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आज विश्व आदिवासी दिवस,जानिए आदिवासी वीरांगनाओ के बारे में

Roshan Kumar • LAST UPDATED : August 9, 2022, 3:35 pm IST
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आज विश्व आदिवासी दिवस,जानिए आदिवासी वीरांगनाओ के बारे में

विश्व आदिवासी दिवस की शुरुआत साल 1994 में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से की गई थी.

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): आज विश्व आदिवासी दिवस है, हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी के रूप में मनाया जाता है, इसकी शुरुआत साल 1994 में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से की गई थी.

आदिवासी कौन होते है– आदिवासी प्रकृति के पूजक और इसके संरक्षक होते है। इन्हें जंगलो, पहाड़ो और पशुओ से विशेष प्रेम होता है। यह शिकार में माहिर होते है,इनका पारम्परिक हथियार तीर-कमान होता है, सादा जीवनशैली व पारम्परिक भोजन करना आदिवासी लोगो को पसंद होता है। यह व्यवहार में आमतौर पर सहज, शालीन और शर्मीले स्वभाव के होते है। अतिथियों का स्वागत करने के लिए इन्हें हमेशा आतुर माना जाता है, इन्हें जड़ी-बूटियों और औषधियो का भी काफी ज्ञान होता है। यह पूर्वजो द्वारा स्थापित परम्परा का पालन करते है। इन्हें संगीत, गायन, कला, संस्कृति, भूमि और भाषा से लगाव होता है.

विश्व में आदिवासी

दुनिया में आदिवासी समुदाय की जनसँख्या 37 करोड़ के आस-पास है। यह विश्व की आबादी का पांच प्रतिशत है,दुनिया में लगभग पांच हज़ार आदिवासी समुदाय है। इनकी सात हज़ार भाषाएँ है। भारत में लगभग 705 जनजातीय समूह है, जिसमे 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह है। साल 1961 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जनजाति की आबादी देश में 3.1 करोड़ थी जो कुल आबादी का 6.9 प्रतिशत है.

वही 2011 के जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति की आबादी 10.45 करोड़ है,जो देश की आबादी का 8.6 प्रतिशत है.

देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई 2022 देश के 15 वे राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी,देश के इतिहास में कई आदिवासी वीरांगनाएं हुए है, जिन्होंने शौर्य और साहस की मिसाल पेश की है, तो आइये जानते है ऐसी ही कुछ वीरांगनाओ के बारे में-

1.सिनगी दई और कइली दई – 14वी सदी में आज के बिहार का रोहतास जिला जिसे तब रोहतासगढ़ के नाम से जाना जाता था, यहाँ के राजा की दो बेटियां सिनगी दई और कइली दई ने रोहतासगढ़ पर मुगलो के आक्रमण को तीन बार विफल किया था, तीन बार मुग़ल सेना को हारने की याद में उराँव महिलाएं आज भी जनी शिकार नाम का उत्सव मनाती है.

2.जिउरी पहाड़िन– साल 1772 -89 के बीच देश के आदिवासी इलाकों में पहाड़िया विरोध हुआ था, इसमें महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई थी, इस विरोध में जिउरी पहाड़िन ने काफी सक्रिय रूप में हिस्सा लिया था और अंग्रेज़ो के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया था.

3.रुनिया और झुनिया : 1828 से 1832 के कालखंड में वीर बुधु भगत उनके बेटे हालदार, गिरधर और दो बेटियां रुनिया और झुनिया ने जमकर अंग्रेज़ो से लोहा लिया था और उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, रुनिया और झुनिया परम्परिक हथियार चलाने में पारंगत थी.

4.रत्नी खड़िया: साल 1880 में खड़िया विद्रोह हुआ था, तेलांग खड़िया कम उम्र के थे तब उन्होंने इस विरोध में लड़ाई लड़ी, उनकी पत्नी रत्नी खड़िया ने हर कदम पर उनका साथ दिया और इस विद्रोह में जमकर लड़ाई लड़ी, तेलांग खड़िया की मौत के बाद भी रत्नी खड़िया ने जोड़ी पंचायत का काम जारी रखा था.

5.फूलो और झानो :1855 -56 के संथाल विद्रोह में नायक चुनु मुर्मू और सुगु देलही की छह संतानो बेटे सिद्धो, कान्हो, चाँद, भैरव और बेटियां फूलो और झानो ने अंग्रेज़ो के दांत खट्टे कर दिए थे, फूलो और झानो ने अंग्रेज़ो की छावनी में घुस कर 21 सिपाहियों को मार गिराया था.

6.माकी, धीगी, नागे,लेम्बू : साल 1889 में जब अंग्रेज़ो ने बिरसा मुंडा के अनुनायी सरदार गया मुंडा के घर पर हमला किया था तब उनकी पत्नी माकी, बेटियां-धीगी, नागे और लेम्बू और दो पुत्र वधुओं ने कुल्हाड़ी, दउली, लाठी और तलवार के दम पर अंग्रेज़ो से जमकर लड़ाई लड़ी थी.

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