पर विभाजनकारी राजनीति का आरोप लगाया और कहा कि यह मुद्दा युवाओं का ध्यान भटकाने का प्रयास है।
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अंजुमन सैयद जादगान और दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन खान ने याचिका को ऐतिहासिक तथ्यों के खिलाफ और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला बताया। उन्होंने कहा कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह विविधता में एकता का प्रतीक है।
ऐतिहासिक दावे और विवाद
1910 में लिखी पुस्तक के अनुसार, दरगाह एक महादेव मंदिर की जगह पर बनी थी। यह दावा पूरी तरह “सुनी-सुनाई” बातों पर आधारित है और ऐतिहासिक प्रमाणों से इसकी पुष्टि नहीं होती।
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ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने 12वीं शताब्दी में इस स्थान को अपनी कर्मभूमि बनाया। दरगाह पर कोई पक्का निर्माण 150 वर्षों बाद हुआ था, इसलिए मंदिर के अवशेष होने का दावा संदिग्ध माना जा रहा है। यह विवाद भारतीय समाज में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता है। अजमेर शरीफ दरगाह को हमेशा सभी धर्मों के लोगों द्वारा श्रद्धा का स्थान माना गया है। प्रधानमंत्री से लेकर आम नागरिकों तक, हर किसी ने इसे सांप्रदायिक एकता का प्रतीक समझा है।
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