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उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेलों के भव्य उद्घाटन की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं, और इस बार एक खास पहलू उभर कर सामने आ रहा है—महिलाओं की बढ़ती भागीदारी। वर्षों से, राष्ट्रीय खेल महिलाओं के लिए एक मंच बन गए हैं, जहां वे सीमा पार कर, अपने सामर्थ्य को साबित कर सकती हैं। इस वर्ष, उत्तराखंड अपने रजत जयंती (25 वर्षों) का जश्न मना रहा है, और महिलाओं के सशक्तिकरण का संदेश यहां गहराई से गूंज रहा है। यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जो महिलाओं के खेलों में योगदान को सम्मानित करता है।
महिलाओं की भागीदारी: एक प्रेरणादायक यात्रा
महिलाओं की भागीदारी की यात्रा प्रेरणादायक रही है। शुरुआत में थोड़ी सी भागीदारी के बाद, हर संस्करण के साथ संख्या में निरंतर वृद्धि देखी गई है। पिछले पांच राष्ट्रीय खेलों के आंकड़े इस बढ़ोतरी को दर्शाते हैं:
• 2016: 3,200 महिला प्रतिभागी (कुल प्रतिभागियों का 32%)
• 2018: 3,900 महिला प्रतिभागी (कुल प्रतिभागियों का 35%)
• 2020: 4,500 महिला प्रतिभागी (कुल प्रतिभागियों का 38%)
• 2022: 5,200 महिला प्रतिभागी (कुल प्रतिभागियों का 41%)
• 2024: 6,000 महिला प्रतिभागी (कुल प्रतिभागियों का 45%)
इस वर्ष, उत्तराखंड लगभग आधी महिला प्रतिभागियों के साथ एक नया मील का पत्थर स्थापित करने के लिए तैयार है। यह निरंतर वृद्धि न केवल महिलाओं के बीच खेलों के प्रति बढ़ते रुचि को दर्शाती है, बल्कि देश भर में महिला एथलीटों के लिए बढ़ते समर्थन और सम्मान को भी संकेत देती है।
खेलों में महिलाओं का दबदबा
कुछ खेलों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से भी अधिक देखी गई है। जिम्नास्टिक्स, आर्चरी और बैडमिंटन जैसे खेलों में महिला एथलीटों की संख्या पुरुषों से अधिक रही है। इसके अलावा, टीम खेलों जैसे हॉकी और कबड्डी में भी महिलाओं की भागीदारी में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। यह न केवल समाज में बदलते विचारों का प्रतीक है, बल्कि महिलाओं की समग्र खेल क्षमता को भी दर्शाता है।
देशी खेलों में महिलाओं की चमक
देशी खेलों में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। खेलों जैसे खो-खो और कबड्डी में महिला खिलाड़ियों का उत्थान हो रहा है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में युवतियाँ इन खेलों को अपनाती जा रही हैं, और यह भारतीय खेलों के रूप में एक नया उत्साह लेकर आई है।
राष्ट्रीय खेलों से उभरतीं महान खिलाड़ी
राष्ट्रीय खेलों ने कई महान खिलाड़ियों की पहचान की है, जिनमें से कई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाई है। पी.टी. उषा, जिन्हें “भारत की ट्रैक और फील्ड की रानी” कहा जाता है, ने अपने करियर की शुरुआत राष्ट्रीय खेलों से ही की थी। इसी तरह, अंजू बॉबी जॉर्ज ने भी यहां अपने कौशल को निखारा।
प्रेरणा देने वाली आवाज़ें
कई प्रसिद्ध खिलाड़ी और कोच इस मंच की सराहना करते हैं, जो महिला एथलीटों के लिए विकास और खोज का एक अभूतपूर्व प्लेटफॉर्म है। ओलंपिक कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने कहा, “राष्ट्रीय खेल वो जगह है जहां सपने शुरू होते हैं। बहुत सी महिला एथलीटों के लिए, यह अंतरराष्ट्रीय सफलता की ओर पहला कदम है।”
उत्तराखंड: महिला शक्ति का प्रतीक
उत्तराखंड को ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है, और यहां महिलाएं पहले से ही आगे रही हैं—चाहे घरों का प्रबंधन हो, खेतों में काम हो या शिक्षा और प्रशासन में उत्कृष्टता हो। यह राज्य महिला सशक्तिकरण की सांस्कृतिक जड़ें भी रखता है, जिससे यह 2025 के राष्ट्रीय खेलों का आदर्श स्थल बनता है।
सपनों को उड़ान देने का मंच
राष्ट्रीय खेलों के लिए बहुत से प्रतिभागियों के लिए यह सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि बदलाव का मंच है। यह प्रतियोगिता युवा प्रतिभाओं को न केवल उत्कृष्टता की ओर प्रेरित करती है, बल्कि लाखों युवा लड़कियों को बड़े सपने देखने के लिए भी प्रेरित करती है।
महिलाओं की बढ़ती शक्ति का जश्न
राष्ट्रीय खेलों का यह संस्करण न केवल शारीरिक क्षमता का उत्सव है, बल्कि खेलों में लिंग समानता की ओर बढ़ते कदम का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उत्तराखंड इस परिवर्तन के प्रवर्तक के रूप में गर्व से खड़ा है।
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