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बिजनेस डेस्क/नई दिल्ली (Business Learning: Budding investors must know this before starting investing in stock market) : शेयर बाजार में यह दोनों शब्द आए दिन निवेशकों को सुनाई देते हैं। स्टॉक मार्केट में निरंतर अंतराल पर आप यह जरूर सुनते होंगे कि आज कोई कंपनी मार्केट में अपना आईपीओ लेकर आ रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही यह खबर सामने आई थी कि अडाणी एंटरप्राइजेज बाजार में अपना एफपीओ लेकर आने वाली है। हालांकि बाद में अडाणी ने इस एफपीओ को वापस ले लिया था। उभरते हुए शेयर निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश शुरू करने से पहले इसे जान लेना चाहिए कि ये आईपीओ और एफपीओ क्या बला है।
आईपीओ का पूरा नाम प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (Initial Public Offering) है। यह बाजार में तब लाया जाता है जब उस कंपनी को मार्केट से पहली बार पैसा उठाना होता है। जब पहली बार कोई कंपनी बीएसई, एनएसई, या दोनों में लिस्ट होती है और सार्वजनिक रूप से कारोबार करने के लिए अपने शेयरों की पेशकश करती है तो उसे आईपीओ कहा जाता है।
सरल भाषा में आईपीओ का मतलब पहली बार किसी कंपनी का सार्वजनिक होना। सार्वजनिक का मतलब बड़े पैमाने पर जनता को अपने शेयरों की पेशकश कर देश के स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट होना होता है। देश में दो एक्सचेंज हैं: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई)।
उदाहरण से समझए: मान लिजिए कि आप एक बिस्किट कंपनी के ओनर है जो छोटे स्तर पर सिर्फ एक या दो राज्य में अपना कारोबार करते हैं लेकिन अब आप अपने बिजनेस को विस्तार देना चाहते हैं और अपने बिस्किट पूरे देश में जाए और हर कोई सिर्फ आपके ही बिस्किट खाए तो इसलिए लिए आपको ज्यादा कैपिटल यानी पैसों की जरूरत होगी।
इसलिए अब आप चाहते हैं कि शेयर बाजार में कंपनी को लिस्ट कर जनता से पैसे ले। तो अब इसके लिए आप अपनी कंपनी को बाजार में लिस्ट करेंगे जो कि पहली बार जनता के सामने जाएगी।
एफपीओ का पूरा नाम फॉलो ऑन पब्लिक ऑफरिंग (Follow on Public Offering) होता है। इसका मतलब आईपीओ के आने के बाद अतिरिक्त शेयर बाजार में लाना ताकि ज्यादा पैसा उठाया जा सके। आसान भाषा में एफपीओ अतिरिक्त पूंजी जुटाने के लिए कंपनी द्वारा लाया जाता है।
किसी कंपनी द्वारा शेयरों का पहला अंक आईपीओ होता है, जबकि आईपीओ के बाद अतिरिक्त पूंजी जुटाने के लिए कंपनी द्वारा शेयर जारी करना होता है।
आईपीओ निश्चित या परिवर्तनीय मूल्य सीमा होती है जबकि एफपीओ की कीमत बाजार संचालित है और शेयरों की संख्या बढ़ने या घटने पर निर्भर करती है।
आईपीओ की वैल्यू महँगा होता है जबकि एफपीओ की वैल्यू ज्यादातर मामलों में सस्ता होता है क्योंकि कंपनी का मूल्य और कम हो रहा होता है।
आईपीओ जोखिम भरी होती है जबकि एफपीओ, आईपीओ की तुलना में कम जोखिम भरी होती है।
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