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नेहरू भी वाजपेयी को कह सकते थे चीनी एजेंट, कांग्रेस ने मोदी को 1962 जंग याद दिलाया

Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : December 15, 2022, 8:19 pm IST
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नेहरू भी वाजपेयी को कह सकते थे चीनी एजेंट, कांग्रेस ने मोदी को 1962 जंग याद दिलाया

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सैनिकों के साथ हुई भिड़ंत पर कांग्रेस समेत विपक्ष की मांग है कि इस पर संसद में बहस हो। लेकिन सरकार अभी तक इसके लिए तैयार नहीं है. चर्चा की मांग न मानने पर कांग्रेस ने लोकसभा से वॉकआउट भी किया। इसी मसले पर कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा है कि चीन के मुद्दे पर सरकार बहस क्यों नहीं चाहती है, ये कांग्रेस और विपक्ष जानना चाहता है। उन्होंने कहा कि 1962 में जब चीन के साथ जंग चल रही थी तब 36 साल के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने विशेष सत्र बुलाने की मांग की, चाहते तो नेहरू जी कह सकते थे कि आप चीन के एजेंट हैं, हम आपकी बात नहीं सुनेंगे। नेहरू जी ने ये मांग स्वीकार की।

पवन खेड़ा ने तवांग भिड़ंत का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसी कौन सी मजबूरी है कि प्रधानमंत्री मोदी चीन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं। इस बारे में प्रधानमंत्री जब बोलते हैं तो चीन को सिर्फ क्लीन चिट देते हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने चुनावों में एक चीनी कंपनी का इस्तेमाल किया जिसे केंद्र में सत्तारूढ़ उसी की सरकार ने हमारी देश की संप्रभुता के लिए खतरा बताया था। खेड़ा के अनुसार एक कंपनी जिसे विश्व बैंक, अमेरिका और यूरोप द्वारा ब्लैकलिस्ट किया गया, उसे जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती जिले में स्मार्ट मीटर लगाने का ठेका दिया गया।

कांग्रेस ने पीएम की चुप्पी पर उठाए सवाल

पवन खेरा ने कहा कि हम जब भारत जोड़ने की बात करते हैं तो सीमाओं पर भी कुछ खतरे हैं। विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश में, जो कुछ हो रहा है सरकार खुद भी आंख मूंद कर बैठी है और चाहती है कि मीडिया और विपक्ष भी आंख मूंद कर बैठ जाए। कल तमाम विपक्षी दलों ने संसद से वॉकआउट किया क्योंकि विपक्षी दल आंख मूंदना नहीं चाहते। वे आंख खुली रखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मीडिया भी अपनी आंख खुली रखे क्योंकि अगर हम सबने आंख मूंद ली तो सीमा पर बचने लायक कुछ होगा नहीं, कुछ रहेगा नहीं।

कांग्रेस नेता के अनुसार, कल हमारे तमाम विपक्षी दलों ने इसलिए संसद से वॉकआउट किया क्योंकि वे सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं थे। सरकार चीन के मुद्दे पर संसद में चर्चा नहीं करना चाहती। प्रधानमंत्री का मुंह बंद रहता है और जब मुंह खुलता है तो वे चीन को क्लीनचिट दे देते हैं। 20 जून 2020 को जो उन्होंने क्लीनचिट दी आज तक हिंदुस्तान उस क्लीनचिट का खामियाजा भुगत रहा है।

चीन मसले पर संसद में बहस चाहती है कांग्रेस

पवन खेरा ने आगे कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में बहस की मांग की थी और नेहरू ने इसे स्वीकार कर लिया था। तब एक सांसद ने सुझाव दिया था कि यह गुप्त बहस होनी चाहिए और इसे मीडिया में प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस सुझाव को खारिज कर दिया। यहां तक कि कांग्रेस के एक तत्कालीन सांसद ने भी सरकार से सवाल पूछे थे। मोदी जी को इतिहास के उस पन्ने से सीखना चाहिए कि जब राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे होते हैं, जब सीमाओं की सुरक्षा का सवाल होता है तो देश जानना चाहता है कि हमारी सीमा पर क्या हो रहा है।

खेड़ा ने कहा कि हमारी मजबूत सेना है हमारी वीर सेना है, हमारी शौर्यवान सेना है। इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नहीं है, कमजोर है। हमारे सैनिक चीन के सैनिकों को खदेड़ना चाह रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री क्लीनचिट दे रहे हैं । बताइए कैसे सीमाएं सुरक्षित रह सकती हैं?

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