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'लाल किला हमारा हैं, या तो कब्जा या मुआवजा?'…मुग़ल परिवार की इस आखिरी बहू ने मांगा हक, HC ने सुनाया फैसला?

PUBLISHED BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 14, 2024, 10:12 am IST
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'लाल किला हमारा हैं, या तो कब्जा या मुआवजा?'…मुग़ल परिवार की इस आखिरी बहू ने मांगा हक, HC ने सुनाया फैसला?

Daughter In Law Of Mughals: सुल्ताना बेगम ने यह भी मांग की थी कि यदि लाल किले का कब्जा उन्हें नहीं दिया जा सकता।

India News (इंडिया न्यूज), Daughter In Law Of Mughals: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण मामले में निर्णय सुनाया, जिसमें उसने आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर-द्वितीय के पड़पोते की विधवा सुल्ताना बेगम द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। सुल्ताना बेगम ने याचिका में दावा किया था कि वह लाल किले की कानूनी उत्तराधिकारी हैं और इसलिए उन्हें इस ऐतिहासिक किले पर कब्जा देना चाहिए। हालांकि, अदालत ने इस याचिका को समय की देरी के कारण खारिज कर दिया।

सुल्ताना बेगम की याचिका

सुल्ताना बेगम ने यह याचिका 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवैध रूप से लाल किला कब्जाने का आरोप लगाते हुए दायर की थी। उनका दावा था कि मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर-द्वितीय के परिवार को इस किले पर अधिकार था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मजबूर कर इस किले का कब्जा लिया। याचिका में यह भी कहा गया था कि भारत सरकार ने इस संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है और इसे सही उत्तराधिकारी को सौंपना चाहिए।

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सुल्ताना बेगम ने यह भी मांग की थी कि यदि लाल किले का कब्जा उन्हें नहीं दिया जा सकता, तो सरकार को 1857 से लेकर आज तक के अवैध कब्जे के लिए उन्हें मुआवजा देना चाहिए। उनका कहना था कि उन्हें यह किला उनके पूर्वज बहादुर शाह जफर से विरासत में मिला है, और उनके वंशज होने के कारण यह संपत्ति उनका अधिकार है।

कोर्ट का फैसला और देरी का मुद्दा

दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ, जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला शामिल थे, ने सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह अपील ढाई साल से अधिक समय की देरी से दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा, “यह देरी नजरअंदाज नहीं की जा सकती।” सुल्ताना बेगम की ओर से दायर किए गए माफी आवेदन में यह दावा किया गया था कि खराब सेहत और बेटी के निधन के कारण वे समय पर अपील दायर नहीं कर सकी थीं। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।

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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पहले ही सिंगल जज द्वारा इस मामले में भारी देरी के कारण याचिका को खारिज किया जा चुका था, और अब इस याचिका में देरी के कारण सुनवाई संभव नहीं है। न्यायाधीशों ने कहा कि इतने लंबे समय बाद अदालत का दरवाजा खटखटाना उचित नहीं है।

2021 में पहले हुए फैसले का संदर्भ

इससे पहले 20 दिसंबर 2021 को, उच्च न्यायालय के एकल जज ने सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि 150 साल से अधिक समय गुजर चुका है और इतने लंब समय बाद इस मामले में कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं है। जज ने यह भी टिप्पणी की थी कि इतनी लंबी देरी के बाद न्याय की मांग करना अनुचित है।

क्या था याचिका का मूल आधार?

सुल्ताना बेगम ने अपनी याचिका में दावा किया था कि अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद मुगलों से किला छीन लिया था, और इस किले पर उनके परिवार का कानूनी अधिकार था। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि ब्रिटिश सरकार ने लाल किले पर कब्जा कर लिया था, जो उनके पूर्वजों की संपत्ति थी। इसके अलावा, याचिका में यह भी कहा गया था कि भारत सरकार ने इस किले पर अवैध कब्जा कर रखा है, और यह किला उनकी संपत्ति है, इसलिए यह उन्हें वापस किया जाना चाहिए।

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कोर्ट का अंतिम निर्णय

हाईकोर्ट ने सुल्ताना बेगम की याचिका खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि अब इतनी लंबी देरी के बाद अदालत में इस मामले की सुनवाई नहीं हो सकती। कोर्ट ने सुल्ताना बेगम की मांग को अस्वीकार करते हुए कहा कि इस प्रकार के मामले में समय सीमा का पालन जरूरी है और अगर समय की देरी हो, तो उसे माफ नहीं किया जा सकता।

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कानूनी निर्णय है, जो समय सीमा और न्यायिक प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित करता है। इस मामले में सुल्ताना बेगम की याचिका खारिज होने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि इतने सालों बाद अवैध कब्जे के आरोपों पर सुनवाई संभव नहीं है, और याचिका दायर करने में समयसीमा का पालन करना जरूरी होता है।

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