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Holi 2024: होली का त्योहार अब काफी करीब है, इस त्योहार में सभी एक-दूसरे से गिले शिकवे मिटाकर, मित्रता के भाव से रहते हैं। ये खुशियों का पर्व है, खुशियों के रंग एक दूसरे को लगाए जाते हैं, अच्छे-अच्छे पकवान बनाए जाते हैं। होली के दिन क्या-क्या किया जाता है, ये तो आप सभी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि होली के त्योहार को मनाने का इतिहास कितना पुराना रहा है? कब से होली का पर्व मनता आ रहा है? तो चलिए जानते हैं, पौराणिक ग्रंथों के अनुसार होली का इतिहास..
होली को मनाने की अलग-अलग धार्मिक कथाएं सुनाई जाती हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय कथा भगवान कृष्ण और राधा रानी से जुड़ी हुई है।
कंस नामक एक बहुत बलशाली राक्षस था जो कि भगवान कृष्ण के रिश्ते में मामा लगता था। देवकी जिन्होंने कृष्ण को जन्म दिया, उन्हीं के भाई थे कंस। कंस इस भविष्य से परिचित था कि उसकी मृत्यु देवकी के किसी पुत्र के ही हांथो होगी। देवकी ने कृष्ण को जन्म तो दिया था लेकिन कंस के अधर्म से ज्ञात थी। इसलिए उनका पालन -पोषण देवकी ने न करके, मां यशोदा ने किया था। एक दिन कंस ने पूतना नाम की राक्षसी को कृष्ण के पास भेजा कि अपना जहरीला दूध उसे पिलाकर मार डालो। पूतना अपने स्तनों पर जहर लगाकर कृष्ण के पास चली गई और भगवान कृष्ण को अपना जहरीला दूध पिला दिया। जहर से भगवान की तो जान नहीं गई लेकिन पूतना वहीं मर गई। जहरीला दूध पीने से भगवान कृष्ण का रंग नीला पड़ चुका था, बड़े होकर उनका शरीर इसी रंग में ढल गया।
भगवान कृष्ण राधा रानी के साथ जब खेला करते थे, तो राधा रानी और उनकी सखियां कृष्ण को उनके रंग को लेकर चिढ़ाया करती थी। एक दिन परेशान होकर कृष्ण अपना मां यशोदा के पास चले गए और उनके सामने रोने लगे, कि वो नीले क्यों हैं? उनका रंग बाकी लोगों की तरह क्यों नहीं है? मां यशोदा से उनके आंसू देखे नहीं गए। तब मां यशोदा ने उन्हें एक सुझाव दिया कि जाकर तू भी राधा को इसी रंग में रंग दे ताकि तूझे चिढ़ा न पाए। कृष्ण जी ये सुनकर प्रसन्न हो जाते हैं।
कृष्ण जी ये सुझाव लेकर अपने मित्रों के पास जाते हैं और उन्हें सारी बातें बता देते हैं। सभी साथी उनका इस कार्य में सहयोग करने का वादा भी करते हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी कि रंग बनाएं कैसे? तब सुदामा ( कृष्ण के करीबी मित्र ) ने कहा कि, हम चमेली, चम्पा, गुलाब ऐसे ही और फूलों से रंग बना सकते हैं। ये पूरी योजना, वहां से गुजरती, राधा की सखियां सुन लेती हैं और राधा रानी को आकर बता देती हैं। कृष्ण इस तैयारी से जाते हैं कि राधा रानी को रंग देंगे, और वहां राधा रानी उनकी इस योजना पर पानी फेरने की साजिश करने की तैयारी में होती हैं।
कृष्ण जब बरसाना, राधा को रंग लगाने के लिए पहुंचते हैं तो देखते हैं कि राधा और उनकी सखियों के हांथ में डंडे होते हैं जिसके वजह से कृष्ण के मित्र डर जाते हैं। राधा कृष्ण से कहती हैं कि रंग लगाओगे तो पछताओगे। पर कृष्ण अपनी मां से वादा करके आए हुए थे, कि राधा को तो रंग कर ही वापस आएंगे। राधा रानी काफी कोशिश करती हैं कि वो कृष्ण के हांथों न आएं, पर कृष्ण उन्हें फूलों से बने रंग से रंग ही देते हैं। जैसे ही दोनों ने एक दूसरे को रंग लगाया, तब सभी देवी-देवतागण उनपर स्वर्ग से फूलों की वर्षा करने लगे।
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