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False Bribery Accusation: छत्तीसगढ़ के रायपुर में न्याय की उम्मीद और लंबे संघर्ष की मिसाल बन चुकी है जागेश्वर प्रसाद अवधिया की कहानी. 83 साल की उम्र में उनके चेहरे पर गहरी झुर्रियां और आंखों में दर्द अब भी उसी संघर्ष की याद दिलाते हैं, जो उनके ऊपर 39 साल पहले थोप दिया गया था. 100 रुपए की रिश्वत के झूठे आरोप ने न केवल उनके पेशेवर जीवन को प्रभावित किया, बल्कि पूरे परिवार की खुशियों और भविष्य को भी छीन लिया.
कौन थे जागेश्वर प्रसाद?
जागेश्वर प्रसाद अवधिया का जन्म 10 मई 1943 को हुआ था। वे मध्यप्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (MPSRTC) रायपुर में बिल सहायक के पद पर कार्यरत थे. उनके पेशे में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल दी जाती थी.
अपराध का झूठा आरोप
साल 1986 में कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा ने बकाया बिल पास कराने का दबाव बनाया. जागेश्वर ने स्पष्ट कहा कि जब तक उपर से आदेश नहीं आएगा, बिल पास नहीं किया जा सकता. इसके अगले दिन अशोक कुमार वर्मा रिश्वत के रूप में 20 रुपए लेकर आए, जिसे जागेश्वर ने गुस्से में वापस लौटा दिया. इसी बीच घटनाओं का सिलसिला आगे बढ़ा वही कर्मचारी 50-50 के दो नोट जोर जबरदस्ती उनके जेब में डालने का प्रयास करने लगा. जागेश्वर ने नोट निकालने की कोशिश की, लेकिन तभी लोकायुक्त की विजिलेंस टीम मौके पर पहुंच गई.
कोर्ट-कचहरी की लंबी लड़ाई
2004 में ट्रायल कोर्ट ने जागेश्वर को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी मानते हुए एक साल की जेल और 1000 रुपए का जुर्माना सुनाया. यह फैसला उनके जीवन और परिवार पर भारी पड़ा. नौकरी में तरक्की रुक गई, वेतन घट गया, बच्चों की पढ़ाई अधूरी रह गई, और पत्नी का साथ भी छिन गया.
लेकिन जागेश्वर हारे नहीं. उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की अंततः जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित ही नहीं कर पाया कि जागेश्वर ने रिश्वत मांगी या ली. ऐसे में हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष घोषित कर न्याय दिलाया.