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Krishna Singh Mitan: जिंदगी में गर कुछ कर दिखाने का जज्बा और जुनून रखते हो तो अपने हुनर को बढ़ाते चलो

अनुरेखा लांबरा, पानीपत:
पानीपत के पहले जैवलिन थ्रोअर ….कृष्ण सिंह मिटान (Krishna Singh Mitan) जिसने नीरज चोपड़ा को जैवलिन का खिलाड़ी बनने के लिए प्रेरित किया। आज भले ही खुद नींव बन कर रह गए, लेकिन नीरज जैसी कितनी ही इमारत इनके सहारे बन गई, इसका सुकून और खुशी उनकी बातों से साफ झलकते है। कृष्ण मिटान वो शख्स हैं जिनके हाथों में पहली बार पानीपत के लोगों ने जैवलिन देखी। ये पानीपत के पहले खिलाड़ी थे। माली हालत ऐसी थी कि बांस की जैवलिन से अभ्यास करते थे। जुनून इतना कि दिन में तीन – तीन बार अभ्यास करते थे।

Achievements of Krishna Singh Mitan

कृष्ण ने 1995 के मध्य शिवाजी स्टेडियम में किसी भी खेल से जुड़ने के मकसद से जाना शुरू किया था। अलबत्ता कुछ अलग करने का जुनून जरूर था। उस दौरान कोच रामफल सांगवान ने कृष्ण की शारीरिक बनावट और कद काठी को देखते हुए जैवलिन करने के लिए प्रेरित किया। कृष्ण को पहले लगा कि वो जैवलिन नहीं कर पाएंगे, लेकिन कोच सांगवान ने उनमें हिम्मत का संचार करते हुए कहा कि तुम कर पाओगे।

तभी कोच रामफल सांगवान की देखरेख में जैवलिन का अभ्यास शुरू किया और कृष्ण ने 6 माह के अभ्यास के बाद ही परफॉर्मेंस देनी शुरू कर दी थी। इसी बीच कोच रामफल सांगवान का पानीपत से तबादला हो गया था। कृष्ण ने 1996 में प्रदेश स्तरीय अंडर -18 में गोल्ड मेडल हासिल किया। 1997 में केयूके में गोल्ड मेडल, 1998 में नॉर्थ जोन में गोल्ड, 1999 में जूनियर नेशनल में सिल्वर, जूनियर मैन में सिल्वर, आल इंडिया यूनिवसीर्टीज में सिल्वर मेडल लेकर केयूके का 28 साल पुराना रिकॉर्ड ब्रेक किया था।

After the death of the father, the responsibility of the house came on his shoulders

वर्ष 1999 में जूनियर एशियन चैंपियनशिप जो कि सिंगापुर में आयोजित होनी थी, उनका इंडिया टीम में सिलेक्शन हो गया था, इसी बीच उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया और उसके बाद पिता का देहांत हो गया। परिवार में सबसे बड़ा बेटा होने के कारण घर की सारी जिम्मेवारी कृष्ण के कंधों पर आ गई। जूनियर एशियन चैंपियनशिप का ट्रायल उनके पिता के गुजर जाने के एक महीने बाद ही मुंबई में शुरू होना था। वहीं अभ्यास के दौरान कृष्ण घायल हो गए और उनकी कुहनी के लिगामेंट्स टूट गए, जिस कारण डॉक्टर ने करीब तीन साल तक के लिए उनको खेलने से मना कर दिया।

घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और मां, पत्नी व भाई – बहन की जिम्मेदारी के चलते इसके बाद कृष्ण ने अंडर स्पोर्ट्स कोटा इंडियन रेलवे का रिकॉर्ड ब्रेक करके रेलवे टिकट चैकर पद पर ज्वाइन किया (जो अभी पदोन्नत होकर चीफ टीकट इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत हैं) कृष्ण की पत्नी ट्रिपल एमए है। एक बेटा और एक बेटी हैं, 13 वर्षीय बेटा शूटिंग का खिलाड़ी है। लिहाजा कृष्ण अपनी पारिवारिक परिस्थितियों के चलते जहां ओलंपिक तक नहीं पहुंच पाए तो अब वह अपनी अधूरी आशा को अपने बेटे के जरिए पूरी करना चाहते हैं। कृष्ण के बेटे का लक्ष्य ओलंपिक में गोल्ड जीतना है।

