Patna Book Fair: पटना के 41वें पुस्तक मेले में एक किताब ने सभी आगंतुकों को आकर्षित कर रही है, लेकिन उसको खरीदना आम आदमी के बजट से बाहर है. हम जिस पुस्तक की बात कर रहे हैं वह एक ‘मैं’ नाम की पुस्तक है.
इस पुस्तक की कीमत 15 करोड़ रुपये है, जो रत्नेश्वर द्वारा लिखी गयी है. 5-16 दिसंबर, 2025 तक गांधी मैदान में “वेलनेस – ए वे ऑफ लाइफ” थीम पर आयोजित पटना पुस्तक मेले का उद्घाटन मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने किया, जहां यह पुस्तक लोगों के बीच उत्सुकता का केंद्र रही.
क्यों खास है यह किताब?
15 करोड़ रुपये की कीमत वाली ‘मैं’ नाम की यह किताब पटना पुस्तक मेले में सबका ध्यान खींच रही है. रत्नेश्वर द्वारा लिखी गई यह 408 पन्नों की हिंदी किताब (जिसका अंग्रेजी अनुवाद भी है) दावा करती है कि इसमें दिव्य दर्शनों के माध्यम से ज्ञान की सर्वोच्च स्थिति और दुखों को खत्म करने के रास्ते बताए गए हैं. इसके लॉन्च ने इस बात पर बहस छेड़ दी कि यह एक साहित्यिक चमत्कार है या सिर्फ़ चालाक मार्केटिंग.
पुस्तक के लेखक रत्नेश्वर का कहना है कि उन्होंने यह किताब 6-7 सितंबर, 2006 को ब्रह्म मुहूर्त में सिर्फ़ 3 घंटे और 24 मिनट में लिखी थी. इस दिव्य पुस्तक में वह एक गहरी “ब्रह्मलोक यात्रा” और आध्यात्मिक जागृति का वर्णन करते हैं, जिसमें रास लीला के दर्शन भी शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने 43 अध्यायों में ढाला है, जो मानवता के विश्वास से सच्चे ज्ञान की ओर बदलाव को दर्शाती है. हालांकि, मेले में कोई भी इसके पन्ने पलट नहीं सका, जिससे आगंतुकों के बीच रहस्य और बढ़ गया.
विशेष उपलब्धता
यह किताब अनूठी इसलिए भी है, क्योंकि दुनिया भर में इसकी सिर्फ़ तीन प्रतियां मौजूद हैं. इनमें से हर एक प्रति की कीमत 15 करोड़ रुपये है. लेखक के अनुसार, यह पुस्तक लग्जरी बिक्री के लिए नहीं, बल्कि दिव्य कीमत है. रत्नेश्वर इन प्रतियों को कुछ चुने हुए लोगों को उपहार में देने की योजना बना रहे हैं, जिनकी तलाश अभी भी जारी है. वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इसे व्यक्तिगत ज्ञानोदय के लिए पढ़ा जाए, न कि जिज्ञासा के लिए.
कौन हैं लेखक रत्नेश्वर?
रत्नेश्वर, जिन्हें रत्नेश्वर कुमार सिंह के नाम से भी जाना जाता है, बहुत ज़्यादा मुश्किलों से गुज़रकर एक जाने-माने हिंदी लेखक और वक्ता बने. उनका जन्म 1966 के आस-पास हुआ था, उन्होंने बचपन में कई दुख देखे, जिसमें चार साल की उम्र में पिता की मौत, 10वीं क्लास के एग्जाम के दौरान परिवार का बंटवारा जिससे उनके पास सिर्फ़ 7 रुपये बचे थे, और सत्तू, नमक और प्याज़ खाकर गुज़ारा करने वाले बहुत ज़्यादा गरीबी के दिन शामिल हैं. स्कूल के दिनों से ही, रत्नेश्वर अपनी कहानियों से अपने दोस्तों को मोहित कर लेते थे. 1988 में, 22 साल की उम्र में, उनकी कहानी “मैं जयचंद नहीं” एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई, जिसके बाद एक एडिटर के बुलावे पर उन्हें नागपुर में ट्रेनी जर्नलिस्ट का रोल मिला. रत्नेश्वर ने “जीत का जादू,” “रेखना मेरी जान” (2017 में 1.77 करोड़ रुपये में साइन की गई) जैसी बेस्टसेलर किताबें लिखीं और 2006 में मुंबई में रहने के दौरान “मानो या ना मानो” के लिए टीवी स्क्रिप्ट भी लिखीं. उनकी आध्यात्मिक मास्टरपीस “मैं,” जो कर्म, ज्ञान, ध्यान और भक्ति योग के ज़रिए सर्वोच्च ज्ञान की 408 पन्नों की खोज है, पटना पुस्तक मेले में भीड़ का सबसे बड़ा उत्सुकता केंद्र बनकर उभरी है.