इंडिया न्यूज, New Delhi News : Earth’s speed : हाल ही में वैज्ञानिकों और खगोलशास्त्रियों ने धरती के सामान्य गति से तेज घूमने को लेकर खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया है कि पृथ्वी के घूमने की स्पीड इतनी तेज है कि 24 घंटे में पूरा होने वाला चक्कर, उससे पहले ही पूरा हो रहा है। तो चलिए जानते हैं क्या वजह है कि धरती इतनी तेजी से घूम रही है। इससे संसार में क्या नुकसान होगा है।
दरअसल एक दिन में 86,000 सेकंड होते हैं, लेकिन पृथ्वी को अपने घूर्णन के दौरान चन्द्रमा और सूर्य के गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव सहना पड़ता है। जिस कारण पृथ्वी को उसके नियत समय से कुछ अतिरिक्त समय अर्थात 86,400.002 सेकंड लग जाता है।
कहते हैं कि हर दिन ये 0.002 सेकेंड जमा होते रहते हैं और एक साल में करीब 2 मिली सेकेंड जुड़ जाते हैं। इस तरह से करीब 3 साल में एक पूरा सेकेंड बन जाता है, लेकिन यह इतना छोटा समय है कि कई बार इसे पूरा होने में लंबा समय लगता है।
परिणामस्वरूप औसत सौर समय और इंटरनेशनल अटामिक टाइम या आणविक समय या वैश्विक समय के मध्य का सामंजस्य बिगड़ जाता है। तब आणविक घड़ियों के माध्यम से वैश्विक समय में एक अतिरिक्त सेकंड जोड़ दिया जाता है जिसे लीप सेकंड कहा जाता है। पृथ्वी का परिक्रमण धीमा हो रहा है इसलिए लीप सेकंड जोड़ा जाता रहा है।
कंप्यूटर, मोबाइल जैसे गैजेट्स में समय की भरपाई के लिए निगेटिव लीप सेकेंड लाया गया तो इससे ये गैजेट्स क्रैश हो सकते हैं। कहते हैं कि सर्वप्रथम लीप सेकंड 1972 को लागू किया गया था।
लंबे समय तक ब्रेक कर दिाए जाने के बाद 1998 से पुन: प्रक्रिया में लाया गया तब से आज तक 27 बार लीप सेकंड जोड़ा जा चुका है। आखिरी बार 31 दिसंबर 2016 को जोड़ा गया था। इसका कोई साल निर्धारित नहीं है केवल 30 जून या 31 दिसंबर का दिन तय किया गया है।
इंडिपेंडेंट अनुसार पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार तेज हो गई है। 2021 में भी धरती के घूमने की रफ्तार तेज थी, लेकिन उस दौरान कोई नया रिकार्ड नहीं बना था। 2020 में भी धरती ने 1960 के दशक के बाद सबसे छोटे दिन (जुलाई का महीना सबसे छोटा देखा गया) का रिकार्ड बनाया था। उस साल 19 जुलाई को दिन 24 घंटे से 1.4602 मिली सेकेंड छोटा रहा था।
वैज्ञानिकों मुताबिक पृथ्वी को धूरी पर एक पूर्ण घूर्णन प्रक्रिया में 24 घंटे लगने चाहिए लेकिन चंद्रमा के गुरूतवाकर्षण बल का प्रभाव पृथ्वी पर होने के कारण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। फलस्वरूप वैश्विक समय से तालमेल बिगड़ता है और तब लीप सेकंड जोड़ने की जरूरत होती है।
सोलर टाइम और एटामिक टाइम में फर्क को समाप्त करने के लिए कार्नडिनेटेड यूनिवर्सल टाइम बनाया गया है। इसमें सामंजस्य बैठाने की कोशिश 1972 से हो रही है।
इससे पहले समय को सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर तय किया जाता था। अगर लीप सेकंड जोड़ा जाता है तो यह कोई पहली बार नहीं होगा। दुनियाभर की घड़ियां जिस यूटीसी के आधार पर चलती हैं। उसे 27 बार लीप सेकेंड से बदला जा चुका है।
असल में कुछ साल पहले तक सोचा जाता था कि पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार कम हो रही है। ऐसा 1973 तक एटामिक क्लाक से की गई गणना के बाद माना गया था। इसी के बाद इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस ने लीप सेकेंड जोड़ना शुरू किया जो 27वीं बार 31 दिसंबर 2016 को किया गया था।
बता दें कुछ साल पहले तक वैज्ञानिकों कहते थे कि पृथ्वी का घूमना धीमा हो रहा है। इसको देखते हुए इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस ने धीमी स्पिन के लिए लीप सेकंड जोड़ना शुरू कर दिया था।
