क्या है बंगले की बदनामी का इतिहास?
यह बंगला 1920 के दशक में दिल्ली के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के रूप में तैयार किया गया था. पहली बार इसकी बदनामी तब शुरू हुई जब 1952 में चौधरी ब्रह्म प्रकाश यहां मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल 1955 में अचानक समाप्त हो गया. इसके बाद 1993 में, जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की नई व्यवस्था लागू हुई, तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को यह बंगला आवंटित किया गया. लेकिन हवाला घोटाले और राजनीतिक उलझनों के चलते उनका कार्यकाल भी अधूरा रहा. यही से इस बंगले की ‘शापित’ कहानी शुरू हुई.
समय के साथ, बंगले के बारे में अफवाहें और चर्चाएं बढ़ती गईं. साहब सिंह वर्मा ने भी इसे बस एक कैंप ऑफिस के रूप में इस्तेमाल किया, जबकि शीला दीक्षित ने यहां रहने से पूरी तरह इनकार कर दिया. उनके बजाय उन्होंने मथुरा रोड वाले बंगले में रहने को प्राथमिकता दी.
आखिरी किरायेदार और बंगले की वीरानी
इस बंगले का आखिरी बड़े स्तर का किरायेदार तत्कालीन श्रम मंत्री दीप चंद बंधु थे. 2003 में उन्होंने बंगले की बदनामी को नजरअंदाज करते हुए यहां रहना शुरू किया, लेकिन दुर्भाग्यवश गंभीर बीमारी ने उनका साथ छोड़ दिया. इसके बाद बंगला पूरी तरह से खाली हो गया. 2013 में IAS अधिकारी शक्ति सिन्हा ने कुछ समय के लिए यहां रहने का साहस दिखाया, लेकिन उनका भी कार्यकाल समाप्त होने के बाद बंगला फिर वीरान हो गया.
नए अध्याय की उम्मीद
अब दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री रविंदर इंद्रज इस बंगले में रहने की योजना बना रहे हैं. फिलहाल वह 8 राज निवास मार्ग पर चार बंगलों में से एक में रहते हैं, जहां मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी निवास करती हैं. PWD के अधिकारियों ने उन्हें 33 श्याम नाथ मार्ग का बंगला दिखाया है. एक अधिकारी ने कहा कि हमने मंत्री जी को बंगले की बदनामी के बारे में बता दिया है, लेकिन उन्होंने इसे देख लिया है.
हालांकि, इंद्रज ने अभी इसे लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है. उन्होंने मीडिया से कहा कि मेरे कार्यालय ने बंगला देखा है, लेकिन अभी कोई पक्का प्लान नहीं है.
बंगले का बदलता स्वरूप
बीते वर्षों में इस बंगले को कई बार नए उपयोग के लिए तैयार किया गया. कभी इसे स्टेट गेस्ट हाउस बनाया गया, तो 2015 में आम आदमी पार्टी सरकार ने इसे दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन (DDDC) का ऑफिस बनाया. लेकिन DDDC भंग होने के बाद, बंगले का ऑफिस भी बंद हो गया. वर्तमान में इस परिसर में केवल उपराज्यपाल के कार्यालय के कुछ कर्मचारी कार्यरत हैं.