Krishna did not just become the godfather of Javelin for the players of Panipat

कृष्ण ने जैवलिन अभ्यास के दौरान आने वाले संघर्ष का जिक्र करते हुए बताया कि पानीपत में जैवलिन के जितने भी खिलाड़ी हैं, वो उनकी टीम का हिस्सा है। स्टेडियम में कोई सुविधा नहीं थी, खुद से ग्राउंड तैयार करते, लेवल करते, घास लगाते, चूंकि सरकारी प्रोग्राम के चलते ग्राउंड की हालत खराब हो जाती थी। कृष्ण ने बताया उस दौरान उन्हें बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। उनके कोच रामफल सांगवान का छह महीने बाद ही पानीपत से ट्रांसफर हो गया था। हालांकि और कोच आते रहे, लेकिन वह सहयोग करने की बजाय उन्हें और ही परेशान करते थे।

ग्राउंड से भगाने की फिराक में रहते थे। प्रशासन व खेल विभाग की तरफ से कभी कोई सुविधा नहीं मिलती थी। स्टेडियम में अभ्यास कर रहे कभी हॉकी खिलाड़ी, वॉलीबॉल तो कभी क्रिकेट के खिलाड़ी उनके अभ्यास में खलल डालते और उन्हें परेशान करते थे। बावजूद इसके कृष्ण के अंदर का जज्बा और खुद पर भरोसा इतना था कि उन्होंने अपना दिल छोटा नहीं किया, अभ्यास की कोशिशें निरन्तर जारी रखी और कोच के अभाव में प्रैक्टिस के लिए सोनीपत गए, वहां कोच ने ध्यान नहीं दिया, नेहरू स्टेडियम गए वहां भी अन्य खिलाड़ी अभ्यास में खलल डालने लगे। फिर कृष्ण नजफगढ़ सीआरपीएफ कैंप गए। जहां सीआरपीएफ में ही नियुक्त हुए कोच राकेश से मुलाकात हुई।

कृष्ण बताते हैं कि कोच राकेश भले ही अभ्यास के दौरान उन्हें बहुत कम समय दे पाए, लेकिन जितना समय उन्होंने दिया और जो बारीकियों उन्होंने समझाई वह कृष्ण के बहुत काम आई। कृष्ण बताते हैं कि रोजाना नजफगढ़ अभ्यास के लिए वह एक बैग व तीन – तीन जैवलिन लेकर अलग-अलग ट्रांसपोर्ट साधनों में धक्के खाते हुए सफर करते थे, इस दौरान भी उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। कृष्ण ने कुछ नामों का जिक्र करते हुए बताया कि विक्रांत जो हरियाणा पुलिस में है, सन्नी, जितेंद्र जागलान, मनोज, परमिंदर जो कि रेलवे में टीटी के पद पर कार्यरत हैं, पैरालंपिक के नरेंद्र आर्य, जयवीर, नीरज यह सब उनकी टीम का हिस्सा थे, जिनको वह रोजाना जैवलिन का अभ्यास करवाते थे।

Neeraj had come for Kabaddi, Krishna’s vision made javelin thrower

वर्ष 2012-13 में नीरज के चाचा भीम चोपड़ा ने नीरज को कबड्डी खेल से जोड़ने के लिए मुलाकात की। कृष्ण ने उनको बताया कि कबड्डी एक ग्रुप इवेंट है, जिसमें कई बार अच्छे खिलाड़ी होने के बाद भी दूसरे खिलाड़ियों की वजह से आप अपना बेहतरीन प्रदर्शन नहीं दे पाते। लिहाजा कृष्ण ने नीरज कि रुचि के बारे में जानने के मकसद से नीरज से बात की। नीरज किसी भी खेल का खिलाड़ी बनने को तैयार था। लेकिन नीरज को देखते ही कृष्ण ने उसे जैवलिन खेलने के लिए प्रेरित किया।

