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25 नवंबर को राम मंदिर में भव्य ध्वजारोहण, मंदिर शिखर पर लहराएगा ‘ओम-सूर्य-कोविदार’ वाला भगवा ध्वज, क्या है इसका महत्व?

Ram Mandir Dhwajarohan:अयोध्या के राम मंदिर पर 25 नवंबर को विवाह पंचमी के दिन केसरिया रंग की धर्म ध्वज फहराया जाएगा. यह ध्वज भगवान राम के प्रति भक्तों की आस्था और रघुकुल की परंपराओं का प्रतीक होने वाला है.

Written By: preeti rajput
Edited By: Rakesh Tiwari
Last Updated: 2025-11-21 12:29:55

Ram Mandir Grand Flag Hosting: अयोध्या के राम मंदिर में 25 नवंबर को भव्य ध्वजारोहण समारोह का आयोजन किया गया है. मंदिर के मुख्य शिखर पर सुबह 11:58 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच ध्वजारोहण समारोह होना है. इस भव्य समारोह के लिए  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद रहेंगे. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि राम मंदिर का ध्वज भगवा रंग का होगा. साथ ही इस ध्वज में सूर्य का प्रतीक होगा, जिसके केंद्र में ‘ॐ’और कोविदार वृक्ष की छवी भी नजर आएगी. बता दें कि मंदिर का मुख्य शिखर करीब 161 फीट ऊंचा है. इस ऊंचे शिखर पर 30 फीट का ध्वजस्तंभ स्थापित किया जाना है. यह ध्वज  जमीन से 191 फीट की ऊंचाई पर लहराएगा. इस ध्वज का डिजाइन धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर तैयार किया गया है. जो अयोध्या की विरासत, सूर्यवंश और रामायण के प्रतीक को दिखाता है. 

ध्वज में सूर्य का महत्व 

दरअसल, भगवा ध्वज में तीन प्रमुख प्रतीक बनाए गए हैं. जिसमें भगवान सूर्य, पवित्र अक्षर ‘ॐ’ और कोविदार वृक्ष को शामिल किया गया है. सूर्य प्रतीक सूर्यवंश को दिखाता है. भगवान राम सूर्यवंश से ताल्लुक रखते थे. ध्वज फहराते ही पूरे अयोध्या एक बार फिर राम की भक्ति में लीन हो जाएगा. सनातनी घरों में घंटियों की गूंज सुनाई देगी. ध्वज का आकार 22 गुणा 11 फुट है. मंदिर के शिखर पर लगा यह ध्वज 4 किलोमीटर दूर से ही नजर आ जाएगा. 

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सूर्य में ‘ॐ’ का अर्थ

जानकारी के मुताबिक, ‘ॐ’ को ब्रह्मांड का सबसे पूर्ण और पवित्र मंत्र है. वैज्ञानिकों ने भी माना है कि सूर्य की निकले वाली आवाज ‘ॐ’ की कंपन से काफी ज्यादा मिलती-जुलती है. सूर्य को प्रकाश, ऊर्जा और जीवन का प्रतीक माना जाता है. ॐ आत्मा और दिव्यता का प्रतिनिधित्व करता है. यह दोनों मिलकर सृजन और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं. 

कोविदार वृक्ष- रामायण और अयोध्या

हरिवंश पुराण के मुताबिक, अयोध्या के राजध्वज पर पहले कोविदार वृक्ष का प्रतीक बना हुआ था. जिससे यह सूर्यवंशी परंपरा का अहम प्रतीक बन चुका है. रामायण में इसका भी मिलता है. रामायण के अनुसार, जब भरत प्रभू श्रीराम को वापस अयोध्या लाने के लिए चित्रकूट पहुंचे थे, तो उनके रथ पर लगे ध्वज पर उस दौरान भी कोविदार का चिन्ह अंकित था. जिसके कारण लक्ष्मण ने उन्हें दूर से ही पहचान लिया था. कोविदार वृक्ष कचनार की प्रजाति है. यह अयोध्या में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. यह वृक्ष अपनी सुंदरता और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. रिसर्चगेट शोधपत्र के मुताबिक, वाल्मीकि रामायण में पादप और पशु विविधता में इस बात की जानकारी मिलती है कि श्री राम के वनवास के दौरान कोविदार वृक्ष काफी अहम थे. इस पेड़ में गले की खराश और आवाज में सुधार, मुंहासों और फुंसियों से राहत के गुण शामिल है. खाने में भी इस पेड़ के फूलों के बनी सब्जियां, पकौड़े और आचार शामिल था. इससे कपड़ों में इस्तेमाल होने वाला एक प्राकृतिक रंग भी बनता है. 

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