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इंडिया न्यूज़: (International Mother Language Day 2023) आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। भाषा जो न सिर्फ एक-दूसरे से बात करने का माध्यम है बल्कि हमारी संस्कृति को भी दर्शाती है। ये लोगों को आपस में जोड़ने का भी काम करती है। किसी भी देश में अलग-अलग तरह की मातृभाषा हो सकती हैं। भारत की ही बात करें तो यहां 122 भाषाएं हैं। इनमें में बांग्ला, पंजाबी, भोजपुरी, गढ़वाली जैसी सुंदर भाषाएं शामिल हैं। वहीं अगर बात मातृभाषा दिवस की करें तो साल 2000 से इसे विश्वभर में मनाया जाता है। हालांकि, इसका इतिहास जानकर आप शायद थोड़ा चौंक जाएंगे।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की सबसे जरूरी वजह भाषाओं को लोगों तक पहुंचाना है। यानी लोगों को मातृभाषा के प्रति जागरूक करना है। इसी उद्देश्य से इसे 21 फरवरी को हर साल इसे मनाया जाता है। कुछ जगह और देशों में तरह-तरह के इवेंट्स भी रखे जाते हैं जाते हैं ताकि लोगों को इससे जोड़ा जा सके। वहीं इस साल अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2023 की ‘बहुभाषी शिक्षा- शिक्षा को बदलने की आवश्यकता’ रखी गई है।
साल 1999 में यूनेस्को की ओर अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को ऑफिश्यल तौर पर मनाने का ऐलान किया गया। आप शायद ही जानते होंगे कि इसकी शुरुआत बांग्लादेश में की गई थी। दरअसल बांग्लादेश का इतिहास तो सभी जानते हैं। जब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था उस समय से ही यहां अपनी मातृभाषा को लेकर एक संघर्ष शुरू हो गया था। हर कोई बांग्ला भाषा चाहता था। जब पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश को अपना नाम मिला तो इसके बाद 21 फरवरी को इस देश का मातृभाषा को लेकर अपना संघर्ष पूरा हुआ और प्रत्येक साल बांग्लादेश में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत में विभिन्न तरह की भाषाएं बोली जाती हैं। तरह-तरह के धर्म और जाति के लोग यहां रहते हैं। आपसी भाईचारे की मिसाल भी यहां कायम है लेकिन यहां रहने वाले जितने लोग हैं उतने ही लोगों के पास उनकी अपनी भाषा भी है। हमारे देश में करीब 1652 भाषाएं बोली जाती हैं। वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां 1365 मातृभाषाएं हैं। इनमें सबसे ज्यादा किसी भाषा का इस्तेमाल होता है तो वो है हिंदी। इस समय भारत में 52.83 करोड़ वक्ताएं हिंदी की हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर बंगाली है, फिर मराठी और तेलुगु।
पूरी दुनिया में ऐसी कई भाषाएं हैं जो कहीं गायब होती जा रही हैं और इनके संरक्षण के साथ-साथ इनके प्रति लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। विशेषतौर पर बोलियों और लोकभाषाओं का संरक्षण होना तो बहुत ही जरूरी है। दरअसल बदलते हुए समय के साथ ऐसा देखा जा रहा है कि बहुत सी ऐसी भाषाएं जो पीछे छूटती जा रही हैं जिन्हें सहेजकर रखना आवश्यक है।
यूनेस्को की मानें तो भाषा केवल संपर्क, शिक्षा या विकास का माध्यम न होकर व्यक्ति की विशिष्ट पहचान है, उसकी संस्कृति, परम्परा एवं इतिहास का कोष है। किसी भी राष्ट्र या समाज के लिए अपनी मातृभाषा अपनी पहचान की तरह होती है। वहीं पीपुल्स लिंग्युस्टिक सर्वे आफ इंडिया (पीएलएसआई) के एक सर्वे के अनुसार पिछले 50 सालों में भारत की करीब 250 भाषाएं लुप्त हो चुकी हैं, इनमें से 22 तो अधिसूचित भाषाएं हैं। यानी अगर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में ऐसा भी हो सकता है कि ऐसी और भी भाषाएं का संरक्षण करना मुश्किल ही हो जाए।
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