बता दें कि ऐसा 31 दिसंबर 2016 तक किया गया, लेकिन फिर कहा गया कि धरती तेजी से घूम रही है। परमाणु घड़ियों से भी ये पता चला है कि पृथ्वी के घूमने की गति तेज हो रही है। ये नेगेटिव लीप सेंकेड की शुरूआत कर सकती है।
29 जून 2022 का दिन 24 घंटे से कम का था, यानी अब तक सबसे छोटा दिन। इस दिन धरती ने अपनी एक्सिस यानी धूरी पर 24 घंटे से कम समय यानी 1.59 मिली सेकेंड (एक सेकंड के एक हजारवें हिस्से से थोड़ा अधिक) पहले ही यह चक्कर पूरा कर लिया। वहीं 26 जुलाई को भी धरती ने अपना एक चक्कर 1.50 मिली सेकेंड पहले पूरा कर लिया था।
पृथ्वी की गति में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही है। इसका कारण ग्लेशियरों का पिघलना, धरती की आंतरिक पिघली कोर और भूकंप हो सकते हैं। कोर की इनर और आउटर लेयर, महासागरों, टाइड या फिर जलवायु में लगातार हो रहे परिवर्तन के कारण भी यह हो सकता है। नेगेटिव सेकंड लीप संभावित रूप से आईटी सिस्टम के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करेगा।
बताया जाता है कि धरती तेज गति से घूमती रही तो एक नए निगेटिव लीप सेकेंड की जरूरत पड़ेगी। ताकि घड़ियों की गति को सूरज के हिसाब से चलाया जा सके। निगेटिव लीप सेकेंड से बड़े नुकसान की भी आशंका जताई जा रही है। इससे स्मार्टफोन, कंप्यूटर और अन्य कम्यूनिकेशन सिस्टम की घड़ियों में गड़बड़ी पैदा हो सकती है।
मेटा ब्लॉग की रिपोर्ट कहती है कि लीप सेकेंड वैज्ञानिकों और एस्ट्रोनॉमर्स यानी खगोलविदों के लिए तो फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह एक खतरनाक परंपरा है जिसके फायदे कम नुकसान ज्यादा हैं।
यह इसलिए क्योंकि घड़ियां 23:59:59 के बाद 23:59:60 पर जाती हैं और फिर 00:00:00 से दोबारा शुरू होती हैं। टाइम में यह बदलाव कंप्यूटर प्रोग्रामों को क्रैश कर सकता है और डेटा को करप्ट कर सकता है क्योंकि यह डेटा टाइम स्टैंप के साथ सेव होता है।
अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियां जैसे कि गूगल, अमेजन, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां लीप सेकेंड को खतरनाक बताते हुए इसे खत्म करने की मांग की है।
मेटा ने बताया कि यदि निगेटिव लीप सेकेंड जोड़ा जाता है तो घड़ियों का समय 23:59:58 के बाद सीधा 00:00:00 पर जाएगा और इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इस समस्या के हल के लिए इंटरनेशनल टाइमर्स को ड्रॉप सेकेंड जोड़ना होगा।
वैसे तो लीप सेकंड का कोई निर्धारित साल नहीं है। लेकिन 30 जून या 31 दिसंबर को ही लीप सेकंड जोड़ा जाता है जो आवश्यक होने पर (इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विसेस) द्वारा घोषणा की जाती है और (कोआर्डिनेटेड यूनिवर्शल टाइम) के मुताबिक होता है।
आईईआरएस एटॉमिक समय होता है, जहां एक सेकंड की अवधि सिसियम के एटम्स में होने वाले पूवानुर्मानित इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ट्रांजिशन के आधार पर होती है, यह ट्रांजिशन इतने अधिक विश्वसनीय होते हैं कि सिसियम क्लॉक 14,00,000 वर्षों तक सही हो सकती है।
जब लीप सेकेंड जोड़ा जाता है तब कम्प्यूटर सिस्टम का समय बिगड़ जाता है। ज्ञात हो कि 2012 में जब लीप सेकेंड जोड़ा गया था तब समय, वैश्विक समय से भिन्न होने के कारण कई कम्प्यूटर सॉफटवेयर क्रैश हो गए थे।
गूगल लीप सेकेंड बढ़ाने से बचने के लिए लीप स्मीयर तकनीक का प्रयोग करता है जिससे लीप सेकेंड को समय से पहले मर्ज करके चलती है।
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