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महाकुंभ में कटने लगी पर्ची, मौनी अमावस्या पर होंगे 1800 से अधिक नागा साधु, जूना अखाड़े से आरंभ हुई दीक्षा प्रक्रिया

BY: Pratibha Pathak • LAST UPDATED : January 17, 2025, 8:20 am IST
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महाकुंभ में कटने लगी पर्ची, मौनी अमावस्या पर होंगे 1800 से अधिक नागा साधु, जूना अखाड़े से आरंभ हुई दीक्षा प्रक्रिया

महाकुंभ में कटने लगी पर्ची, मौनी अमावस्या पर होंगे 1800 से अधिक नागा साधु

India News(इंडिया न्यूज),Mahakumbh 2025: प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित कुंभ महापर्व के तहत मौनी अमावस्या से पहले 1800 से अधिक साधु नागा बनने की प्रक्रिया से गुजरेंगे। जूना अखाड़े में यह प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है, जो 48 घंटे में पूरी होगी। नागा दीक्षा के बाद साधु मौनी अमावस्या पर अखाड़ों के साथ अमृत स्नान करेंगे। जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि ने बताया कि धर्म ध्वजा के नीचे 24 घंटे की तपस्या के साथ दीक्षा का शुभारंभ हुआ है।

गंगा में 108 डुबकी के बाद दीक्षा की शुरुआत

साधुओं की नागा दीक्षा गंगा में 108 पवित्र डुबकी के बाद आरंभ होती है। इस दौरान क्षौर कर्म, विजय हवन और गुरु द्वारा दी जाने वाली पांच विशेष वस्तुओं का वितरण किया जाता है। आचार्य महामंडलेश्वर के नेतृत्व में दीक्षा प्रक्रिया पूरी होती है। 19 जनवरी की सुबह साधुओं को अंतिम संस्कारात्मक प्रक्रिया से गुजरते हुए नागा बनाया जाएगा।

महाकुंभ में नागा साधुओं का महत्व

महाकुंभ अखाड़ों के विस्तार और नागा साधुओं की दीक्षा का विशेष अवसर होता है। नागा साधु बनने के बाद साधु सामाजिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। चोटी काटने और तंगतोड़ क्रिया नागा दीक्षा की अहम प्रक्रियाएं हैं। इनसे साधु का सामाजिक जीवन समाप्त मान लिया जाता है। नागा बनने के बाद ही साधु को अखाड़ों में प्रशासनिक और आर्थिक जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं।

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आंतरिक जांच प्रक्रिया से गुजरते हैं साधु

अखाड़े की आंतरिक कमेटी प्रत्येक साधु की जांच-पड़ताल करती है। नागा बनने के लिए कठोर तपस्या और संस्कारों से गुजरना होता है। नागा बनने के बाद ही साधु को अखाड़े में महत्वपूर्ण पदों जैसे महामंत्री, सचिव और महंत पर नियुक्त किया जाता है।

अन्य अखाड़ों में भी दीक्षा की तैयारी

जूना अखाड़े के बाद निरंजनी, महानिर्वाणी और उदासीन अखाड़ों में भी नागा साधु बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी। मौनी अमावस्या से पहले सभी अखाड़े अपने नए नागा साधुओं को शामिल करेंगे। यह प्रक्रिया अखाड़ों के आध्यात्मिक और प्रशासनिक विस्तार के लिए जरूरी मानी जाती है।

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