क्योंकि इस वक्त कृष्ण अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों एवं नौकरी की वजह से बेहद व्यस्त रहते थे लेकिन उन्होंने नीरज की मुलाकात अपनी टीम सदस्यों से करवाई जिसमें उनकी टीम के कुछ सदस्यों ने नीरज को फिजिकल फिटनेस करवाई, तो वहीं सन्नी व जयवीर ने नीरज को जैवलिन का अभ्यास करवाया। बीच-बीच में कृष्ण स्टेडियम में जाकर जैवलिन का अभ्यास करने वाले खिलाड़ियों को देखते थे और जो भी कमियां होती थी उन कमियों से संबंधित बारीकियां जयवीर को समझाते रहते थे। बाद में जयवीर नीरज के कोच बन गए और उनकी मेहनत और नीरज की दृढ़ता के कारण नीरज ने बहुत जल्दी अचीव करना शुरू कर दिया।

कृष्ण का मानना है कि दृढ़ता और ईमानदारी से मेहनत करने से सफलता अवश्य मिलती है। उन्होंने सभी खिलाड़ियों आने वाले नए खिलाड़ियों संदेश देते हुए कहा कि जैसे इतने ऊंचे मुकाम पर पहुंचने के बावजूद आज नीरज जमीन से जुड़ा और एक सीधे-साधे व्यक्तित्व का धनी है। नीरज के व्यक्तित्व में दिखावा रिंचक मात्र भी नहीं है। ऐसे ही अपने व्यक्तित्व को भी बनाए जिससे लोगों के दिलों और दुआओं में हमेशा के लिए जगह बन जाए।

Javelin is not easy… A javelin player is prepared by practicing many sports

कृष्ण ने बताया कि जैवलिन खेल जितना आसान दिखता है उतना है नहीं। यह एक टेक्निकल गेम है। कई खिलाड़ियों को मिलाकर एक जैवलिन थ्रोअर बनता है। एक अच्छा जैवलिन खिलाड़ी बनने के लिए एक अच्छा धावक, जंपर, लचीले शरीर के लिए जिमनास्टिक, वेटलिफ्टर की पावर, चेस का माइंड और शूटर का फोकस होना जरूरी है। कृष्ण का मानना है कि स्पोर्ट्स में जितने भी युवा हैं, आप अगर अच्छे लेवल तक ना भी जा पाएं, पर स्पोर्ट्स के टच में ही रहना चाहिए, अभ्यास करते रहना चाहिए, क्यूंकि कुछ न मिले तो स्वास्थ्य तो मिलता ही है जो अनमोल है।

हर अभिभावक से भी अपील की कि अपने बच्चों को खेलों से जोड़ने के लिए जरूर प्रेरित करें, क्योंकि आजकल टीवी और मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों के मानसिक व शारीरिक विकास बाधा उत्पन्न हो रही है। स्पोर्ट्स से फिजिकल और मानसिक दोनों विकास होता है। कृष्ण ने कुछ देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन देशों में ज्यादा मैडल अचीव किए जाते हैं, उनकी स्पोर्ट्स पॉलिसी क्या है? उसको स्टडी करना चाहिए, उनसे सीखना चाहिए। हालांकि अभी नीरज की वजह से बच्चों में खेलों के प्रति काफी रुझान आया है, जो सपना हम कभी देखते थे वह नीरज की बदौलत साकार हुआ है। थोड़ा सरकार व प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए। सुविधाएं मिल जाएं, अच्छे कोच मिल जाए, तो नीरज जैसी बहुत सी प्रतिभा है निकल सकती हैं।

 

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India News Editor

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