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Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने वाली सुनवाई के छठे दिन सुप्रीम कोर्ट कुछ ठंडा नजर आया। कोर्ट ने माना कि यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है, कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील को भी स्वीकार किया कि ऐसी शादी को मान्यता देने से कई दूसरे कानूनों पर भी गहरा असर पड़ेगा। 5 जजों की बेंच ने सरकार से पूछा कि क्या वह समलैंगिक जोड़ों (Same Sex Couple) को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए कोई कानून बनाना चाहेगी या नही अब इस मामले में 3 मई को अगली सुनवाई की जाएगी।
5 दिन चली सुनवाई में याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से अलग-अलग दलीलें रखी गईं। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि स्पेशल मैरिज एक्ट (special marriage act) की व्याख्या में हल्के बदलाव से यह समस्या हल हो सकती है। अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को शादी की सुविधा देने के लिए बने इस कानून की धारा 4 में दो लोगों की शादी की बात लिखी गई है। कोर्ट यह कह सकता है कि इसमे समलैंगिक लोग भी इसका हिस्सा होंगे।
केंद्र ने कहा है कि पूरे समाज पर असर डालने वाले इस विषय पर संसद में चर्चा होनी चाहिए इस पर राज्यों की भी राय ली जानी आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से एक नई वैवाहिक संस्था नहीं बना सकता कल से जारी अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जजों से कहा कि अगर समलैंगिक शादी को कानूनी दर्जा दिया गया तो इससे 160 कानून प्रभावित होंगे।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस दलील को स्वीकार किया कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने से कई तरह की दिक्कतें आएंगी, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि साथ रह रहे जोड़ों को किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा न होना सही नहीं होगा। जजों ने पूछा कि जिस तरह ट्रांसजेंडर्स के लिए ट्रांसजेंडर्स एक्ट बनाया गया है, क्या वैसा ही कुछ समलैंगिक लोगों के लिए भी किया जा सकता है?
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