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जिस पार्टी को पिता ने बनाया उसका नाम और पहचान क्यों गंवा बैठे उद्धव ठाकरे, जानें असली कारण

PUBLISHED BY: Roshan Kumar • LAST UPDATED : February 18, 2023, 9:00 am IST
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जिस पार्टी को पिता ने बनाया उसका नाम और पहचान क्यों गंवा बैठे उद्धव ठाकरे, जानें असली कारण

shivsena formation and lose symbol to eknath shinde

दिल्ली (Shivsena goes to eknath shinde): देश के चुनाव आयोग ने देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक शिवसेना की छह महीने पुरानी पहचान की लड़ाई को खत्म करते हुए अपना फैसला सुनाया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना को असली शिवसेना माना गया। आयोग ने शिंदे गुट को तीर-कमान का चुनाव चिन्ह भी इस्तेमाल करने की मंजूरी दी गई।

आयोग के 78 पन्नों के आदेश में चुनाव आयोग ने कहा कि एकनाथ शिंदे को 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी के विजयी वोटों के 76 प्रतिशत विधायकों का समर्थन प्राप्त था। इसके साथ ही आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को पिछले साल आवंटित ‘मशाल’ चुनाव चिह्न रखने की अनुमति दी। चुनाव आयोग के फैसले पर खुशी जताते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा, “मैं चुनाव आयोग को धन्यवाद देता हूं। लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है। यह शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की विरासत की जीत है। हमारी असली शिवसेना है।”

उद्धव गुट अलोकतांत्रिक

आयोग ने अपने आदेश में कहा कि उद्धव गुट की पार्टी का संविधान अलोकतांत्रिक है, बिना चुनाव के किसी को यहां नियुक्त किया गया हैं। शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों को गुपचुप तरीके से वापस लाया गया, जिससे पार्टी निजी संपत्ति की तरह हो गई। इन तरीकों को चुनाव आयोग पहले ही साल 1999 में नामंजूर कर चुका हैं। आदेश में कहा गया “अब महाराष्ट्र में शिवसेना से उद्धव गुट की दावेदारी खत्म मानी जा रही है।”

शिंदे ने किया था उद्धव का तख्तापलट

साल 2022 के जून महीने में महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव थे इस दौरन शिंदे ने पार्टी से बगावत करा दिया औऱ अपने साथ कई विधायकों को लेकर पहले सूरत फिर गुवाहटी चले। इसके बाद राज्यपाल ने विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना। इससे बाद उद्धव ठाकरे ने फेसबूक पर लाइव आकर इस्तीफा देने को ऐलान कर दिया और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री के रूप शपथ ली। कुछ महीने बाद हुए अंधेरी ईस्ट उपचुनाव को दोनों गुटो को आयोग की तरफ से अलग-अलग चुनाव चिन्ह भेंट किया था। इसमें उद्धव गुट को मशाल चुनाव चिह्न मिला था तथा गुट का नाम शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे कर दिया था। उद्धव गुट अब इसी नाम औऱ चिन्ह का इस्तेमाल करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने टाली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में शिवसेना बनाम शिंदे गुट विवाद पर फैसला 21 फरवरी तक टाल दिया। बेंच ने कहा, ‘नबाम रेबिया के सिद्धांत इस मामले में लागू होते हैं या नहीं, केस को 7 जजों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, ये मौजूदा केस के गुण-दोष के आधार पर तय किया जा सकता है। इसे मंगलवार को सुना जाएगा। पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे।

किसने क्या कहा?

उद्धव ठाकरे– पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उन्होंने कहा- ‘मैंने चुनाव आयोग से कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक रुकना चाहिए। मगर ऐसा नहीं हुआ आगे भविष्य में कोई भी विधायकों या सांसदों को खरीदकर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन सकता है जो फैसला दिया है, वो लोकतंत्र के लिए घातक है। अब लालकिले से प्रधानमंत्री को घोषणा कर देना चाहिए कि लोकतंत्र खत्म हो गया है।

संजय राउत– राज्यसभा सासंद राउत ने ट्वीट किया- ‘इसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी, देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। कहा गया था कि नतीजा हमारे पक्ष में होगा, लेकिन अब एक चमत्कार हो गया है। लड़ते रहो, ऊपर से नीचे तक करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया है। हमें फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जनता हमारे साथ है हम जनता के दरबार में नया चिह्न लेकर जाएंगे और फिर से शिवसेना खड़ी करके दिखाएंगे, ये लोकतंत्र की हत्या है।’

देवेंद्र फडणवीस– महाराष्ट्र उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा- ‘CM एकनाथ शिंदे की शिवसेना को शिवसेना का चिह्न और नाम मिला है असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की शिवसेना बनी है हम पहले दिन से आश्वस्त थे, क्योंकि चुनाव आयोग के अलग पार्टियों के बारे में इसके पहले के निर्णय देखे तो इसी प्रकार का निर्णय आए हैं।

1966 में बनी थी शिवसेना

19 जून 1966 को बाला साहेब ठाकरे ने अपनी नई राजनीतिक पार्टी शिवसेना की नींव रखी थी। बाल ठाकरे पेशे से कार्टूनिस्ट थे। उन्होंने जिंदगी में कभी चुनाव नहीं लड़ा और ना ही कोई संविधानिक पद ग्रहण किया। मराठी लोगों के अधिकारों के संघर्ष के लिए उन्होने पार्टी का गठन किया था। पार्टी के गठन के कुछ साल बाद ही शिवसेना काफी लोकप्रिय हो गई। हालांकि महाराष्ट्र के मूल निवासियों के मुद्दे की वजह से दूसरे राज्यों से व्यापार करने महाराष्ट्र आए लोगों पर काफी हमले भी हुए।

धीरे-धीरे पार्टी मराठी मानुष के मुद्दे से हटकर हिन्दुत्व की राजनीति करने लगी। 1990 में शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें 183 में से पार्टी के 52 प्रत्याशियों को जीत मिली। इसके बाद साल 1995 में हुए चुनावों में शिवसेना और बीजेपी की सरकार बनी। शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री और बीजेपी के गोपीनाथ मुन्डे उपमुख्यमंत्री बने थे।

 

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