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उदयपुर का बेहद दिलचस्प सास-बहू मंदिर, नाम ही नहीं यहां की कहानी भी है मजेदार

Rajesh kumar • LAST UPDATED : May 31, 2024, 6:27 pm IST

Saas Bahu Temple Udaipur

India News (इंडिया न्यूज), Saas Bahu Temple Udaipur: आपने शिव और विष्णु के मंदिर तो बहुत देखे होंगे, लेकिन क्या आपने कभी सास बहू मंदिर के बारे में सुना है? सास-बहू का नाम सुनकर आपके मन में एक ही सवाल आता होगा कि ऐसा मंदिर कहां है। आपको बता दें, यह मंदिर राजस्थान के उदयपुर में स्थित है। दरअसल मंदिर को सहस्त्रबाहु के नाम से जाना जाता है, लेकिन लोग इस मंदिर को सास-बहू के नाम से जानते हैं। आइए आज हम आपको इस लेख में इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं।

एक राजा ने अपनी पत्नी और बहू के लिए बनवाया था

राजस्थान के उदयपुर शहर से करीब 23 किलोमीटर दूर नागदा गांव में सास-बहू मंदिर देखने में बेहद आकर्षक है। लेकिन आपको बता दें, ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, यह सास-बहू से जुड़ा कोई मंदिर नहीं है। बल्कि कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल ने 10वीं या 11वीं शताब्दी में इसका निर्माण करवाया था। आमतौर पर माना जाता है कि महिपाल की रानी भगवान विष्णु की भक्त थीं। राजा ने अपनी प्रिय पत्नी के लिए एक मंदिर बनवाया, जिसमें वह अपने पसंदीदा देवता की पूजा कर सकती थी। कुछ समय बाद रानी के बेटे की शादी हुई, जो भगवान शिव की पूजा करता था। तब राजा ने अपनी बहू के लिए भगवान शिव का मंदिर बनवाया। जिसके बाद इसे सहस्त्रबाहु कहा जाने लगा।

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सहस्त्रबाहु से सास बहू

चूंकि भगवान विष्णु का मंदिर पहले बनाया गया था, इसलिए इसका नाम सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया, जिसका अर्थ है ‘हजारों भुजाओं वाला’, जो भगवान विष्णु का पर्याय है। हालांकि, बाद में जुड़वाँ मंदिरों को सहस्त्रबाहु कहा जाने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, नाम भी अलग-अलग पुकारे जाने लगे। समय के साथ लोग इसे सास-बहू मंदिर के नाम से पुकारने लगे। यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़ा है।

मंदिर में देखने लायक जगहें

यह मंदिर एकलिंगजी मंदिर के रास्ते में स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है। सास-बहू मंदिर पाँच छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। सास मंदिर के सामने की जगह में एक तोरणद्वार है जहाँ विशेष त्योहारों पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखी जाती है। इसके तीन दरवाजे तीन दिशाओं की ओर हैं, जबकि चौथा दरवाजा एक कमरे में स्थित है, जहां लोग नहीं जा सकते। मंदिर के प्रवेश द्वार पर देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है। लेकिन कई आक्रमणों और समय के प्रभाव के कारण मंदिर के कुछ हिस्से खंडहर में तब्दील हो गए हैं।

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1100 साल पुराना है यह मंदिर

इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले कच्छपघात वंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने करवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी सौ भुजाओं वाली मूर्ति है।

मुगलों ने इसे बंद करवा दिया और अंग्रेजों ने खुलवाया

इस मंदिर के लिए इतिहासकारों का मानना ​​है कि जब मुगल भारत आए तो मुगलों ने सास-बहू मंदिर को चूने और रेत से ढकवा दिया और पूरे मंदिर पर अपना शासन स्थापित कर लिया। मंदिर के धनपति भगवान विष्णु के अलावा भगवान शिव की भी कई मूर्तियां थीं, जिन्हें मुगलों ने तोड़ दिया था। बाद में अंग्रेज भारत आये और पूरे देश पर कब्ज़ा करने के बाद इस मंदिर को पुनः खुलवाया।

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