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इंडिया न्यूज़ (दिल्ली, kartik sharma Question on Ram setu in Rajysabha): राम सेतु को लेकर भारत सरकार से राज्यसभा सांसद राज्यसभा कार्तिक शर्मा ने संसद में सवाल पूछा था। इसपर सरकार ने जो जवाब दिया उसपर राजनीतिक बवाल मच गया है।
राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने राम सेतु से जुड़े सवाल का जवाब दिया। उनकी ओर से यह भी कहा गया कि सरकार लगातार प्राचीन शहर द्वारका और ऐसे मामलों की जांच के लिए काम कर रही है।
Whether the Govt is making efforts for conducting scientific assessment of glorious history and historical facts of India from the Vedic period to the present day and introducing it into the curriculum? (My question in RS) pic.twitter.com/Tu6MrtiFCP
— Kartik Sharma (@Kartiksharmamp) December 22, 2022
हरियाणा से निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने राज्यसभा में पूछा था कि क्या सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास को लेकर कोई साइंटिफिक रिसर्च कर रही है? क्योंकि पिछली सरकारों ने इस मुद्दे को महत्व नहीं दिया। इस सवाल पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जवाब दिया।
जितेंद्र सिंह ने कहा, मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे सांसद ने रामसेतु के मुद्दे पर सवाल किया। इसको खोजने को लेकर हमारी कुछ सीमाएं है। लेकिन ये करीब 18000 साल पुराना इतिहास है। ऐसे में हमारी कुछ सीमाएं हैं, जिस ब्रिज की बात हो रही है, वह 56 किलोमीटर लंबा था।”
“स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिए हमने पता लगाया कि समुद्र में पत्थरों के कुछ टुकड़े पाए गए हैं, इनमें कुछ ऐसी आकृति है जो निरंतरता को दिखाती हैं। समुद्र में कुछ आइलैंड और चूना पत्थर जैसी चीजें भी मिली हैं। साफ शब्दों में कहा जाए तो ये कहना मुश्किल है कि रामसेतु का वास्तविक स्वरूप वहां मौजूद है। हालांकि कुछ संकेत ऐसे भी हैं, जिनसे ये पता चलता है कि वहां स्ट्रक्चर मौजूद हो सकता है।” जितेंद्र सिंह ने कहा
साल 2005 में सेतुसमुद्रम कार्यक्रम के तहत जिस हिस्से को राम सेतु माना जाता है उसे सरकार तोड़ना चाहती थी। सेतुसमुद्रम उस महत्वाकांक्षी परियोजना का नाम है जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच समुद्री मार्ग को सीधी आवाजाही के लिए खोलता था।
इस मार्ग के शुरु होने से जहाज़ों को 400 समुद्री मीलों की यात्रा कम करनी होती जिससे लगभग 36 घंटे समय की बचत होती। राम सेतु की वजह से जहाज़ों को श्रीलंका की परिक्रमा करके जाना होता है। तब भारत और श्रीलंका के पर्यावरणवादी संगठन इस परियोजना का विरोध कर रहे थे। उनका मानना था कि इस परियोजना से पाक स्ट्रेट और मन्नार की खाड़ी में समुद्री पर्यावरण को नुक़सान होगा।
साल 2007 में जब राम सेतु पर सेतुसमुन्द्रम बनाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलकनामा दिया था की भगवान राम का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
सेतु कॉर्पोरेशन लिमिटेड Setusamudram Corporation Limited यानी SCI को मोदी सरकार ने भंग कर दिया। इस कंपनी को यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने सेतुसमुन्द्रम के लिए बनाया था। हंगामा ज्यादा होने पर प्रोजेक्ट को आखिरकार रोकना पड़ा था और मोदी सरकार ने इसे खत्म करने का फैसला किया।
भारत के रामेश्वरम और मन्नार द्वीप के बीच चूने की चट्टानों की चेन है। इसे भारत में रामसेतु के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 30 मील (48 किमी) है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। जिससे यहां बड़ी नावें और जहाज चलाने में खासी दिक्कत आती है।
रामायण के अनुसार, भगवान् राम ने सीता को रावण की कैद से आजाद कराने के लिए इस पुल का निर्माण कराया था। उस वक्त उनके साथ मौजूद वानरों की सेना ने पत्थरों से इसका निर्माण किया था। 1993 में नासा ने इस रामसेतु की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की थीं जिसमें इसे मानव निर्मित पुल बताया गया था।
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