India News (इंडिया न्यूज़), Euthanasia: जहां आत्महत्या करना अपराध माना जाता है। वहीं इच्छामृत्यु को लेकर सोच में बदलाव देखने को मिलती हैं। कई देशों में इच्छामृत्यु को वैध माना जाता है। तो चलिए जानते हैं भारत में  इच्छामृत्यु को लेकर क्या कानून हैं।

इच्छामृत्यु की कानूनी अनुमति देने वाला नीदरलैंड दुनिया का पहला देश

इच्छामृत्यु क्या है?

इच्छामृत्यु (Euthanasia) को ग्रीक शब्द यूथानाटोस से लिया गया है जिसका अर्थ है आसान मौत होता है। इच्छामृत्यु एक अत्यंत बीमार व्यक्ति को उसके कष्ट से छुटकारा दिलाने के लिए उसके जीवन की समाप्ति है। डॉक्टर कभी-कभी इच्छामृत्यु तब देते हैं जब ऐसे लोगों द्वारा इसका अनुरोध किया जाता है जो लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं और बहुत दर्द में होते है। कई मामलों में, यह व्यक्ति के अनुरोध पर किया जाता है, लेकिन कई बार वे बहुत बीमार हो सकते हैं और निर्णय रिश्तेदारों, चिकित्सकों या, कुछ मामलों में, अदालतों द्वारा किया जाता है।

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दो तरह से दी जाती है इच्छामृत्यु

  1. एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु
  2. पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु

एक्टिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति को डॉक्टर जहरीली दवा या इंजेक्शन देते है। ताकि उस व्यक्ति की मौत हो जाए। वहीं पैसिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति के इलाज को रोक दिया जाता है। उसकी दवाएं बंद कर दी जाती है। ताकि वह आसानी से अपना शरीर त्याग सके।

इन देशों में इच्छामृत्यु को मिली कानूनी अनुमति

  • यूरोपीय देश नीदरलैंड दुनिया का पहला देश है जो अप्रैल 2002 में पहली बार इच्छामृत्यु को कानूनी अनुमति दिया।
  • बेल्जियम ने भी 2002 में इच्छामृत्यु को वैध बनाया।
  • लक्जमबर्ग ने 2009 में इच्छामृत्यु कानून को अनुमति दी थी।
  • कोलंबिया ने 2015 में  इच्छामृत्यु को कानूनी रूप से वैध करार दिया गया।
  • कनाडा ने 2016 में मौत के लिए चिकित्सीय सहायता को वैध बनाया।
  • स्पेन, और न्यूजीलैंड ने 2021 जनमत संग्रह के बाद ऐसे रोगियों के लिए इच्छामृत्यु को वैध बना दिया जिसकी प्राकृतिक रूप से मृत्यु छह महीने के अंदर निश्चित है।

भारत में इच्छामृत्यु काफी जटील

आपको बता दें कि 2018 में भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु’ को मंजूरी दे दी थी। हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी कर दी थी। भारत में अब भी इच्छामृत्यु का प्रोसेस काफी जटिल है। गौरतलब है कि भारत में सिर्फ पैसिव यूथेनेशिया इच्छामृत्यु की इजाजत है। इसका मतलब यह है कि डॉक्टर या कोई और मरने में मदद नहीं कर सकता, सिर्फ इलाज बंद कर दिया जाएगा। पेसिव यूथनेसिया की इजाजत भी तभी दी जा सकती है, जब मरीज को लाइलाज बीमारी हो और उसका जिंदा बच पाना नामुमिकन हो। तभी इसकी मंजूरी दी जाती है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार को कानून भी बनाना चाहिए ताकि गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज शांति से मर सके।

कोर्ट ने कही थी यह बात

जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पांच जजों की पीठ ने इस पर सुनवाई की थी।  सुप्रीम कोर्ट मे 9 मार्च 2018 को ‘इच्छामृत्यु’ की मंजूरी दी थी। कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस तरह व्यक्ति को जीने का अधिकार है उसी तरह गरिमा से मरने का भी अधिकार है।