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इस गांव में मोबाइल ले जाना अपराध! जानिए यहां के लोगों का अध्यात्मिक होने का राज

BY: Rajesh kumar • LAST UPDATED : May 28, 2024, 3:16 pm IST
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इस गांव में मोबाइल ले जाना अपराध! जानिए यहां के लोगों का अध्यात्मिक होने का राज

इस गांव में मोबाइल ले जाना अपराध! जानिए यहां के लोगों का अध्यात्मिक होने का राज

India News(इंडिया न्यूज), Tatiya Village: समय के साथ दुनिया बदल गई है। आदम के समय से लेकर अब तक इंसान कितना बदल गया है ये आपके और हमारे आस-पास देखा जा सकता है। कुछ लोगों को वह समय याद होगा जब मोबाइल फोन नहीं थे। अगर हम बात करें तो दशकों पहले लोग बिना बिजली के रहते थे। लेकिन अब आप बिजली के बिना एक मिनट भी नहीं रह सकते। मोबाइल की हालत भी ऐसी है कि आप इसके बिना रह नहीं सकते। लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि ऐसी जगहें भी हैं जहां आज भी लोग बिजली के उपकरण और मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करते हैं। आपको शायद यकीन न हो लेकिन ये सच है। उत्तर प्रदेश में वृन्दावन के पास एक ऐसा गांव है, जहां जाकर आपको ऐसा लगेगा मानो आप पुराने दिनों में आ गए हों।

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टटिया गांव में बिजली के बल्ब और पंखे नहीं

इस अनोखे गांव का नाम है टटिया गांव। आज भी इस गांव के सभी लोग पुराने समय की तरह खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मोबाइल फोन और एसी तो छोड़िए, यहां के लोगों के घरों में पंखे तक नहीं हैं। यहां डोर खींचकर चलने वाला पंखा आज भी चल रहा है। यहां कोई विद्युत उपकरण नहीं है। इस गांव में किसी के पास मोबाइल फोन तक नहीं है। रात में भी लोग रोशनी के लिए दीपक और मोमबत्तियां जलाते हैं क्योंकि यहां बिजली के बल्ब भी नहीं जलाए जाते हैं। यहां मोबाइल फोन ले जाना तो प्रतिबंधित है ही, इसके अलावा पीने के पानी के लिए भी कुओं का इस्तेमाल किया जाता है। इस गांव में सभी महिलाएं अपना सिर ढककर रखती हैं और लोग हर समय पूजा-पाठ में व्यस्त रहते हैं।

इस गांव में मोबाइल फोन ले जाने पर प्रतिबंध

ऐसा कहा जाता है कि जब वृन्दावन के सातवें आचार्य ललित किशोरी देव जी ने निधिवन छोड़ा, तो वह इसी स्थान पर ध्यान करने के लिए बैठे। यहां खुला जंगल था। उन्हें शिकारियों और जानवरों से बचाने के लिए, भक्तों ने बांस की छड़ियों से उनके चारों ओर एक छत और घेरा बनाया। इस क्षेत्र में बांस की लकड़ियों को टटिया कहा जाता है। इसलिए इस स्थान का नाम टटिया गांव पड़ा। इस क्षेत्र में लोग दिन-रात भजन-कीर्तन में डूबे रहते हैं। यहां हर कदम पर आपको साधु संत भक्ति में लीन मिलेंगे। यहां भगवान की आरती नहीं होती बल्कि राधा रानी और भगवान कृष्ण के गीत गाए जाते हैं। इस क्षेत्र में नीम, कदम्ब और पीपल के अनेक वृक्ष हैं और उनके पत्तों पर भी राधा नाम उभरा हुआ दिखाई देता है। यहां साधु दक्षिणा नहीं लेते, गांव के घरों से ही उनके लिए भोजन भेजा जाता है। देखा जाए तो टेक्नोलॉजी के इस युग में यह अनोखा गांव भक्ति और ध्यान के महत्व को बताता है।

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