अजय त्रिवेदी, लखनऊ:
Mayawati Demand for Ban Election Survey: बीते कई सालों से चुनाव दर चुनाव हार का ही सामना कर रही बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमों मायावती के लिए यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव बेहद अहम हैं लेकिन राज्य में बसपा को लेकर जो माहौल है वह मायावती की मुसीबतों को बढ़ा रहा है। एक चुनावी कंपनी के सर्वे ने बसपा की दिक्कतों (Mayawati Demand for Ban Election Survey) में इजाफा किया है। इस चुनावी सर्वे के अनुसार सूबे में बसपा के प्रति लोगों का रूझान घटा है, जिसके चलते आगामी चुनावों में बसपा के खाते में करीब 15 फीसदी वोट आएंगे।
यानी वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों में मिले वोटों से 7.5 प्रतिशत कम। चुनावी सर्वे के इन आंकड़ों ने बसपा मुखिया मायावती की चिंताओं में इजाफा किया है। मायवाती को लगता है इस तरह के सर्वे से उनकी चुनावी रणनीति को प्रभावित करेंगे, अपनी ऐसी सोच के तहत उन्होंने चुनावी सर्वे पर रोक लगाने (Mayawati Demand for Ban Election Survey) के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखने का ऐलान किया है। ताकि कोई चुनावी सर्वे बसपा के प्रति लोगों के घट रहे रूझान की जानकारी देकर बसपा की मुसीबतों में इजाफा ना कर सके।
बीते दिनों बसपा संस्थापक कांशीराम की 15वीं पुण्यतिथि के अवसर पर कांशीराम स्मारक स्थल पर आयोजित रैली में बसपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मायावती (Mayawati Demand for Ban Election Survey) ने यह दावा किया है। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग को किसी भी राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले होने वाले प्री-पोल सर्वे पर पूर्णत: रोक (Mayawati Demand for Ban Election Survey) लगानी चाहिए। मायावती के अनुसार चुनावी सर्वे के जरिए सत्तारूढ़ दल के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है। इसे रोकने के लिए वह आयोग को पत्र भी लिखेंगी।
दरअसल, एक न्यूज चैनल द्वारा किए गए सर्वे में आए परिणामों में बसपा का वोट बैंक घटता दिखाया गया हैं। चुनावी सर्वे के अनुसार, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 22.2 प्रतिशत वोट पाने वाली बसपा आगामी चुनावों में 14.7 प्रतिशत वोट हासिल कर पाएगी। जबकि भाजपा को यूपी में 41 फीसदी वोट हासिल हो सकता है और समाजवादी पार्टी के खाते में 32 फीसदी तथा कांग्रेस को 6 फीसदी वोट जा सकते हैं। इस वोट प्रतिशत के आधार पर भाजपा के खाते में 241 से 249 सीटें जा सकती है।
जबकि बसपा 15 से 19 के सीटों के बीच सिमट कर रह जाएगी। इस सर्वे में मायावती को पसंद करने वालों की संख्या अखिलेश यादव से कम बताई गई। सर्वे के अनुसार 31 प्रतिशत लोगों ने अखिलेश यादव और 17 प्रतिशत लोगों में मायावती को बेहतर नेता बताया है जबकि 41 प्रतिशत लोगों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बेहतर मुख्यमंत्री मानते हुए उनके साथ खड़े हुए हैं।
चुनावी सर्वे के यह आंकड़े बसपा मुखिया मायावती के लिए तिलमिलाने वाले हैं। इसी वजह से मायावती ने चुनावी सर्वे पर रोक लगाने (Mayawati Demand for Ban Election Survey) के बात सार्वजनिक रुप से कही है। मायावती के इस कथन पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर सुशील पांडेय कहते हैं कि चुनावी सर्वे भले ही शत प्रतिशत सही ना होते हो पर वह जनता के रुझान को सही सही व्यक्त करते हैं। सूबे में राजनीतिक दलों की सक्रियता के आधार पर जनता किस दल के बारे में क्या सोचती है? इस बारे में चुनावी सर्वे का आकलन सही साबित होता रहा है।
ऐसे में भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के बारे में चुनावी सर्वे में जो बताया गया है, उस पर बहस की जानी चाहिए, लेकिन चुनावी सर्वे पर रोक लगाने (Mayawati Demand for Ban Election Survey) की मांग करना ठीक नहीं है। ऐसी मांग वही दल करते हैं, जो कमजोर होते हैं। बसपा अब यूपी में ऐसी स्थिति में पहुंच गई हैं। वर्ष 2009 से लेकर बीते लोकसभा चुनावों तक बसपा यूपी में लगातार चुनाव हार रही हैं। मायावती को इसकी समीक्षा करनी चाहिए कि वह इतने वर्षों से बसपा हर चुनाव क्यों हार रही है।
क्यों लोगों को बसपा की नीतियां पसंद नहीं आ रही है? क्यों बसपा के नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों में शामिल हो रहे हैं? क्या इसकी वजह मायावती और बसपा के नेताओं का जनता के बीच ना जाना है या कोई और वजह है? फिलहाल मायावती और सतीश चंद्र मिश्र इन सवालों का जवाब देने में अपना वक्त जाया नहीं करना चाहते वह तो बस एकतरफा बयान जारी कर फिर से सरकार बनाने का दावा करते हैं।
लेकिन जिन लोगों के वोट के आधार पर बसपा के ये दोनों नेता फिर से सूबे में सरकार बनाने का दावा करते हैं, उन्ही लोगों का कोरोना महामारी के दौरान मायावती (Mayawati Demand for Ban Election Survey) और सतीश चंद्र मिश्र लोगों का हाल तक जानने के लिए अपने घरों से बाहर नहीं निकले। बसपा के प्रमुख नेताओं के इस रुख से ही सूबे की जनता ने बसपा से दूरी बनायी है, चुनावी सर्वे से जनता का यह रुख उजागर हुआ है।
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