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India News (इंडिया न्यूज़), Stay on Caste Census, पटना: बिहार में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण मामले पर पटना उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम फैसला सुनाते हुए तत्काल प्रभाव से जातीय जनगणना पर लगाई रोक लगा दी है। अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।
याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि जातिगत जनगणना पर 500 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, जो धन का दुरूपयोग होगा। इसलिए कोर्ट ने माना है कि यह नीति 1948 के संविधान, क़ानून और जनगणना अधिनियम के खिलाफ है। मामले को यूथ फॉर इव्कालिटी इक्विटी (Youth For Equality) बनाम बिहार सरकार के नाम से जाना गया।
कोर्ट के आदेश पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि कोर्ट का निर्देष पढ़ने के बाद ही सरकार अपना अगला कदम उठाएगी। मगर ये जाति आधारित जनगणना नहीं था बल्कि सर्वे था, जो सरकार का कोई पहला सर्वे नहीं था। हमारी सरकार ये सर्वे कराने के लिए प्रतिबद्ध है। ये जनता के हित में था और जनता की मांग थी कि ये सर्वे होना चाहिए।
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता तारकिशोर प्रसाद ने मामले पर कहा कि बिहार सरकार ने इस मुद्दे को ठीक से हाईकोर्ट के सामने नहीं रखा इसलिए इस प्रकार का निर्णय आया है। मैं तो इस महागठबंधन सरकार पर आरोप लगाता हूं कि जाति आधारित जनगणना पर इनकी (बिहार सरकार) मंशा गलत थी। NDA सरकार ने तो जाति आधारित जनगणना कराने का निर्णय लिया था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार, रितु राज व अभिनव श्रीवास्तव व राज्य की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुए। दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातिगत और आर्थिक सर्वे करा रही है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण करने का यह अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। बुधवार को सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता पीके शाही ने कहा कि जनकल्याण की योजना बनाने और सामाजिक स्तर को सुधारने के लिए सर्वे कराया जा रहा है। बिहार सरकार ने 7 जनवरी को जाति सर्वेक्षण अभ्यास शुरू किया।
2 जून 2022 को बिहार कैबिनेट ने राज्य में जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया। जाति जनगणना अनुमानित 2.58 करोड़ घरों में 12.70 करोड़ की अनुमानित आबादी को कवर करने वाली थी। इसमें 38 जिले, जिनमें 534 ब्लॉक और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं शामिल थे।
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