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भारतीय मूल के कैनेडियन वैज्ञानिक ने खोजी कोरोना के सभी वेरिएंट को बेअसर करने वाली एंटीबॉडी

PUBLISHED BY: Naresh Kumar • LAST UPDATED : August 19, 2022, 10:08 pm IST
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भारतीय मूल के कैनेडियन वैज्ञानिक ने खोजी कोरोना के सभी वेरिएंट को बेअसर करने वाली एंटीबॉडी
  • कोरोना के सभी वेरिएंट को बेअसर करेगी मास्टर चाबी

इंडिया न्यूज, New Delhi News। Antibodies Found Against Corona : कोरोना के कहर के बाद अब एक राहत की खबर मिली है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसे एंटीबॉडी की पहचान की है, जो ओमीक्रोन और कोरोना वायरस के अन्य वेरिएंट को भी बेअसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सभी प्रमुख वेरिएंट में मिली एक ही सामान्य कमजोरी

कोरोना वेरिएंट की कमजोर नब्ज खोजने वाले शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व एक भारतीय-कैनेडियन वैज्ञानिक सुब्रमण्यम ने किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने कोविड-19 के सभी प्रमुख वेरिएंट में एक सामान्य कमजोरी ढूंढ निकाली है।

गुरुवार को प्रकाशित एक शोध में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि उन्होंने कोरोना के सबसे तेजी से फैलने वाला ओमीक्रोन के सब-वेरिएंट में भी यही सामान्य कमजोरी देखी है। उनका कहना है कि इससे एक लक्षित एंटीबॉडी उपचार यानी टारगेटेड एंटीबॉडी ट्रीटमेंट की संभावना बढ़ गई है।

मास्टर चाबी की तरह काम करेंगी एंटीबॉडी

आईआईटी, कानपुर से रसायन विज्ञान में एमएससी करने वाले सुब्रमण्यम के अनुसार, एंटीबॉडी एक विशिष्ट तरीके से वायरस से जुड़ती हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक चाबी ताले में जाती है। हालांकि, जब वायरस म्यूटेट होता है, तो चाबी फिट नहीं होती है। उन्होंने कहा, हम मास्टर चाबी की तलाश कर रहे थे, यानी ऐसी एंटीबॉडी की जो व्यापक म्यूटेशन के बाद भी वायरस को बेअसर कर सके।

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ शोध

शोध कनाडा की ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी आफ पिट्सबर्ग के शोधकतार्ओं ने मिलकर किया है। जहां कनाडाई शोधकर्ताओं का नेतृत्व चिकित्सा संकाय के प्रोफेसर डॉ. श्रीराम सुब्रमण्यम ने किया तो वहीं अमेरिका की ओर से डॉक्टर मिट्को दिमित्रोव और वेई ली ने शोधकर्ताओं का नेतृत्व किया। इस शोध का प्रकाशन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में हुआ है।

वीएच एबी-6 है मास्टर चाबी का नाम

बता दें कि ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एक बयान में बताया, इस नए पेपर में पहचान की गई मास्टर चाबी कोई और नहीं बल्कि एंटीबॉडी का ही एक टुकड़ा है, जिसे वीएच एबी-6 कहते हैं। इसे अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, कप्पा, एप्सिलॉन और ओमीक्रोन वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। यह एंटीबॉडी टुकड़ा स्पाइक प्रोटीन पर एपिटोप से जुड़कर और वायरस को मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोककर सार्स-कोव-2 (कोरोना वायरस) को बेअसर कर देता है।

व्यापक इलाज में किया जा सकता है इस्तेमाल

वहीं शोध के वरिष्ठ लेखक सुब्रमण्यम ने कहा, इस शोध से कोरोना की एक कमजोर नब्ज का पता चलता है। इसके विभिन्न रूपों को एक एंटीबॉडी टुकड़े द्वारा बेअसर किया जा सकता है। इससे सभी वेरिएंट के इलाज का रास्ता भी तैयार होता है, जो संभावित रूप से बहुत कमजोर लोगों की मदद कर सकता है।

उन्होंने कहा कि इस प्रमुख कमजोर नब्ज का अब दवा निर्माताओं द्वारा फायदा उठाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस वीएच एबी-6 एंटीबॉडी का इस्तेमाल व्यापक इलाज में किया जा सकता है।

क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से पकड़ी कोरोना की कमजोर नब्ज

वैज्ञानिकों ने क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का इस्तेमाल कर वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर कमजोर नब्ज की खोज की है। इसे एपिटोप के रूप में भी जाना जाता है। क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी की बात करें तो यह एक पावरफुल इमेजिंग तकनीक है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह अल्ट्रा-कूलिंग (क्रायो) तकनीकों का इस्तेमाल करके टिश्यूज और सेल्स के साइज को देखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक बीम का इस्तेमाल करती है। चूंकि कोविड-19 वायरस पिनहेड के आकार से 100,000 गुना छोटा है, इसलिए रेगुलर लाइट माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करके इसका पता नहीं लगाया जा सकता है।

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