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Caste Census: भारत में कब और कैसे शुरु हुआ जातिगत आरक्षण, जानें इससे जुड़ी पूरी कहानी

India News (इंडिया न्यूज़), Caste Census: गांधी जयंती के मौके पर बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना रिपोर्ट जारी किया गया। जिसके बाद पूरे देश में आरक्षण को लेकर चर्चा तेज हो गई। एक ओर गठबंधन (I.N.D.I.A) इसे समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए वरदान बता रही है। वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी भाजपा इसे हिन्दुओं को बांटने की कोशशि बता रही है। उनका कहना है कि इस रिपोर्ट का मकसद हिन्दुओं को आपस में लड़वाना है। लेकिन इन सब के पीछे सवाल यह है कि जातिगत जनगणना आज तक क्यों करवाया जाता रहा है? आखिर इसका मकसद क्या है?

  • ब्रिटिश काल में शुरु हुआ सिलसिला
  • मंडल आयोग का अपना योगदान
  • कांशीराम की अहम भूमिका (Caste Census)

जातिगत जनगणना का सरकारी लाभ

बता दें कि जातिगत जनगणना करवाने के पीछे मुख्य कारण आरक्षण है। जी हां आरक्षण सरकार के सभी योजनओं में , सभी सरकारी भर्तीयों में और सभी सरकारी सुविधाओं में, लाभ पाने के लिए जनगणना जरुरी है। दरअसल, मौजूदा रिपोर्ट के मुताबिक कहा जाता है कि पहले के समय में उच्चे वर्ग के लोगों ने छोटी वर्ग के लोगों को काफी सताया है। उनपर कई जुर्म किए गए हैं। जिसके कारण वो समाज में कहीं ना कहीं पीछे छुट गए। जिसके बाद उन्हें बराबरी पर लाने के लिए समाज के कुछ नायकों ने आरक्षण जैसी निती लाई।

फूट डालो-राज करो की राजनीति

जाती आधारित आरक्षण का इतिहास काफी पुराणा है। इसका सबसे पहला विचार साल 1882 में आया। ज्योतिराव फुले और विलियम हंटर ने सबसे पहले देश में जाति आधारित आरक्षण पर बात की। जिसके बाद 1932 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जाति आधारित आरक्षण को लेकर कम्युनल अवॉर्ड की घोषणा की गई। जिसके जरीय दलितों को 2 वोट का अधिकार दिया गया। जिसके माध्यम से वो दलित एक वोट से प्रतिनिधि चुन सकते थे और दूसरे वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुन सकते थे। लेकिन गाधी जी के ना सहमति के कारण यह अवॉर्ड उसी साल खत्म कर दिया गया। जिसके बाद महात्मा गांधी और भीम राव अंबेडकर के बीच पुणे की की यरवदा जेल में एक समझौता हुआ। जिसे आज पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के माध्यम से यह तय किया गया कि आरक्षण के साथ केवल एक हिंदू निर्वाचन क्षेत्र रहेगा।

मंडल कमीशन का योगदान

वहीं आरक्षण को लेकर मंडल कमीशन का भी अहम योगदान रहा है। पहली बार इस कमीशन द्वारा हीं ओबीसी के लिए आरक्षण की बात कही गई। इस आयोग की अध्यक्षता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल ने की थी। वहीं दलितों के आरक्षण की बात की जाए तो कांशीराम का नाम जरूर आता है। उन्होंने 1973 में ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी एम्पलाईज फेडरेशन का गठन किया था। जिसे शॉर्ट में बामसेफ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बाद में दलितों के कल्याण के लिए बहुजन समाज पार्टी बनाई। उन्होंने उस समय ‘वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा’ और ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ का नारा दिया था।

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Shanu kumari

दिल से पटना और दिमाग से दिल्ली में रह रहीं शानू अब एन. आर. बी (नॉन रेजिडेंट बिहारी) बन चुकी हैं । पत्रकारिता में पिछले तीन सालों से एक्टिव हैं। अभी इंडिया न्यूज दिल्ली में नेशनल डेस्क पर कार्यरत है। इसे पहले Awni TV में काम कर चुकी है। साथ ही ऑल इंडिया रेडियो पर कई टॉक का हिस्सा रहीं हैं। इंडियन पालिटिक्स के अलावा इंटरनेशनल पालिटिक्स में विशेष रुचि है। पत्रकारिता के माध्यम से सरकार और जनता को जोड़े रखने की सतत इच्छा है।

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