अजीत मैदोला, New Delhi News। Rajasthan Politics: महासचिव अजय माकन पर एक बार फिर असफलता का बड़ा ठप्पा लग गया। राजस्थान को भी दिल्ली और पंजाब की तरह हाशिये पर लाने की पूरी तैयारी थी। वो तो प्रदेश के विधायकों ने मोर्चा संभाल स्थिति को संभाल लिया। यही वजह है कि सच जानने के बाद पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं, गांधी परिवार के करीबी सेमपित्रों दा ने दखल दे मामले को संभाला और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्ष में बात रखी।
बहुमत के साथ छेड़छाड़ को किसी ने भी सही नहीं माना। यही वजह रही कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री गहलोत से बातचीत कर गुरुवार को उन्हें दिल्ली बुलाया है। मुलाकात के बाद ही तय होगा कि कांग्रेस अध्यक्ष पर क्या फैसला होता है, लेकिन राजस्थान के घटनाक्रम से माकन जरूर निशाने पर आ गए हंै।
जानकारों का मानना है कि अगर माकन जरा सी भी राजनितिक समझ रखते तो राजस्थान में स्थिति को बिगड़ने से रोक सकते थे। लेकिन उन्होंने स्थिति को पूरी तरह से बिगड़ने दिया। हालात बेकाबू होने के बाद भी इसी कोशिश में लगे रहे कि एक लाइन का प्रस्ताव किसी तरह से पारित हो जाए।
ऐसे में उनकी भूमिका संदेह इस घेरे में आ गई। ऐसा संदेश गया कि वह हर हाल में प्रस्ताव पारित कराना चाहते थे। विधायकों के मना करने के बाद वह इतने झला गए थे कि दूसरे दिन मुख्यमंत्री से मिलना भी उचित नहीं समझा, जबकि वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे सीएम की पूरी बात सुन दिल्ली लोटे।
इस घटना के बाद जो बाते सामने आ रही हैं वह बड़ी हैरान करने वाली हैं। दरअसल विधायकों की नाराजगी और गुस्सा काफी हद तक जायज दिखाई देता। विधायक इस बात से हैरान थे विधायक दल के बैठक की जानकारी सचिन पायलट गुट को पहले ही पता कैसे लगी। जबकि मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और मुख्य सचेतक किसी को नहीं थी।
माहौल बनाया जाने लगा था कि 27 व 28 सितंबर को शपथ हो जाएगी। यही नहीं बिधायकों को धमकी भरे लहजे में जताया जाने लगा था कि तुम 28 के बाद मंत्री नहीं रहोगे। नए युग की शुरूआत जैसे पोस्टर प्रदेश भर में पहले ही लगा दिए गए थे। कहा तो यहां तक जा रहा सचिन पायलट ने भी विधायकों को खुद फोन कर बैठक और खुद के सीएम बनने की बात की थी। मीडिया ने भी ऐसा माहौल बना दिया कि सब कुछ तय हो गया है।
विधायक डर गए। विधायकों का डर जायज भी था। क्योंकि दो साल पहले जब गहलोत सरकार गिराने की कोशिश की गई थी तो इन 102 विधायकों ने 25 से 30 करोड़ पेशकश को ठुकरा पार्टी के साथ खड़े रहे। यही वजह रही कि आपरेशन लॉट्स फेल हो गया।
इसके बाद भी आलाकमान का सचिन पायलट पर भरोसा करना विधायकों को रास नहीं आया। उन्होंने विरोध जता विधायकों की बैठक में न जाकर अपनी अलग बैठक की और स्पीकर को इस्तिफें सौंप दिए। इन विधायकों की एक ही मांग थी कि बागी विधायकों को छोड़ उनमें से किसी को भी मुख्य्मंत्री पद की जिम्मेदारी दे दी जाए।
इस पूरे घटनाक्रम से विपक्ष को मौका मिल गया। इस घटना से गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र और भरोसेमंद मुख्यमंत्री गहलोत की छवि को भी खराब करने की कोशिश की गई। आज संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा है राजस्थान में कोई संकट नहीं है एक दो दिन में स्थिति सामान्य हो जाएगी।
उम्मीद की जा रही है कि अध्यक्ष के नामांकन के बाद राजस्थान में स्थिति सामान्य हो जाएगी, लेकिन माकन को लेकर सवाल खड़े होंगे ही। दिल्ली में उनके अध्यक्ष रहते पार्टी हाशिये पर चली गई। पंजाब भेजा गया तो वहां पर पार्टी खत्म हो गई। राजस्थान में वह आलाकमान को सही जानकारी समय पर नहीं दे पाए जिससे फजीहत होने से बच जाती। आने वाले दिनों में देखना होगा पार्टी क्या कदम उठाती है।
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