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पिछले दो दशक की सबसे भयानक मानवीय त्रासदी झेल रहा है बलूचिस्तान

PUBLISHED BY: Roshan Kumar • LAST UPDATED : August 5, 2022, 7:08 pm IST
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पिछले दो दशक की सबसे भयानक मानवीय त्रासदी झेल रहा है बलूचिस्तान

बलूचिस्तान में मानवधिकार हनन के खिलाफ आवाज़ उठाती एक बच्ची.

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली):बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है,इस पर पाकिस्तान ने जबरदस्ती कब्ज़ा किया हुआ है,कब्जे के समय से ही यहाँ के लोग आज़ादी के लिए लड़ रहे है,इस प्रान्त को पाकिस्तान ने दोहन और दमन का पर्याय बना लिया है,चीन के वन रोड-वन बेल्ट परियोजना के नाम पर यहाँ के संसाधनों की लूट जारी है,चीन की इस परियोजना का यहाँ के लोग लगातार विरोध कर रहे है,इन विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए पाकिस्तान की सेना यहाँ के लोगो पर लगातार जुल्मो-सितम करती रही है.

बलूचिस्तान पिछले दो दशकों से सबसे भीषण मानवीय संकट से गुजर रहा है,एक भी महीना ऐसा नहीं है जब मानवाधिकारों के उल्लंघन की सूचना वह से न आती हो,इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी (IFFRAS) की रिपोर्ट के अनुसार,पाकिस्तानी प्रतिष्ठान जिन्हें दुर्व्यवहार के मुख्य अपराधियों के रूप में पहचाना जाता है,यह प्रतिष्ठान कभी कोई जवाबदेही का सामना नही करते.

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प्रदर्शन करते बलूचिस्तान के लोग.

16 जुलाई को, सेना के एक अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल लाइक बेग मिर्जा के हत्यारों के खिलाफ एक ऑपरेशन के दौरान एक सैनिक के साथ नौ संदिग्ध आतंकवादी मारे गए थे,कर्नल लाइक मिर्जा अपने चचेरे भाई उमर जावेद के साथ ज़ियारत से क्वेटा की यात्रा पर थे तब उनका अपहरण कर लिया गया था,लेफ्टिनेंट कर्नल मिर्जा और जावेद के शव हरनाई-जियारत सीमा पर मिले थे.

इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के अनुसार, इनमे से पांच आतंकवादी प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के थे।हालांकि,नौ संदिग्ध आतंकवादियों में से पांच के शवों की पहचान बाद में उनके परिवारों ने की,जिन्होंने दावा किया कि वे लापता व्यक्ति हैं जिन्हें सुरक्षा बलों ने कथित रूप से उठाया था। (IFFRAS) के अनुसार परिवार वालो ने दावा किया की सुरक्षा बलों ने हत्याओं का “जश्न” किया और जिनकी हत्या की गई उन्हें हिरासत से लाया गया था.

बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री और क्वेटा में राज्यपाल के घर के बाहर बलूच लापता लोगों के परिवार नौ लोगो के कथित फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ लगातार बैठे हैं,जो बाद में 13 लापता लोगों तक बढ़ गई। परिजनों का यह भी आरोप है कि उन्हें गुपचुप तरीके से शवों को दफनाने की चेतावनी दी गई थी.

दूसरी ओर,बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि अगर मारे गए लोगों में संगठन का कोई एक भी लड़ाका होता तो वे गर्व से उनका समर्थन करते,IFFRAS की रिपोर्ट के अनुसार,उत्तरी बलूचिस्तान के जियारत जिले में इस फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ पिछले कुछ हफ्तों से व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

पख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी (पीएमएपी) ने कहा कि देश में कानूनी और संवैधानिक सरकार होने के बावजूद लोगों को अवैध रूप से जबरदस्ती उठाया जाता है और फिर फर्जी मुठभेड़ों में मार दिया जाता है.

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बलूचिस्तान के लोग साल 1948 से ही आज़ादी की मांग कर रहे है.

जबरन गायब होने की बात का इस्तेमाल,पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा उन लोगों को आतंकित करने के लिए किया जाता है जो देश की सर्वशक्तिमान सेना की स्थापना पर सवाल उठाते हैं या व्यक्तिगत या सामाजिक अधिकारों की तलाश करते हैं.

IFFRAS के अनुसार,रिपोर्ट से पता चलता है कि यह एक ऐसा अपराध है जिसका इस्तेमाल अक्सर अधिकारियों द्वारा बिना किसी गिरफ्तारी वारंट,आरोप या मुकदमे के उन लोगो के खिलाफ होता है जिन्हे अधिकारी “उपद्रव” मानते है.

इन अपहरणों के शिकार अक्सर युवा, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग होते हैं, इन लोगो को एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ऐसे लोगों के रूप में वर्णित किया जाता है जो “सचमुच गायब हो गए हैं”

एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि अधिकारी पीड़ितों को सड़कों या उनके घरों से पकड़ लेते हैं और बाद में यह बताने से इनकार करते हैं कि वे कहां हैं,बलूचिस्तान में 2000 के दशक की शुरुआत से जबरदस्ती अपहरण किए जा रहे हैं। छात्र अक्सर इन अपहरणों का सबसे अधिक लक्षित वर्ग होते हैं। पीड़ितों में कई राजनीतिक कार्यकर्ता,पत्रकार,शिक्षक, डॉक्टर,कवि और वकील भी शामिल हैं.

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