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जाफराबादी नस्ल के ‘प्रधान‌ बाबू’, कीमत इनकी 1 करोड़, 38 महीने उम्र, हर दिन डकार जाते 2000 रुपये का भोजन!

Sonpur Mela 2025: एशिया प्रसिद्ध पशु मेला के नाम से विख्यात सोनपुर मेला में एक करोड़ का भैंसा चर्चा का विषय बना हुआ है. यह भैंसा रोहतास जिला से सोनपुर मेला में आया है.

Written By: Mohammad Nematullah
Last Updated: November 25, 2025 08:36:22 IST

Sonpur Mela 2025: हरिहर क्षेत्र, सोनपुर में लगने वाला यह ऐतिहासिक पशु मेला कभी दुनिया का सबसे बड़ा पशु बाज़ार माना जाता था. यहां घोड़े, ऊंट, हाथी, बैल, गाय, भैंस और हर तरह के जानवर बड़ी संख्या में खरीदे और बेचे जाते है. हालांकि समय के साथ नए नियम मॉडर्नाइज़ेशन और बिजनेस के तरीकों में बदलाव के कारण, मेले ने धीरे-धीरे अपनी पुरानी पहचान खो दी है.

अब यह मेला मनोरंजन, राइड्स, खाने-पीने और कपड़ों के स्टॉल, खाने की दुकान, कल्चरल इवेंट्स और एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन के लिए ज़्यादा जाना जाता है. पशुओं की बिक्री में काफ़ी कमी आई है. फिर भी कुछ पशुपालक हैं जो मेले की विरासत को ज़िंदा रखे हुए है. उनमें से एक हैं ‘प्रधान बाबू’.

‘प्रधान बाबू’ सोनपुर मेले के सुपरस्टार बने

जब लोग मेले में एक बड़े बैनर पर इस भैंसे की कीमत देखते हैं, तो भीड़ जमा हो जाती है. हर कोई इसे देखने, छूने और इसके साथ फ़ोटो या सेल्फ़ी लेने के लिए उत्सुक रहता है. ‘प्रधान बाबू’ की फ़ोटो और वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहे है.

भैंस के मालिक बीरबल कुमार सिंह रोहतास के रहने वाले है. उन्होंने बताया कि यह जाफराबादी नस्ल का भैंसा है और सिर्फ़ 38 महीने का है. इसकी लंबाई लगभग 8 फ़ीट और ऊंचाई लगभग 5 फ़ीट है. इसका चमकदार काला रंग इसे और भी आकर्षक बनाता है. उन्होंने आगे बताया कि इसके चारे पर रोज़ाना लगभग 2,000 रुपये खर्च होते है. इसकी कीमत 1 करोड़ रुपये आंकी गई है. अपनी खास डाइट, रेगुलर देखभाल और कड़े रूटीन की वजह से यह भैंसा सबका पसंदीदा बन गया है.

ज़्यादा डिमांड, अभी तक कोई खरीदार नहीं

बीरबल कुमार सिंह बताते है कि अभी तक कोई खरीदार सामने नहीं आया है, लेकिन कई लोगों ने फ़ोन पर इसकी कीमत के बारे में पूछा है. कई लोग सिर्फ़ इसे देखने आते है और कहते हैं, “मैंने पहली बार ऐसा भैंसा देखा है.”

‘प्रधान बाबू’ पुरानी विरासत को ज़िंदा रखे हुए है

सोनपुर मेला अब भले ही पहले जैसा जानवरों का बाज़ार न रहा हो, लेकिन ‘प्रधान बाबू’ जैसे आकर्षण मेले की पहचान को ज़िंदा रखे हुए है. लोगों को उम्मीद है कि ऐसे प्रयासों से एक दिन यह मेला अपनी पुरानी शान वापस पा सकेगा.

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