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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
प्रमोद मिसाल है उन लोगों के लिए जो थोड़ी सी मुश्किल से ही हार जाते हैं। प्रमोद भगत ने एसएल3 कैटेगरी के फाइनल में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराकर गोल्ड अपने नाम कर लिया। ये पहली बार है जब 1968 से खेले जा रहे पैरालिंपिक में बैडमिंटन को शामिल किया है। भगत केवल पैरालिंपिक ही नहीं इससे पहले कईं विश्व चैंपियनशिप्स में झंडा बुलंद कर चुके हैं।
प्रमोद की दिलचस्पी शुरू से ही खेलों में रही है वह स्कूल में क्रिकेट खेलते था और उसमें भी सलामी बल्लेबाज हुआ करते थे लेकिन कहते हैं ना होता वही जो किस्मत में लिखा होता है। प्रमोद एक दिन अपनी गली के बच्चों को बैडमिंटन खेलते हुए देख रहे थे उन्हें ये खेल बहुत पसंद आया और अगले ही दिन वो पास के ग्राउंड में बैडमिंटन देखने पहुंच गए। किस्मत में बैडमिंटन खेलना लिखा था तो मौका तो मिलना ही था। प्रमोद के शानदार प्रदर्शन को दर्शकों ने सराहा। बस यहीं से बैडमिंटन करियर की शुरुआत हो गई। प्रमोद ने सबसे पहले 15 साल की उम्र में बैडमिंटन टूनार्मेंट में हिस्सा लिया लेकिन वहां पैरालिंपिक कैटेगरी नहीं होने से वो ये मैच हार गए। हांलाकि फिर भी उन्होने हिम्मत नहीं हारी और जिले से लेकर राज्य स्तर पर होने वाले टूनार्मेंट्स में भाग लेते रहे और अब प्रमोद पैरा बैडमिंटन के सबसे बड़े खिलाड़ी बन चुके हैं।
ओडिशा के बारगढ़ जिले के अत्ताबीरा से आने वाले प्रमोद के जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन पांच साल की उम्र में उन्हें पोलियो जैसी गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया जिससे उनके बाएं पैर ने काम करना बंद कर दिया। ऐसा लग रहा था कि प्रमोद अब कुछ नहीं कर पाएंगे। लेकिन कहते हें ना पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती हैं और उन्होने ये साबित भी कर दिया। प्रमोद ने इसे कमजोरी के बजाय अपनी ताकत समझा उनकी इसी मेहनत और लगन ने आज उन्हें पैरालिंपिक्स में गोल्ड मेडल दिलाया हैं।
पीएम मोदी ने बधाई देते ट्वीट कर कहा कि प्रमोद भगत ने पूरे देश का दिल जीत लिया है। वो एक चैंपियन हैं, जिनकी जीत से लाखों लोगों को प्रेरणा मिलेगी। उन्होने उल्लेखनीय प्रदर्शन और दृढ़संकल्प का परिचय दिया है। उनको बधाई और भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।
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