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इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : भारत चाहे जितनी भी कोशिश करें, चीन अपनी आदत से बाज नहीं आता। वह हर बार दोस्ती का हाथ बढ़ाने का नाटक तो करता है, लेकिन मौका मिलते ही भारत का हाथ मरोड़ देता देता है। डोकलाम, गलवान और अब तवांग इस बात के उदाहरण हैं। ये और बात है कि भारत हर बार अपनी सामरिक शक्ति और कूटनीति से चीन को जवाब तो देता है, लेकिन उसे पूरी तरह मात देने में असफल रहता है। हालांकि भारत चाहे तो ऐसा कर सकता है, लेकिन इसके लिए देश को कई अहम कदम उठाने होंगे। भारत ने अगर ये काम कर दिया तो भारत का हाथ होगा और चीन की गर्दन होगी।
ज्ञात हो, भारत से लगी तकरीबन 4 हजार किमी लंबी सीमा पर चीन लगातार आधार भूत ढांचे को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है। भारत को भी यही करना होगा। हालांकि केंद्र सरकार इसके लिए प्रयासरत है, लेकिन इसमें और तेजी लानी होगी। यदि चीन की बात करें तो उसने पूरे सीमा क्षेत्र को सड़क और हवाई मार्ग से जोड़ दिया है, लेकिन भारत इस मामले में बेहद पीछे है। हालांकि पिछले दिनों 2 माउंटेन डिवीजन के अफसर मेजर जनरल एमएस ने भरोसा दिया था कि भारत भी सड़क निर्माण के साथ हेलीपैड और दूसरे बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है।
जानकारी दें, चीन का सिर्फ भारत के साथ ही सीमा विवाद नहीं है, उसके ऐसे 17 पड़ोसी देश है जिससे कोई न कोई क्षेत्र का विवाद चल रहा है। वियतनाम, जापान, साउथ-उत्तर कोरिया, भूटान, तिब्बत, ताइवान आदि प्रमुख हैं। इन सबसे चीन का कुछ न कुछ विवाद है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में भी कई ऐसे द्वीप हैं, जिन पर कब्जे को लेकर विवाद चल रहा है। तात्कालिक तौर पर चीन की शक्ति को संतुलित करने के लिए इन्हीं देशों के साथ सामरिक साझेदारी मजबूत करनी चाहिए, ताकि चीन पर दबाव बनाया जा सके।
जगजाहिर है, भारत जब-जब अमेरिका से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, तो सबसे ज्यादा पेट दर्द चीन का ही होता है, दरअसल भारत के साथ दोस्ताना संबंध से सबसे ज्यादा नुकसान चीन को ही है। चीन के विदेश मंत्रालयों की ओर से जारी बयानों में इसकी झलक दिखती रही है। अमेरिका और चीन के बीच आपसी संबंध बहुत बेहतर नहीं है। ऐसे में चीन ये मानता है कि अमेरिका और भारत की दोस्ती एशिया में उसके बढ़ते दखल में बाधक हो सकती है। दूसरा अमेरिका भारत को एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ाने की नजर से देखता है। ऐसे में भारत के लिए चीन अगर दुश्मन बनता है तो अमेरिका सुरक्षा कवच के तौर पर काम कर सकता है।
अर्थव्यवस्था के मामले में भारत को अगला चीन बनना होगा। दरअसल 1990 तक दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्था तकरीबन समान थी, लेकिन उसके बाद से भारत की विकास दर पिछड़ती गई और चीन एज लेता गया। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत की जीडीपी 3.1 ट्रिलियन थी, जबकि चीन 17.7 ट्रिलियन डॉलर पर था। यदि चीन की अर्थव्यवस्था न बढ़े और भारत की अर्थव्यवस्था 7.75 प्रतिशत की दर से बढ़े तब कहीं अगले 25-30 साल में भारत चीन का मुकाबला कर पाएगा।
भारत को अगर चीन की गर्दन मरोड़नी है तो आयात के मामले में हम चीन पर जो हद से ज्यादा निर्भर हैं, इसे कम करना होगा। खास बात ये है कि चीन भारत से कच्चा माल खरीदता है और उसे पक्का कर भारत को महंगे दाम पर ही बेचता है। मेक इन इंडिया को मजबूत कर हमें इसमें कमी लानी होगी। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो वर्ष 2021 की पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, जबकि कोविड के पहले के दौर में वर्ष 2020 की पहली छमाही में हुए 44.72 अरब डॉलर ही थी। चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (GAC) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत साल 2020-21 में चीन को 1,57,201.56 करोड़ का निर्यात किया था, जबकि आयात इससे चार गुना ज्यादा किया। कोरोना काल में भी भारत ने सबसे ज्यादा जहां से माल आयात किया उनमें नंबर 1 पर चीन ही था। इसके बाद अमेरिका, UAE का नंबर आया था।
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