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मनोज जोशी: ऐसे खेलोगे तो कैसे जीतोगे…मानना होगा कि टीम इंडिया (India) ने इंग्लैंड के खिलाफ एजबेस्टन में खेले गए 5वें और अंतिम टेस्ट में एक तरह से हथियार डाल दिए। कहीं से ऐसा नहीं लगा कि यही टीम इंडिया इस मैच से पहले सीरीज़ में 2-1 की बढ़त बनाए हुए थी। जहां हमने लॉर्ड्स और ओवल फतह किया।
वहीं इंग्लैंड ने लीड्स में टीम इंडिया (India) को पारी से हराया और अब सात विकेट की उसकी जीत में उसका चैम्पियन अंदाज दिखाई दिया। जो काम पहली पारी में टीम इंडिया ने किया, वहीं दूसरी पारी में सब उल्टा हो गया। इस दौरान भारतीय गेंदबाज़ी बिखर गई और दूसरी पारी में भारतीय बल्लेबाज़ों ने भी हथियार डाल दिए।
चौथे दिन ऐसा लग रहा था कि भारतीय गेंदबाज़ी आक्रमण केवल बुमराह पर निर्भर है। 5वें और अंतिम दिन जॉनी बेयरस्टो और जो रूट के ताबड़तोड़ अंदाज़ के सामने ऐसा लग रहा था कि भारतीय गेंदबाज़ी बॉलिंग करना ही भूल गए हैं। जहां फील्ड लगाई थी, उसके अनुकूल वह गेंदबाज़ी नहीं कर पा रहे थे।
जो शार्दुल ठाकुर स्विंग और लेट मूवमेंट के लिए जाने जाते हैं, वह पूरी तरह से ऑफ कलर रहे। सिराज को रूट ने बिल्कुल बच्चा बना दिया। उनकी आउट साइड द ऑफ स्टम्प गेंदें कुछ ज़्यादा ही बाहर जा रही थीं। अगर उन्हें स्विंग मिल रहा होता तो हम उनका यह कहकर बचाव कर सकते थे कि
वह गेंद पर कंट्रोल नहीं रख पा रहे लेकिन उनकी लेग स्टम्प पर शॉर्ट गेंदों का कैसे बचाव किया जा सकता है। शमी ने कुछेक अच्छी गेंदें कीं लेकिन दूसरी पारी में ज़्यादातर मौकों पर वह भी बेअसर साबित हुए। सवाल है कि कहां गई उनकी सीम मूवमेंट।
टीम इंडिया (India) ने इस मैच में ऐसी फील्ड लगाई कि जिससे एक तरह से हमने उन्हें सिंगल्स लेने की लगातार छूट दी। इसी का खासकर जो रूट ने भरपूर फायदा उठाया। कुछ गेंदबाज़ों की मिडिल और लेग की गेंदों के लिए लेग स्लिप न लगाना और दो-दो मिडविकेट लगाना यही ज़ाहिर करता है कि हमारी प्लानिंग में ही गड़बड़ी थी।
रवींद्र जडेजा बल्ले से तो कहर बरपा रहे हैं लेकिन गेंदबाज़ी में उन्हें जैक लीच के आस-पास भी टर्न नहीं मिला। उनको लेग साइड पर बने रफ पैच का फायदा उठाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। जिसमें वह पूरी तरह असफल रहे।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या शार्दुल ठाकुर की जगह रविचंद्रन अश्विन को खिलाया जाना बेहतर विकल्प नहीं होता। शार्दुल आज टीम में इसलिए हैं क्योंकि वह निचले क्रम में उपयोगी बल्लेबाज़ी कर लेते हैं लेकिन थोड़ी बहुत बल्लेबाज़ी तो अश्विन भी कर लेते हैं।
रही सही कसर भारतीय फील्डिंग ने पूरी कर दी। पहली पारी में बेन स्टोक्स के दो कैच छूटना इसलिए महंगा साबित नहीं हुआ कि उन्हें जल्दी आउट किया जा सका लेकिन दूसरी पारी में हनुमा विहारी से जो कैच जॉनी बेयरस्टो का छूटा, उसने भारतीय टीम का काम तमाम कर दिया। यहां सवाल यह भी है कि उनकी बाउंसर असरदार रहीं और
हमारी बाउंसर बेअसर। जबकि एक सच यह भी है कि भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों की रफ्तार इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ों की तुलना में ज़्यादा तेज़ थी लेकिन बाज़ी मारी इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ों ने। भारत को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि मैच में दो पारियां होती हैं। पहली पारी की बढ़त ही सब कुछ नहीं होती।
वहीं जॉनी बेयरस्टो ने इस साल की अपनी छठी सेंचुरी बनाई और इस मैच की दूसरी। लगता है कि विराट कोहली ने उनसे पंगा ले लिया जिससे उन्होंने विराट को शानदार पारी खेलकर मुंहतोड़ जवाब दिया। यही काम कभी विराट कोहली किया करते थे लेकिन तब वह अपने करियर के शवाब पर थे।
जो रूट ने दिखा दिया कि पिछले साल वाली उनकी फॉर्म आज भी बरकरार है और वह इस सीरीज़ में चौथी सेंचुरी बनाने में क़ामयाब रहे। वहीं टीम इंडिया में न हनुमा विहारी की तकनीक देखने को मिली और न ही पुजारा का वह पुराना टिकाऊ दौर देखने को मिला।
श्रेयस अय्यर और शार्दुल ठाकुर तो एक तरह से टीम इंडिया (India) पर बोझ साबित हुए। श्रेयस को शॉर्ट बॉल पर आउट करने का नुस्खा विदेशी टीमों ने निकाल लिया है। कुछ नहीं तो खाली समय में श्रेयस स्टीव वॉ के शुरुआती दिनों के वीडियो ही देख लें। या फिर मोहिंदर अमरनाथ, मोहम्मद अज़हरूद्दीन, रोहित शर्मा और सुरेश रैना की ही वह पारियां देख लें।
जहां वह कभी ऐसी गेंदों पर फंसा करते थे लेकिन बाद में उनकी ऐसी गेंदें उनकी ताक़त बन गईं। इमरान खान ने तो मोहिंदर को शॉर्ट पिचों गेंदों का सामना करने के मामले में सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ करार दिया था। अगर टीम इंडिया ने अपनी इन कमज़ोरियों पर निजात नहीं पाई तो बांग्लादेश के खिलाफ होने वाली सीरीज़ भी भारत को भारी पड़ सकती है।
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