इंडिया न्यूज़ (बेंगलुरु):कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गलत तरीके से गिरफ्तार व्यक्ति को ₹5 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया,कोर्ट ने गिरफ्तार करने वाले अधिकारी की भी पहचान सुनिश्चित करने को कहा,कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा की कि जब भी कोई वारंट जारी किया जाता है,चाहे वह जमानती हो या गैर-जमानती,गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को पहचान का पता लगाने की आवश्यकता होती है और इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है उसी के खिलाफ वारंट जारी हुआ है.
न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने निंगराजु एन नामक व्यक्ति जिसे पहचान में गलती होने के कारण गिरफ्तार किया गया था,उसे पांच लाख मुआवजा देने का आदेश भी राज्य सरकार को दिया.
कोर्ट ने कहा की आवेदक को गिरफ्तार करने का एकमात्र कारण यह है कि उसके पिता का नाम वारंट में नामित व्यक्ति के नाम से मिलता-जुलता था,मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि पिता का नाम समान होने से गिरफ्तारी में कोई भूमिका कैसे हो सकती है,यदि एक भाई के खिलाफ वारंट जारी हुआ हो तो,दूसरे भाई या शायद बहन को गिरफ्तार इसलिए कर लिया जाएगा क्योंकि पिता का नाम सामान है? प्राथमिक महत्व उस व्यक्ति की पहचान है,जिसे गिरफ्तार किया जाना है और पिता के नाम जैसा कोई अन्य पहलू नहीं है,हालांकि इसकी एक पुष्टिकारक भूमिका हो सकती है.
कोर्ट ने आगे कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुनिश्चित जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि है,किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करना जिसकी गिरफ्तारी अधिकृत नहीं थी,भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुनिश्चित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
पीठ ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि यदि इस स्थिति से निपटने के लिए पहले से ही दिशानिर्देश या मानक संचालन प्रक्रिया जारी की गई है,तो सभी अधिकारियों को इस संबंध में प्रशिक्षण प्रदान किया जाए,यदि नही तो चार सप्ताह के भीतर पहचान सत्यापन सहित किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले,गिरफ्तार करने वाले अधिकारी द्वारा क्या कदम उठाए जाने जरुरी है यह जारी किया जाए.
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