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इंडिया न्यूज, Morena News। Gwalior Palpur Royalty New: भारत में 75 साल बाद चीतों की वापसी के रास्ते में एक और रुकावट आ गई है। पालपुर राजघराने ने श्योपुर जिले के विजयपुर अतिरिक्त सत्र न्यायालय में ग्वालियर हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना संबंधी याचिका दायर की है। अदालत में पालपुर परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता मुरली मनोहर पाराशर का कहना है कि उच्च न्यायालय ने हमारी याचिका और दावों के जवाब में अपना जवाब देने के लिए जिला प्रशासन को कहा था।
उन्होंने कहा कि कलेक्टर ने उच्च न्यायालय के सीधे आदेश के बावजूद हमारी याचिका का हवाला दिए बिना रिपोर्ट पेश कर भूमि अधिग्रहण करने का आदेश जारी कर दिया। इस मामले में अगली सुनवाई 19 सितंबर को विजयपुर एडीजे कोर्ट में होगी।
राजपरिवार के किले और जमीन पर कब्जा वापस करने की मांग की गई है। पालपुर राजघराने का दावा है कि उन्होंने अपना किला और जमीन शेरों के लिए दी थी, न कि चीतों के लिए। जब कूनो को गिर शेरों को लाने के लिए अभयारण्य घोषित किया गया तो उन्हें अपना किला और 260 बीघा भूमि खाली करनी पड़ी।
पालपुर राजघराने के वंशजों ने अपनी पुश्तैनी संपत्ति वापस पाने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कूनो-पालपुर पर शासन करने वाले परिवार के वंशज श्रीगोपाल देव सिंह ने बताया कि उन्होंने संपत्ति को वापस लेने के लिए सत्र अदालत में याचिका दायर की है।
बता दें कि पालपुर रियासत के वंशज शिवराज कुंवर, पुष्पराज सिंह, कृष्णराज सिंह, विक्रमराज सिंह, चंद्रप्रभा सिंह, विजयाकुमारी आदि ने ग्वालियर हाईकोर्ट में कूनो सेंक्चुरी के लिए की गई भूमि अधिग्रहण के खिलाफ साल 2010 में ग्वालियर हाईकोर्ट में याचिका (क्रमांक 4906/10) लगाई थी।
हाईकोर्ट ने याचिका में दिए गए तथ्यों पर संतुष्टि जाहिर करते हुए कहा था, कि यह मामला शेषन कोर्ट का है, सीधे हाईकोर्ट इस तरह के मामलों में सुनवाई नहीं करता। इसीलिए कोर्ट ने साल 2013 में श्योपुर कलेक्टर के मार्फत इस मामले को विजयपुर शेषन कोर्ट में ले जाने के निर्देश दिए थे। लेकिन 2013 से श्योपुर में पदस्थ कलेक्टर इस मामले को टालते रहे।
पालपुर रियासत के वंशजों ने साल 2019 में श्योपुर कलेक्टर के खिलाफ हाईकोर्ट की अवमानना की कार्रवाई शुरू की तब तात्कालीन श्योपुर कलेक्टर ने आनन-फानन में विजयपुर शेषन कोर्ट में मामला भेजा। पालपुर रियासत का आरोप है कि कलेक्टर ने गलत जानकारी के साथ मामला पेश किया।
हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना के खिलाफ ही पालपुर राजघराने ने विजयपुर कोर्ट में याचिका लगाई है। जिसकी पहली सुनवाई 8 सितंबर को हुई और अलगी तारीख कूनो में चीते आने के दो दिन बाद यानी 19 सितंबर की लगी है।
सिंह परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना 1981 में जारी हुई। अधिसूचना के 2 साल में अधिग्रहित की गई सम्पत्ति का अवार्ड जारी करना होता है, लेकिन जिला प्रशासन ने लगभग 30 साल बाद यह अवार्ड जारी किया, इस लिहाज से अधिग्रहण की कार्रवाई ही नियमानुसार नहीं।
कूनो-पालपुर सेक्चुरी में 220 बीघा सिंचित-उपजाऊ जमीन अधिग्रहित की गई थी, जिसके बदले में 27 बीघा जो असंचित, ऊबड़-खाबड़, पथरीली जमीन दी है।
220 बीघा जमीन के बीच पालपुर रियासत का ऐतिहासिक किला, बावड़ी, मंदिर आदि सम्पत्ति है, जिसका अधिग्रहण में कोई जिक्र नहीं, नहीं कोई मुआवजा मिला, फिर भी सरकार इन सम्पत्तियों का उपयोग कर रही है। याचिका में यह भी कहा गया है, कि अपने पुश्तैनी किले, मंदिर की पूजा के लिए जाने पर सेंक्चुरी प्रशासन 2000 रुपये शुल्क लेता है, तब जाने दिया जाता है।
हमने अपनी जमीने जंगल बचाने के लिए दी थी। शेर घने जंगल में रहते हैं, शेर आते तो जंगल बचता। अब चीते आ रहे हैं, जिनके लिए बड़े-बड़े मैदान बनाने के लिए कई पेड़ काटे जा रहे हैं। कूनो में जमीनों का अधिग्रहण सिंह परियोजना के लिए हुआ था, अधिग्रहण की कार्रवाई भी सही नहीं हुई। हमारी दलीलों को हाईकोर्ट ने सही माना और हमें निचली अदालत में जाने को कहा, पर श्योपुर कलेक्टर ने सालों तक मामला अटकाए रखा। इस मामले की पहली सुनवाई 8 सितंबर को हो चुकी है, अगली तारीख 19 सितंबर की लगी है।
श्रीगोपाल देवसिंह, वंशज, पालपुर रियासत।
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