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मनोज जोशी, (CWG 2022):
इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG 2022) में शूटिंग के न होने से जिन सात स्वर्ण पदकों सहित कुल 16 पदकों का नुकसान हुआ, उसकी काफी हद तक भरपाई कुश्ती, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, लॉन बॉल, क्रिकेट, हॉकी, एथलेटिक्स और जूडो से हुई।
इनमें पहले तीन खेलों में भारत के गोल्ड मेडल की संख्या में इज़ाफा हुआ। लॉन बॉल में पिछले तीन पड़ावों में एक भी पदक हासिल नहीं हुआ था। वहां एक गोल्ड और एक सिल्वर मेडल हासिल हुआ। हॉकी में पिछली बार दोनों टीमें खाली हाथ लौटी थीं।
लेकिन इस बार पुरुष टीम ने एक सिल्वर और महिला टीम ने एक ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किया। पहली बार शामिल किए गए क्रिकेट में बेशक भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया से 32 रन में आठ विकेट गंवाने के साथ ही गोल्ड नहीं जीत पाई। लेकिन सेमीफाइनल में इंग्लैंड को शिकस्त देना एक उपलब्धि रही।
जूडो पिछली बार नहीं थी, वहां दो गोल्ड सहित तीन पदक जीतना भी उपलब्धि रही। एथलेटिक्स में कई खिलाड़ियों का पर्सनल बेस्ट प्रदर्शन यही साबित करता है कि पेरिस ओलिम्पिक के मद्देनज़र भारत की तैयारियां सही ट्रैक पर हैं।
इस सबके बावजूद वेटलिफ्टरों और स्कवैश खिलाड़ियों ने निराश किया। मुक्केबाज़ों ने पिछली बार के तीन गोल्ड मेडल की बराबरी ज़रूर की लेकिन उन्हें पिछली बार से दो सिल्वर कम हासिल हुए। वेटलिफ्टिंग में गोल्ड जीतने वाले मीराबाई चानू, जेरमी लालरिनुंगा और अचिंता श्योली ने खासकर स्नैच इवेंट में गेम्स रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक ज़रूर जीते।
लेकिन बाकी वेटलिफ्टर न नैशनल रिकॉर्ड तोड़ पाए और न ही पर्सनल बेस्ट दे पाए। इनमें से ज़्यादातर वेटलिफ्टर तो नैशनल चैम्पियनशिप में अपने प्रदर्शन को भी नहीं दोहरा पाए। पिछली बार 69 किलो में गोल्ड जीतने वाली पूनम यादव क्लीन एंड जर्क के तीनों प्रयास क्यों असफल रहे, यह रहस्य का विषय है।
वैसे एथलेटिक्स में स्थिति इससे एकदम उलट रही। दस कि.मी. पैदल चाल में प्रियंका गोस्वामी ने महिलाओं में सिल्वर और संदीप ने पुरुषों में ब्रॉन्ज़ मेडल पर्सनल बेस्ट के साथ हासिल किया। तीन ह़ज़ार मीटर स्टीपलचेज़ में अविनाश सावले ने पर्सनल बेस्ट प्रदर्शन के साथ एक केन्याई को मेडल में पीछे छोड़ा और
गोल्ड मेडल जीतने वाले दूसरे केन्याई से एक सेकंड के कुछ हिस्से से पिछड़कर शानदार प्रदर्शन किया। जिस ट्रिपल जम्प में भारतीय एथलीटों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 17 मीटर का बैरियर तोड़ना टेढ़ा काम बना हुआ था, उसे गोल्ड मेडलिस्ट एलडोस पॉल और सिल्वर जीतने वाले अब्दुल्ला अबूबेकर ने पार किया।
लॉन्ग जम्प में मुरली श्रीशंकर सहित तमाम एथलीटों के लिए पिछले दिनों आयोजित वर्ल्ड चैम्पियनशिप ने उनके पदकों का आधार तैयार किया। जो मुरलीश्रीशंकर फाइनल में क्वॉलिफाइंग प्रतियोगिता से भी हल्का प्रदर्शन कर रहे थे, यहां उन्होंने अपनी इस ग़लती को सुधारते हुए सिल्वर मेडल हासिल किया।
लेकिन वहीं पिछले खेलों में सिल्वर और ब्रॉन्ज़ जीतने वाली सीमा पूनिया और नवजीत ढिल्लों ने पिछले प्रदर्शन से तकरीबन चार से पांच मीटर कम डिस्कस फेंककर दिखा दिया की उनकी तैयारियां विपरीत दिशा में चल रही है। स्कवैश में दो सिल्वर से हम इस बार दो ब्रॉन्ज़ तक सीमित हो गये।
कुश्ती में हमेशा की तरह केवल कनाडा और नाइजीरियाई पहलवानों से ही चुनौती मिल पाई और भारतीय पहलवान पिछली बार की तरह सभी पदक हासिल करने में सफल रहे। जिनमें छह गोल्ड शामिल हैं।
यानी पिछली बार से एक गोल्ड अधिक। विनेश फोगाट तीसरा गोल्ड जीतकर महिला कुश्ती में इतिहास रचने में कामयाब रही। जबकि उभरते हुए नवीन 74 किलो में एक नई सनसनी साबित हुए।
कुछ खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन से अपनी फेडरेशनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। जूडोका तुलिका मान को जूडो टीम में चुनने लायक नहीं समझा जा रहा था। यहां तक कह दिया गया कि महिलाओं के सबसे अधिक वजन वर्ग में मेडल की कोई उम्मीद नहीं है।
लेकिन तुलिका ने सिल्वर मेडल हासिल किया। इसी तरह तेजस्विन शंकर को इन खेलों में भाग लेने के लिए कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। उनका नाम यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि उन्होंने नैशनल चैम्पियनशिप में भाग नहीं लिया था। जबकि उनका तर्क था कि वह उन्हीं दिनों अमेरिका में एक प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे।
आखिरकार इस खिलाड़ी ने हाई जम्प में 2.22 मी. के प्रदर्शन के साथ ब्रॉन्ज़ मेडल हासिल किया। लॉन बॉल में दूसरे खेलों से आईं महिलाओं ने दिखा दिया कि जहां स्कोप है, वहां खेल को बदलने में कोई हर्ज नहीं है।
राज्यवर्धन सिंह राठौर ने जब ओलिम्पिक मेडल जीता था। तब उन्होंने इसी बात पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया था। क्योंकि वह भी कभी मध्य प्रदेश के क्रिकेट सम्भावित खिलाड़ियों में थे।
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