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डूब जाएगा सूरज नहीं दिखेगी कहीं रोशनी, आज क्यों होगी सबसे लम्बी रात…चंद घंटों में दिखेगी काली गहरी रात

PUBLISHED BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 21, 2024, 12:20 pm IST
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डूब जाएगा सूरज नहीं दिखेगी कहीं रोशनी, आज क्यों होगी सबसे लम्बी रात…चंद घंटों में दिखेगी काली गहरी रात

Winter Solstice 2024: इस साल शीतकालीन संक्रांति 21 दिसंबर 2024 को होगी नासा के अनुसार यह घटना पूर्वी समयानुसार सुबह 04:20 बजे घटित होगी।

India News (इंडिया न्यूज), Winter Solstice 2024: भारत में नवंबर से फरवरी तक शीत ऋतु का समय होता है। इस दौरान ठंडी हवाएं और गिरते तापमान से सर्दियों का अहसास चरम पर होता है। खासकर उत्तरी भारत में इस समय तापमान न्यूनतम स्तर तक पहुंच जाता है। इस मौसम का खास आकर्षण होता है शीतकालीन संक्रांति, जिसे वर्ष का सबसे छोटा दिन कहा जाता है।

शीतकालीन संक्रांति क्या है?

शीतकालीन संक्रांति (Winter Solstice) वह खगोलीय घटना है, जब सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध से सबसे अधिक दूरी पर होता है। इस स्थिति में पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य से अधिकतम झुका हुआ होता है। परिणामस्वरूप, दिन सबसे छोटा और रात सबसे लंबी होती है।

भूगोल की भाषा में इसे “शीत अयनांत” कहा जाता है। यह घटना हर साल 21, 22 या 23 दिसंबर को घटित होती है। इस दिन सूर्य मकर रेखा के ठीक ऊपर होता है, जिससे उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं और दिन के घंटे घट जाते हैं। वहीं, दक्षिणी गोलार्ध में स्थिति इसके उलट होती है।

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शीतकालीन संक्रांति 2024 कब है?

इस साल शीतकालीन संक्रांति 21 दिसंबर 2024 को होगी। नासा के अनुसार, यह घटना पूर्वी समयानुसार सुबह 04:20 बजे घटित होगी। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सर्दियों की शुरुआत होती है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में गर्मियों का आगमन होता है।

21 दिसंबर को सूर्य की रोशनी का समय इस बात पर निर्भर करता है कि आप पृथ्वी के किस स्थान पर हैं। भूमध्य रेखा के नजदीकी स्थानों पर दिन और रात में अंतर कम होता है, लेकिन उत्तरी ध्रुव के पास दिन सबसे छोटा और रात सबसे लंबी होती है।

शीतकालीन संक्रांति का वैज्ञानिक कारण

पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 23.5° झुकी हुई है। जब उत्तरी ध्रुव सूर्य से अधिकतम दूरी पर झुका होता है, तब यह स्थिति शीतकालीन संक्रांति की होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंबवत पड़ती हैं, जिससे उत्तरी गोलार्ध में ठंड का प्रकोप बढ़ता है।

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शीतकालीन संक्रांति का सांस्कृतिक महत्व

शीतकालीन संक्रांति केवल खगोलीय घटना ही नहीं है, बल्कि इसे एक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। कई देशों में इसे सर्दियों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन लोग लकड़ियां जलाते हैं, नाचते-गाते हैं, पारंपरिक भोजन करते हैं और प्रियजनों के साथ समय बिताते हैं।

यूरोप: यहां इसे “यूल फेस्टिवल” के रूप में मनाया जाता है।

चीन: डोंगझी उत्सव में परिवार के साथ पकवान बनाने और आनंद मनाने की परंपरा है।

भारत: हालांकि शीतकालीन संक्रांति को बड़े उत्सव के रूप में नहीं मनाया जाता, लेकिन मकर संक्रांति इसके बाद आने वाला प्रमुख पर्व है, जो उत्तरायण का प्रतीक है।

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शीतकालीन संक्रांति सूर्योदय का समय 07:09 AM
शीतकालीन संक्रांति सूर्यास्त का समय 05:28 PM 

शीतकालीन संक्रांति का पर्यावरणीय प्रभाव

इस दिन सूर्यास्त जल्दी होने के कारण रातें ठंडी और लंबी हो जाती हैं। ठंड के इस चरम समय में पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की जीवनशैली में भी बदलाव आता है।

शीतकालीन संक्रांति खगोलीय चमत्कार का अद्भुत उदाहरण है। यह न केवल दिन और रात के बदलते समय को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि प्रकृति के हर पहलू में एक गहरी योजना छिपी है। चाहे यह खगोलीय घटना हो या सर्दियों की शुरुआत, शीतकालीन संक्रांति हमें यह अहसास कराती है कि हर परिवर्तन अपने साथ एक नई शुरुआत लेकर आता है।

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