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इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच उपजे क्षेत्रीय विवाद को लेकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बड़ा दांव चला है। ठाकरे ने केंद्र सरकार से अपील किया है कि जबतक दोनों राज्यों के बीच क्षेत्र को लेकर विवाद सुलझ नहीं जाता तबतक मोदी सरकार कर्नाटक के कब्जे वाले महाराष्ट्र के क्षेत्रों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दे। महाराष्ट्र विधान परिषद में अपनी मांग रखते हुए ठाकरे ने कहा कि यह केवल भाषा और सीमा का मामला नहीं है बल्कि मानवता का मामला है।
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि मराठी भाषी लोग पीढ़ियों से सीमावर्ती गांवों में रह रहे हैं। उनका दैनिक जीवन, भाषा और जीवन शैली मराठी है। उन्होंने कहा कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तब तक कर्नाटक के कब्जे वाले महाराष्ट्र को केंद्र सरकार द्वारा केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाना चाहिए।
ठाकरे ने विधान परिषद में बोलते हुए यह भी पूछा कि क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस मुद्दे पर एक शब्द भी कहा है और इस पर राज्य सरकार के रुख पर सवाल उठाया है। उन्होंने कर्नाटक की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मामला विचाराधीन है और इस पर यथास्थिति है, लेकिन माहौल खराब कौन कर रहा है? उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधायिका ने राज्य के रुख को दोहराया है कि सीमा का मुद्दा सुलझा हुआ है और पड़ोसी राज्य को एक इंच भी जमीन नहीं दी जाएगी। महाराष्ट्र सरकार क्यों चुप है।
उद्धव ठाकरे ने पूछा कि क्या केंद्र सरकार ने संरक्षक के रूप में काम किया है। हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार अभिभावक के रूप में कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि सभी सदस्यों को “केस फॉर जस्टिस” फिल्म देखनी चाहिए और सीमा विवादों को लेकर महाजन आयोग की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए। ठाकरे ने कहा कि जब बेलगावी नगर निगम ने महाराष्ट्र में विलय का प्रस्ताव पारित किया तो निगम के खिलाफ कार्रवाई की गई। इसी तरह महाराष्ट्र की कुछ ग्राम पंचायतों ने तेलंगाना में विलय की मांग की थी। क्या शिंदे सरकार में इन ग्राम पंचायतों के खिलाफ कार्रवाई करने की जरा भी हिम्मत है?
जानकारी दें, महाराष्ट्र व कर्नाटक के बीच क्षेत्रीय विवाद 1957 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद का है। महाराष्ट्र ने बेलगावी पर दावा किया है। बेलगावी तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था क्योंकि इसमें मराठी भाषी आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। इसने 800 से अधिक मराठी भाषी गांवों पर भी दावा किया जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा हैं। हालांकि, कर्नाटक राज्य पुनर्गठन अधिनियम और 1967 महाजन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भाषाई आधार पर किया गया सीमांकन अंतिम रूप होता है।
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