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Hindu Marriage Act: तलाक के आधार में संशोधन की जरूरत, जानिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?

BY: Himanshu Pandey • LAST UPDATED : March 2, 2024, 1:37 am IST
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Hindu Marriage Act: तलाक के आधार में संशोधन की जरूरत, जानिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?

Aurangabad High Court

India News (इंडिया न्यूज़), Hindu Marriage Act: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के आधार में संशोधन की जरूरत जताई है। कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के मद्देनजर अब हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन पर विचार करने का समय आ गया है। यह टिप्पणी जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने की है। अदालत ने कहा कि, “चाहे वह प्रेम विवाह हो या अरेंज मैरिज, विभिन्न कारक रिश्ते को प्रभावित करते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है। लव मैरिज की तरह अरेंज मैरिज भी वैवाहिक विवादों का कारण बन रही है। क्या इससे कोई फ़र्क पड़ता है कि ज़िम्मेदार कौन है? पार्टियां इस तरह के रिश्ते को जारी रखने को तैयार नहीं हैं।

क्या है पूरा मामला

खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक डॉक्टर द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए की, जिसने लगभग 30 वर्षों तक भारतीय सेना में भी सेवा की है। पारिवारिक अदालत ने उन्हें अपनी पत्नी, जो एक वरिष्ठ डॉक्टर भी हैं, को तलाक देने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। 2007 में हुई थी शादी यह दूसरी शादी थी। 2015 में तलाक के लिए आवेदन करने से छह साल पहले पत्नी ने अपने पति को छोड़ दिया था। क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा गया था। जब फैमिली कोर्ट ने पति की अर्जी स्वीकार नहीं की तो 2019 में हाई कोर्ट में अपील दायर की गई। हाई कोर्ट के समक्ष पति की मुख्य दलील यह थी कि पत्नी लंबे समय से उससे दूर रह रही है और यह मानसिक क्रूरता के बराबर है। दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि शादी के अपूरणीय टूटने को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के आधार के रूप में मान्यता दी है। इस संबंध में नवीन कोहली मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वरा दिये गये फैसले का जिक्र किया गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

बता दें कि, पीठ ने कहा कि कानूनी तलाक देने का एक आधार यह है कि याचिकाकर्ता ने याचिका दायर करने से पहले कम से कम दो साल की लगातार अवधि के लिए याचिकाकर्ता को छोड़ दिया हो। कोर्ट ने कहा कि, यह समझ में नहीं आता कि जब दोनों पक्ष वर्षों से और कुछ मामलों में दशकों से अलग-अलग रह रहे हैं, तो अपूरणीय टूटन के आधार को आधार के रूप में मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है? कोर्ट ने आगे कहा, कई मामलों में पक्षों के बीच वैवाहिक जीवन नाममात्र का ही रह जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार महसूस किया है कि ऐसे अव्यवहारिक वैवाहिक संबंधों को जारी रखना पक्षों पर मानसिक क्रूरता के अलावा कुछ नहीं है।

मौजूदा मामले के संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि चूंकि पत्नी लंबे समय से पति से दूर रह रही है और इससे साफ पता चलता है कि उसे शादीशुदा जिंदगी जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। यह पाते हुए कि शादी पूरी तरह से टूट गई है, कोर्ट ने कहा कि इस मामले को पति पर ‘मानसिक क्रूरता’ का मामला माना जाना चाहिए। विवाह पूर्णतः अव्यावहारिक और भावनात्मक रूप से मृतप्राय हो गया है। कोर्ट ने अपील स्वीकार कर पति के पक्ष में तलाक की डिक्री देते हुए कहा कि तलाक दिया जा सकता है।

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